सच्ची साधना से मोक्ष

  • 3 months ago
मोक्ष की प्राप्ति में क्रिया करने का महत्त्व कितना है? सच्ची साधना किसे कह सकते है? सच्ची साधना को ज्ञानी की द्रष्टि से समझने का क्या महत्त्व है? कर्ताभाव और कर्म का क्या संबंध है?
Transcript
00:00सबी संत्महंत है गुरू है कोई भी धर्म में इतना ये करो उतना ये करो
00:29रोज एक मंत्र की माला करो या इतना ध्यान करो इतनी तपस्चर्या करो इतने उपवास करो इतनी एकादशी करो
00:39अभी अधिक मास है तो अधिक मास में बहुत पुन्य मिलेगा इतना हर संभार भगवान का दर्शन करने का एकादशी करने की
00:49और कहीं ना कहीं कोई भी गुरू में कोई भी धर्म में सभी ने ये ही बताया इतना करो
00:57और मनुष्यों को भी मज़ा आती है चलो मैंने ध्यान किया शांती हो गई दो उपवास किया अभी तीन करना है मुझे
01:07कोई बुला गई मैंने साथ उपवास किया अभी आठवा करूँगा आठ उपवास करने वाला हूँ
01:12पर शरीर को उपवास कराया खुद क्यों अहंकार करता है कि मैंने किया
01:18पर ये साधना करता है
01:23ऐसे लगता एक बस साधना करने से मुझे पुण्य मिलेगा मुझे मोक्ष मिलेगा
01:30कर्म खतम करने के लिए मैं साधना करता हूँ
01:34पर सचमोच कर्म खतम होते नहीं
01:38ये तो कोई भी साधना कर रहा है ध्यान करता है तपस्चर्या करता है त्याग करता है
01:45पुण्य का उदए होगा तो उसके इच्छा अनुशार ध्यान हो सकता है तपस्चर्या हो सकती है
01:52तो उसको लगता है कि मेरी साधना सफल हो गई मैंने कुछ किया
01:56और जब पुण्य खतम होता है पाप कर्म का उदए आता है
02:02तो विपरिज संजोग आते हैं सफलता मिलती नहीं दुखी हो जाता है
02:08कि मैं इतना ध्यान करता हूँ मुझे एकागरता नहीं लगती
02:11मैं माला फिना आता हूँ मेरा मन भटकता है मैं मन बक्ति नहीं कर पता
02:18क्यों कर्म का उदए करा रहा है उसको मांता है मैं करता हूँ
02:24एक कर्ता भाव से साधना करता है और सचमुझ हो रही है साधना उसको मांता है मैं करता हूँ
02:32पुर्वभूमें बीज लाले कर्म बांधा है आज उदए कर्म के आधर से हो रहा है
02:39भगवान ने शब्द सब कहे स्टव है त्याग है ध्यान है शब्द सब सच्चे है मगर समझ में गडबड हो गई है
02:49और अज्ञान दशा में जिसे घीता में अध्यात्मवी ज्ञान समाया गया है
02:58गृष्ण भगवान ने अर्जुन को ऐसा तत्व ज्ञान दिया कर्म करते हुए अकर्म दशा पाई और मोक्ष गती पाई उसी जन्म में
03:07बगर आज घीता अजारों लोग करोडों लोग पढ़ते हैं और अपनी समझ से उसके अर्थः करते हैं
03:16और गुरू जो करते हैं या समझाते हैं तत्व चिंदक सब समझाने जाते हैं और अज्ञान द्रश्टी से इतना भी समझाया अज्ञानता उसमें रह जाती हैं
03:29ग्यानी, अनुभवी ग्यानी की द्रश्टी सिवाई सत्य वस्तु प्राप्त होना बहुत मुश्किल है
03:37और साधना से ही साध्य प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करते हैं
03:44पर साध्य, सचमुश मालूने साधन, साधना ही साध्य हो गई है
03:50मैं जो एक उपवास होता है, मैं जो तीन करना है, मैं एक माला फिराता हूँ, मुझे पांच फिराने है
03:55साधन को ही साध्य माना गया, और इस साधन तो आगे बढ़ने के लिए फायदा करेगा
04:11और धर्म, इसे धर्म कहा जाएगा, अधर्म याने चोरी करना, जूत बोलना, दुसरे को दुख देना, हिंसा करना, व्यवीचार केलना, प्रस्ठाचार, अधर्म है सब
04:24और उसके साँने धर्म है, सेवा करो, परोपकार करो, दान करो, भक्ती करो, पूजा पाठ करो, स्वाध्याय करो, शास्त्र पढ़ो, यह सब धर्म है
04:33धर्म से और अधर्म से, दोनों करता भाव से हैं, मैंने किया, करता भाव से कर्म बनते हैं, अधर्म से पाप कर्म बनते हैं, धर्म से पुण्य कर्म बनते हैं, और पुण्य का फल, दुसरे भोव में सुक्षान्ती संपति मिलेगी, और त्याग किया है, तो अनेक गुणा �
05:03अध्यात्म है, spiritual science है, वहाँ करता भाव से छुटना है,
05:10यहाँ दादा-बगवान का जब ज्ञान पुराते हैं,
05:13मैं कुद कौन हो, उसका ज्ञान करते हैं,
05:16करता कौन है, कराने वाला कौन है, उसका ज्ञान पराप्त करते हैं,
05:20ताकि हमारा कर्तापद छुट जाए, आत्मजागरति हमें प्राप्त हो।
05:25और आत्मजागरति मिले, सच्चा कर्ता कौन है, उसका घ्यान प्राप्त करें,
05:30तो खुद का कर्तापद छुड जाता है.
05:33और बादमे मन, वचन, काया के कारियो,
05:37तपस्चर्या करना, उपवास करना, एकादशी करनी, ध्यान करना,
05:41कर्तापद ही छूट गया, करने का कुछ रहता नहीं है,
05:45मन वचन काया, सहज भाव से डिस्चार्ज होते रहते हैं,
05:52और खुद आत्मभाव में रहे के ग्याता द्रष्टा रहता है,
05:55आत्मः। आत्म धर्म में आया मन वचन काया,
05:59अपने धर्म में हैं वो सहज स्था से मोक्ष मिलता हैं।
06:04यहसे हि˙ मौक्ष स्वृवहता है कर्तापद छूटा,
06:08वहांसे भ्रान्ति खतं हुई, वहांसे मोक्ष पध्सुरुहता है।
06:11आदमें कर्मा डिस्चार्च पूरे होए,
06:14कर्ता भाव छोड़ गया,
06:15नए कर्मा बंदे जाते नहीं,
06:18तो मोक्स कायम का मिल जाता है।