प्रेम भारतीय परिपेक्ष्य में

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Transcript
00:00प्रेड़ना कथा
00:04प्रेम भारतीय परिपेश में
00:07प्रेम का और देवास के प्रेम की कोई सीमा ही नहीं थी
00:12दोनों की उम्रों में दस वर्षों का फ़रक था
00:15परन्तु दोनों की आत्माये एक हो चुकी थी
00:19ये सब होते वो भी वो दोनों अलग-अलग घरों में रहते थे
00:22उनके दिल मिल चुके थे
00:24और उन्होंने मन से अपने आपको विमाहित मान लिया था
00:28दोनों ही नहीं जानते थे के उनका भविश्य क्या था
00:31इसलिए वर्तमान में जीते थे
00:35वो दोनों जीवन का संपूर्ण आनन्द लेते थे
00:38बहदूर प्रेमी प्रेमिका थे प्रियंका और देवास
00:42सो समाज के नीमों की और समाज के पुराने रूडिवादी बिचारों की बिल्कुल परवाह नहीं करते थे
00:48वो किसी भी अफ़वा और लोगों की बातों पर बिल्कुल ध्यान नहीं देते थे
00:53वैसे तो प्रियंका के माता पिता देवास का आदर करते थे
00:57परन्तु वो उन दोनों के विवाह के विरुद्ध थे
01:00देवास पेशे से एक कंप्यूटर इंजिनियर था
01:03और एक बहुत बड़ी कंपनी में उसकी बहुत अच्छी नौकरी थी
01:07उसका बहुती प्रतिबाशारी व्यक्तित्व था
01:10किसी भी समधान का समधान वो चुट्कियों में खोज लेता था
01:15देवास के मित्र उसकी सला लिया करते थे
01:19देवास को मानव मनो विज्ञान की बहुत अच्छी जानकारी थी
01:22वो बहुत किताबे पढ़ता था और प्रियंका और अपने दोस्टों के साथ
01:25बहुत से विश्यों पर चर्चा किया करता था
01:28समाध में पार्टी और इत्यादी में वो भाग तो लेता था
01:31परन्तु वो बहुती अनुशाशन में रहता था
01:34सभी ज़वान औरते उसके जासे पती को पाकर खुद को भागेशाली मांती थे
01:39वैसे तो दफटर में बहुत सी खुब्सूरित ज़वान लड़किया थी
01:43परन्तु प्रियंका ने देवास का दिल बहुती सपलता पुर्वग ढंग से चुरा लिया था
01:49दोनों के बाता पिता भी आपस में मित्र थे
01:53और एक परिवार के लोग दूसरे परिवार के लोगों से मिलते रहते थे
01:58देवास का घर प्रियंका के घर से कुछ ही दूरी पर था
02:01उनका प्रेम रोमान्च से भरा हुआ था
02:04प्रियंका के घर में जब भी कोई खास चीज पकाई जाती थी
02:08तो वो ही एक प्लेट या कटोरे में वो देवास के घर में देवाती थी
02:12और ऐसा ही देवास भी करता था
02:14प्रियंका को देवास की मम्मी से बाते करना भी बहुत अच्छा लगता था
02:18उसकी मम्मी बहुत ही विनम्री शुत्री थी
02:21प्रियंका और देवास की मम्मी एक दूसरे को खाना पकाने की नई नई विदिया भी बताती रहती थी
02:27दोनों बहुत से विश्यों पर चर्चा भी करती थी
02:30देवास के डैड़ी भी बहुत अच्छे इंसान थे
02:33प्रियंका अंकल के विक्तित्व को देवास के विक्तित्व से मिलाया करती थी
02:37दोनों ही बहुत प्रतिमा शाड़ी थे
02:40देवास के डैड़ी बहुती दायालू इंसान थे लेकिन
02:42देवास की मम्मी थोड़ी सी कथोड थी
02:45दोनों को ही प्रियंका अच्छी लगती थी
02:48वो दोने ही चाहते थे के देवास और प्रियंका की शादी हो जाये
02:52विशेश अफसरों पर या क्योहरों के मक पर
02:55दोनों पड़िवार एक दूसरे के घर पर जाया करते थे
02:58प्रियंका को देवास की मम्मी के साथ उनकी रसोई में
03:01मदद करना अच्छा लगता था
