भिवाड़ी. चौपानकी इलाके के गांव सारेकलां में जहां आतंकी कैम्प चल रहा था, वहां घना जंगल और पहाड़ है। जंगल भी ऐसा कि लोग छिप जाएं तो उन्हें ढूंढऩा आसान नहीं होगा। राजस्थान पत्रिका की टीम ने जंगल में कई घंटे बिताए और यह जानने की कोशिश की कि आखिर अल-कायदा इन इंडियन सब कॉन्टिनेंट (एक्यूआईएस) के आतंकी मॉड्यूल का किसी को पता क्यों नहीं चला ?
पत्रिका टीम अजमेरी नाके के बराबर में स्थित बांध की पाल से पहाड़ पर चढ़ी। मुख्य रोड से पहले सिर्फ बांध की पाल ही नजर आ रही थी। धीरे-धीरे आगे बढ़े तो रास्ता नजर आने लगा। जंगल में चारों तरफ घने पेड़, घास-फूस थी, लेकिन शुरुआत में करीब एक किमी की पगडंडी पर कोई वनस्पति नहीं उगी थी। ऐसा लग रहा था मानों इस रास्ते पर बड़ी संख्या में चहलकदमी हो। पैदल चलने वालों की वजह से एक पांव का रास्ता पहाड़ के अंदर ले जा रहा था। एक किमी के बाद यह रास्ता समाप्त हो गया। धीरे-धीरे आगे बढ़ते गए तो पहाड़ के ऊपर कई जगहों पर एकदम सपाट मैदान देखने को मिले, जिनके बीच में पेड़ थे। अगर ड्रोन से भी निगरानी की जाए तो पेड़-पौधे और झाडिय़़ों के बीच छिपकर आसानी से बचा जा सकता है। पहाड़ के ऊपर चढऩे के बाद चारों तरफ घने जंगल ही नजर आए। पहाड़ के ऊपर एक जगह पर पत्थरों का चूल्हा भी दिखाई दिया।
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