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मन का उद्भव किस प्रकार होता है? वह किस प्रकार से कार्यरत रहता है?
Transcript
00:00मन याने पिछले जनम में हम जो भी ज़्यादा चीज़ में इंवाल हो गए थे, वो लेकर आये हैं.
00:12राग या द्वेश से जिसा इंवाल किया वैसे उसका बनधारन लेकर हम आये हैं वो परमाणों का.
00:20इसकी ग्रंथी बनती हैं, बहुत सारे खटे होते हैं तो इसकी ग्रंथी बनती हैं, इसको मनो ग्रंथी कहते हैं.
00:27और इस जनम में इसमें से विचार आते हैं, ग्रंथी फूटती हैं तो इसमें से विचार आते हैं.
00:38जैसे जमीन में आलु की गाथ बो दी, तो भी नहीं तो अंकुर फूटते हैं.
00:49इसे तरह से मन की ग्रंथी में अंकुर फूटते हैं, उसे विचार कहा जाता है.
00:56और ये विचार को आप पढ़ सकते हो, जान सकते हो, मन में से आते हैं विचार.
01:07कुछ अपने पसंद के हैं, ना पसंद के भी होते हैं, दोनों तरह के होते हैं
01:13फिर दुबारा उसमें आप involved हो जाते हैं, तनमयाकार हो जाते हैं, तो नया मन बनते रहता है
01:23यह मन का यह है, सिर्फ इचार, और कुछ नहीं है
01:31मन रडार जैसा है, रडार रहता है न, क्या कहता है, रडार का क्या कार्य है, तो सिर्फ इंफोर्मेशन्स देते हैं
01:41रडार क्या कहता है, इंफोर्मेशन्स देते हैं, फिर उसका आगे कुछ काम नहीं है, उसपर क्या एक्शन लेना, वो मन का काम नहीं है
01:55मन तो सिर्फ बताता है इंफोर्मेशन्स, कि यहां डेंजर है, यहां अच्छा है, यहां खराब है, पर तो अपरिशन है
02:05पिर उस हिसाफ से क्या डिसीजन लेना, क्या करना, नहीं करना, यह मन का कार्य नहीं है, यह बुद्धी और एंकार मिलके करते हैं
02:15नहीं है ना