03:04देवास के डैड़ी प्रियंका के मम्मी और डैड़ी के साथ
03:07बाहर के कमरे में बैटकर गप्पे लडाते थे
03:10वैसे तो प्रियंका के डैड़ी और मम्मी दोनों ही देवास से बहुत प्रभावित थे
03:15परब्तु प्रियंका के मातापिता पुराने समाज की परंपराओं को मांते थे
03:20एक दिन उन्होंने बातों बातों में ही देवास के मातापिता को बता दिया था
03:24कि वो प्रियंका के लिए उसकी उम्र का ही लड़का खोज रहे थे
03:28देवास प्रियंका से दस बरस बढ़ा था
03:31फिर भी देवास ने हार नहीं मानी
03:33उन दोना का प्रेम बढ़ता ही गया
03:36देवास के मातापिता ने तो अनौपचारिक ढंग से प्रियंका को अपने घर में सुखार कर लिया था
03:41प्रियंका शिक्षिका बनने के लिए अपनी एमेट की पढ़ाई कर रही थी
03:46देवास के ममी डाइडि को शर्मीली, मीथा बोलने वाली, खुबसूरत प्रियंका बहुती अच्छी लगती थी
03:52प्रियंका और देवास एक दूसरे के बिना एक दिन भी नहीं बिता सकते थे
03:57जब वो अकेले होते थे और घर में और कोई नहीं होता था
04:00तो वो शारीरिक बंधनों को भी तोड़ देते थे
04:03लोग बहुत सी बाते करते थे पर वो किसी की भी परवान नहीं करते थे
04:07जब देवास ने प्रियंका के सापने विवाह का प्रस्ताव रखा था
04:10उसकी खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था
04:13एक दिन देवास ने प्रियंका से कहा के उसके पास एक योज़ना थी
04:18हम दोनों अमेरिका चले जाएंगे और शाड़ी करके वही रहेंगे
04:21वहाँ तुम्हारे ममी डड़ी का समाज नहीं होगा
04:24प्रियंका को ये विचार अच्छा लगा था
04:28वह चात्र के रूप में अमेरिका जाने को तयार हो गई
04:31उसको इस तरह वीजा मिलना भी आसान होने वाला था
04:34प्रियंका को अमेरिका के एक कॉलेज में चात्र बत्ती भी मिल गई
04:38देवास ने प्रियंका का एक तरफ का टिकट भी बुक करवा दिया था
04:43एरपोर्ट पर देवास उसको छोड़ने आ रहा था
04:46वह सिर्फ देवास के कारणी अमेरिका जाने में सपल हो सकी थी
04:49प्रियंका ने प्रतिन दिन उसको फोन करने का बादा किया
04:53एक वर्ष के बाद देवास ने भी अपनी कंपनी में सिफारिष करवा कर
04:58प्रियंका देवास को एरपोर्ट पर लेने को आयी थी
05:01एक दूसरे को दो वर्षों के बाद मिलकर दोनों बहुत ही खुश रहे
05:04प्रियंका ने खुशी से कहा देव आखिर हमने ये कर दिखाया
05:08दोनों ने एक नया घर किराय पर ले लिया
05:10दोनों के दफ़तर उस घर से कुछ ही दूरी पर थे
05:12एक साल तक दोनों उस घर में रहे
05:14प्रियंका भी शिक्षी का बन चुकी थी
05:16अब दोनों ने शादी करके अमेरिका के लिए
05:18दोनों ने अदालत में जाकर शादी कर ली और दोस्तों के साथ एक छोटी सी पार्टी भी गी
05:48अमेरिका में उनके ऊपर ना तो समाज का कोई बंदन था
05:52ना ही उम्र के फरक का कोई बंदन था
05:54और ना ही लोगों के द्वारा आलोचना का भै था
05:57लेकिन जब प्रियंका के मातापिता को शादी की बात मालूं भई
06:01वो दंग हो गए
06:04आखिर अपने शादी के एक बरस के बाद
06:07प्रियंका और द्वास अपने मातापिता को मिलने भारत आये
06:11द्वास के मातापिता ने तर दोनों का तहे दिल से स्वागत किया
06:15मातापिता ने दोनों को ही आशिर्वाद दिया
06:19प्रियंका एयर्पोर्ट से द्वास और उसके ममी डाइडी के साथ
06:22उनके घर उनकी बहु के रुप में चली गई
