निजीकरण के इस युग में आज भी सरकारी बैंक क्यों जरूरी ?

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बैंक ऑफ वॉइस के फाउंडर अश्विनी राणा ने कहा है कि सरकारी बैंकों को गांवों तक पहुँचने के उदेश्य से 1975 में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना की गई। आज देश में 43 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की 26 राज्यों और 3 केन्द्रीय शासित प्रदेशों में लगभग 22000 शाखाएं हैं। 1980 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण का दूसरे चरण में छह निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। इसके विपरीत 1991 के आर्थिक सुधार के बाद सरकार बैंकों के निजीकरण की ओर आगे बढ़ी , जिसे 'नई आर्थिक नीति या एलपीजी नीति' के रूप में भी जाना जाता है। 1994 में नये प्राइवेट बैंकों का युग प्रारम्भ हुआ । आज देश में 8 न्यू प्राइवेट जनरेशन बैंक और 13 ओल्ड प्राइवेट जनरेशन बैंक कुल मिलकर 21 प्राइवेट बैंक काम कर रहे हैं। 2018 में सरकार ने इण्डिया पोस्ट पेमेंट बैंक की स्थापना की जिसका उदेश्य पोस्ट ऑफिस के नेटवर्क का इस्तेमाल करके बेंकिंग को गाँव गाँव तक पहुंचाना था । इसके साथ साथ और कई प्राइवेट पेमेंट बैंकों की भी शुरुआत हुई ।

55 वर्षों के कार्यकाल में सरकारी बैंकों ने बैंकिंग को आम जनता तक पहुँचाने का काम तेजी से किया है। जो बैंक आम जनता तक नहीं पहुंच पाए थे सरकारी बैंकों के सहयोग से लगभग 51 करोड़ जनधन खाते खुलवाकर आम जनता को बैंकों से जोड़ा है। पिछले दस वर्षों में मोदी सरकार की योजनाओं जैसे जनधन खाते खोलना, मुद्रा लोन, प्रधान मंत्री बीमा योजना, प्रधान मंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना, अटल पेंशन योजना, प्रधान मंत्री स्वनिधि ऋण योजना, किसान सम्मान की किश्त देने का काम, किसान क्रेडिट कार्ड का क्रियान्वयन इन सरकारी बैंकों ने उत्साह से किया है। प्राइवेट बैंक का इसमें योगदान न के बराबर रहा है ।

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