शाश्वत सुख कहाँ?

  • 2 months ago
इंसान भौतिक सुख पाने की अपेक्षा क्यों रखता है? वास्तविकता में पूर्ण और कायमी सुख कैसे और कहाँ से प्राप्त होगा?
Transcript
00:00दिपक भाई हम किसी से बहुत ज़्यादा उम्मीद क्यों रखते हैं ?
00:25यह अंकार का धन्दा ही है, अंकार का सवभाव ऐसा है कि मुझे कुछ मिलना चाहिए,
00:35हमारे पास तीन, तीन मैने, चार, चार मैने वाले चोटे बच्चे, मां उसके लेके आती है दर्शन के लिए,
00:40तो मैं कुछ चॉकलेट रखी होगी, तो चॉकलेट पहले बेवी को दे देता हूँ, तो इतना खुश हो जाता है,
00:47अभी तीन मैने क्या समझता है, मैं समझता है, कुछ मिला खुश होता है, यह जीव को वही धन्द,
00:53कुछ, मुझे कुछ प्राप्त होना चाहिए, मुझे कुछ, कुछ ग्रहन करने, वही अनादी काल से सुभाव है,
00:59छोटी छूटिया भी है, छीटिया, वो भी कुछ सक्कर का दाना मिला, सब लोग इकटा होके चलने लगेगे,
01:06कुछ प्राप्त होगा, उसमें सुख लगता है, और सची बात क्या है, कि हम कोई भी विनाशी चीजों मेंसे कभी,
01:14पुर्ण सुख कभी नहीं मिल सकता है, आत्मा का सुख मिलेगा, तो ही पुर्ण,
01:18पुर्ण अज्ञान द्रश्टी है, वहाँ से अहंकार खड़ा हुआ, और अहंकार बाहर के भौतिक चीजों मेंसे ही कुछ दूनता है,
01:25और दूनता भी है, और किसी को थोड़ा help किया, तो दस गुना मांगता है, कि मुझे, अपेक्षा रखता है, कि मुझे सुख दो,
01:32मैंने आपको इतना दिया, आप मुझे दो, और नहीं दे पाया सामने वाला, तो द्वेश करेगा,
01:38पस राग और द्वेश, वो ही दन्दा है, अनन्त अवतार से, और भटकने का कारण वो ही हो गया, संसार में,
01:45अभी हमें छुटना है, कि मुझे, इसके लिए दादा जी ने एकी सेंटेंस बताया,
01:50सुधात्मा अनुभव सिवा, इस संसार की कोई विनाशी चीज मुझे नहीं चाहिए, एक निश्चे करो, मुझे आत्मा अनुभव ही चाहिए,
01:58विनाशी चीज नहीं चाहिए, भाव से, हमारे प्रारत में जो मिले, हम भुगत लेंगे, पर भाव में अभी सुधात्मा अनुभव ही चाहिए,
02:06तो ये भावना होने से दिरे दिरे अपेक्षा, राग छूटते जाता है, और आत्मा का अनुभव जब मिल जाता है, आत्मा का सुख मिल गया, जैसे हम जिले भी खा ली, तो चाय फिक्की लगेगे,
02:18आत्मा का सुख मिला, तो संसारी विनाशी सुख अपने अप फिक्का लगता है, और बाद में राजवेश भी नहीं होते, किसी के प्रती अपेक्षा भी नहीं रहती है, और खुद अपेक्षा जब नहीं रखता है, तो किसी के साथ उसका टकराउ भी नहीं होगा, दु