06:25अगले दिन उस दे अपने मातापिता से मिलने का साहस से गत्वित किया
06:29वो नहीं जानती थी कि उसके रुडीवादी मातापिता
06:32उसको देखकर क्या प्रतिक्रिया दे गया
06:35प्रियंका की ममी ने दर्वाजा खोला
06:38बेटी को तीन वर्षों के बाद देखकर वो खुद को रुप नहीं सकी
06:41उन्हां ने प्रियंका को गले से लगा लिया और जोर जोर से रुडने लगी
06:45उसके देड़ी ने भी प्रियंका का घर में स्वागत किया
06:48एक घंटे तक वो लोग बाते करते रहे हैं
06:51मा ने प्रियंका से पुछा कि क्या वो देवास के साथ खुश थी
06:55प्रियंका ने कहा कि वो बहुत अधिक खुश थी
06:58मा ने कहा कि उसके अच्छे कर्मों का ही फ़ल था
07:01कि उसको देवास जैसा पती मिला था और इतना अच्छा परिवार मिला था
07:05जाने से पहले प्रियंका ने अपने ममी डेड़ी से कहा
07:08आज रात को हम लोग डिनर के लिए देवान रेस्टोरन्ट जाने हैं
07:11आपको भी आना होगा हम आपका इंतजार करेंगे
07:14उसके ममी पापा ने स्विकार कर लिया
07:17प्रियंका के सर से एक बड़ा बोज उतर गया था क्योंकि
07:20उसके ममी डेड़ी ने देवास को भी स्विकार कर लिया था
07:23और उनकी शादी को माननिता दे दी थी
07:26रेस्टोर्ट में प्रियंका के ममी डेड़ी ने
07:29देवास के ममी डेड़ी से माफ़ी मांग लिया है
07:32सभी लोग खुश हो गया और डिनर का आनंद लेने लगया है
07:35दोनों के ममी डेड़ी ने देवास और प्रियंका को बहुत से उपाहर दिये
07:39उनकी शादी की पहली साल विरा बहुत सुखत थी
07:43अगले दिन प्रियंका के ममी डेड़ी ने देवास के ममी डेड़ी को
07:47अपने घर खाने पर बुलाया
07:49सभी घिले शिक्वे समाफ्त हो चुके थे
07:51और दोनों परिवारों के बीच की दूरिया समाफ्त हो गयी थी
07:55अपने परिवारों के साथ पंधरा दिन बिताने के बाद
07:58प्रियंका और देवास एक मेहने के लिए स्विच्चर लैंड चले गया
08:01उनके जाने के बाद भी दोनों परिवार एक दूसरे से मिलते रहे हैं
08:05देवास के डेड़ी ममी और प्रियंका के ममी डेड़ी
08:09अब अक्सर अपने रुडिवादी समाज की बुराईयों के बारे में ही बाते करते थे
08:13प्रियंका के डेड़ी कितने अच्छे हैं गोरो के देश
08:17न जात रा पात देवास के डेड़ी
08:21कोई धर्म ग्रोत्र नहीं पूछता देवास की ममी
08:25आलोचना करने वाला समाज नहीं है वो प्रियंका के ममी
08:29कोई किसी के निजी जीवन में नहीं जाता है
08:31हमारे जमाने में तो कितनी परिशानी होई थी
08:33मेरी इन से शादी नहीं होती
08:35क्योंकि हमारी कुंदली रही मिल रही थी
08:37प्रियंका के डेड़ी
08:39सब बकवास लगता है अब तो सब
08:43दिल मिल जाएं तो क्या समाज और क्या जाती धर्म हो
08:46हमारे बच्चों ने हमारे विचारी बदल दिये हैं
08:49देवास के डेड़ी
08:51चलिये जी अब छोड़िये अंत भला तो सब भला
08:54अब तो तैयारिय कीजिए अगले साल
08:56हम सभी अपने बच्चों के पास दो महिने बिटाने अमेरिका जाएंगे
09:00क्या विचार है आपका
09:02सभी ने खुशी से सहमती देदी
09:04प्रियंका और देवास ने अपना ही नहीं
09:06अपने मम्मी पापा के जीवन में भी एक नयापन
09:09और नई खुशीया ला दी थी
09:11हाला कि उनके रिष्टदार और पास पड़ास के लोग बाते करते रहे
09:15परन्तु मम्मी पापा ने किसी की बात को भी गंबीरता से नहीं लिया
09:19अंत में प्रियंका के डैडी ने कहा
09:21अगर भारत में सभी माता पिता समय रहते हैं
09:24हमारी तरह सुधर जाएं
09:26तो हमारे देश को भी अमेरिका या एंगलेंड की तरह
09:28अमीर और खुशाल होने में जादा समय नहीं लगेगा
09:32हमारे याँ बहुत सा समय और बहुत से पैसे तो
09:35आडंबरो और कर्मकांडो में ही खर्च हो जाते हैं
09:38और उपर से आपसी जगडे अलग
09:41बहुत बहुत धन्यवाद
09:43प्रेणा कथा
10:10प्रेणा कथा
10:14जुलाई की वो रात
10:17पाने चार बजे की
10:20डाइमंड हार्बर स्याल्डा लोक का ट्रेन
10:23हमेशा की तरह ही भरी होई थी
10:27ट्रेन के उस रूट पर
10:29हमेशा ही बहुत से रुकांटे रहती थी
10:32और वो रेल कभी भी समय से नहीं चलती थी
10:36मेरा सवभाग्य था कि मुझे
10:39किसी तरह धक्का मुक्की करके
10:41एक सीट मिल ही गई
10:45परन्तु मुझे बहुत ही जम कर बैट रहा था क्योंकि
10:48तीन लोगों को बैठाने वाली उस बर्थ पर
10:50उस समय छे लोग बैठे हुए थे
10:53जड़ा से धक्के से मैं नीचे फर्ष परा
10:55जा गिरना था
11:22परन्तु मुझे बहुत ही जम कर बैट रहा था क्योंकि
11:24तीन लोगों को बैठाने वाली उस बर्थ पर
11:26उस बर्थ पर
11:28जम कर बैठाने वाली उस बर्थ पर
11:30जम कर बैठाने वाली उस बर्थ पर
11:32जम कर बैठाने वाली उस बर्थ पर
11:34बिड़ में लोगों का इच्छा पूर लोग उसके लिए रास्ता बनाने लगे
11:38किसी ने कहा दीदी
11:40जड़ा जल्दी चलिये
11:42मेरा संतुलन बिगर रहा है
11:44बेचारी औरत आगे
11:46बढ़ नहीं सकी क्योंकि बिड़ बहुत थी
11:48वो जुप कर अपनी सीट के नीचे से कुछ खीच रहे लगी
11:52एक यात्री ने कहा दीदी अब क्या हुआ
11:54जल्दी से सीट चलिये और आगे बढ़िये
11:56वो बेचारी डर्दे डर्दे बोली
12:00मेरा बोरा सीट के नीचे है
12:02और मैं उसको बाहर नहीं निकाल पा रही हूँ
12:06कुछ यात्री ने मुझ बनाए
12:08पर कुछ ने नीचे जुप कर
12:10उसके बोरे को सीट के नीचे से
12:12खीच कर बाहर निकाल दिये
12:14उन में से एक ने कहा दीदी
12:16ये बोरा तो बहुत ही भारी है
12:19ट्रेन से इसको उठरने में कौन तुम्हारी मदद करेगा?
12:24इसको दर्वाजे तक कैसे ले जाओगी? इतनी भीड है
12:28बेचारी इस्ती तो भैवीत ही होगी
12:30और विनिती भरे स्वर्में बोली
12:34मेरे साथ मर्दया बड़ा नहीं है
12:38मैं नहीं जानती कि इस ट्रेन में इतनी भीड होगी
12:44सभी अपनी अपनी टिपडियां करने लगे
12:47परन्तु उस असाया उरद की मदद करने को आगे कोई भी नहीं आया
12:53मुझे तो उस गाड़ी से शैल्दा तक जाना था
12:57और मैं अपनी सीट नहीं छोड़ना चाहता था क्योंकि
13:00अगर मैं उठता तो तुरंती कोई और व्यक्ति मेरी सीट पर कभजा कर लेता
13:06फिर भी मेरे अंदर की इंसानियत ने मुझे बैठे नहीं रहने दिया
13:11मैं उस असाया उरद को ऐसे ही तो नहीं देख सकता था
13:15मैं अपनी सीट से उठा और बोला लाईये
13:18मैं आपका बोला ले चलता हूँ
13:21आप अपने बच्चों को लेकर दर्वाजे तक पहुंसेन का प्रयास करिये
13:25नहीं तो आप अपने स्टेशन पर उतर नहीं सकेंगी
13:28मैं बोला ले जाता हूँ
13:32उसने मेरी तरफ आभार वरी निगार से देखा
13:35और अपनी बेटी को सिनने से चिप्टाए
13:38और अपने बेटे का हाथ थामे
13:40भीर में से रास्ता बनाती हुई
13:43दर्वाजे की तरफ बढ़ने लगी
13:46वो बीच-बीच में बोलती जाती थी
13:49मुझे गर्या में उतरना है दादा
13:52मुझे जानने दीजिये
14:00मैं बोरे के कोने को पकड़कर
14:03भीर को इदर-उदर हटाता हुआ
14:06जर्वाजे की तरफ खीचने लगा
14:09लोग चिला रहे थे और मेरा विरोत कर रहे थे
14:12पर मैंने किसकी भी नहीं सुने
14:15कुछी देर में ट्रेन गर्या इस्टेशन में प्रवेश कर गई
14:20उस इस्टेशन पर जादा यात्री नहीं उतर रहे थे
14:25लेकिन दर्वाजे के पास बहुत भेड थी
14:28मैंने उस जमाना उरत की आवाज सुनी
14:30कृपया उतरने दिजिये
14:31मेरे साथ मेरे जो बच्चे है
14:33उसकी गोडी में उसकी बच्ची अब लोने लगी थी
14:36और उसका बेटा उसका हाथ था
14:38मैं बार बार अपनी माँ को पकार रहा था
14:40माँ सांस नहीं ले रपा रहा है
14:42बहुत गर्मी है माँ
14:44मैं भोती कठिनाई से उस औरत का बोरा खीच कर
14:47दर्वाजे की तरफ ला रहा था
14:49मैं दर्वाजे तक पहुझी गया
14:52बेचारी औरत प्लेटफार्म पर उतरते उतरते
14:54गिरते गिरते बची
14:56उसका बेटा उसके पीछे ही था
14:59मैं भी प्लेटफार्म पर ख़ड़ा हो गया परतु
15:01बोरा अभी भी दर्वाजे पर ही था
15:04ट्रेन फिर से चलने वाली थी
15:06मैंने पूरा जोर लगा का उसके बोरे को खीचा
15:09और नीचे प्लेटफार्म पर पटक लिया है
15:12बहुत से लोगों के पैरों से चुझ गया था वो बुरा
15:15उन्होंने मुझे भद्धी भद्धी कालियों भी दिये
15:17मैंने किसी तरह अपने संतुलन कायम रखा
15:21ट्रेन ने गति पगड़ ली थी
15:23मेरे लिए भी अब दोड़ कर वापिस दिब्बे में चड़ना असार नहीं था
15:27मैंने कोशिश की लेकिन मैं वापिस ट्रेन पर नहीं चड़ सका
15:31हार कर मैंने अगली ट्रेन लेने का निर्ले लिया
15:35मैंने यो ज़वान आउरत की तरह देखा
15:38उसकी गोधी में उसकी बेटी अप शांत हो गयी थी
15:41वो मेरी तरह देख रही थी और अपना अंगुठा चूस रही थी
15:45उस ज़वान आउरत ने मुझे से कहा
15:48मैं नहीं जानती के मैं आपको कैसे धन्यवात हूँ
15:50आप ना होते तो मैं आज अपने सामान और बच्चों के साथ नीचे नहीं उतर सकती थी
15:55मेरे कारण आपकी ट्रेन छूड गई
15:58मैंने कहा कोई बात नहीं मैं अगली लोकल पकड़ लूँगा
16:01लेकिन आपको अपने बच्चों के साथ इतना सामान लेकर
16:05इस ट्रेन से यात्रा पर यात्रा नहीं करने चाहिए
16:09आप तो जाती हैं अगली लोकल ट्रेनों में कितनी भीड होती है
16:13वो बोली जब मैं ट्रेन में बैठी थी तो
16:16हुटुर में तो ट्रेन बिलकुण खाली थी
16:19मैंने तो सोचा भी नहीं था कि आगे इतनी भेड हो जाएगी
16:23उस गर्या स्टेशन पर सामान उठाने वाला कोई कुली भी नहीं था
16:27मैं नहीं जानता था कि वो कैसे अपने सामान को
16:31आगे ले जाने वाली थी
16:34मैंने पूछी लिया
16:36क्या आप यहाँ नज़ी की रहती हैं
16:40आप अपने बच्चो और इस इतने भारी बोले को
16:44अब कैसे ले जाएगी
16:46वो बोली नहीं मैं स्टेशन से बहुत दूर रहती हूं
16:50लेकिन मैं एक साइकल रिक्षा ले लूगी
16:52और घ़र पहुंच जाओगी
16:54आपका बहुत बहुत शुक्रिया
16:56मैं अकेली कैसे करती यह सब
16:58उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई थी
17:00मैंने दिखा कि उसका चेहरा बहुत ही आकर्शक था
17:04मैंने पहले उसके चेहरे की तरप दिखा ही नहीं था
17:08मैंने जुक्कल बोला उठाते वे कहा
17:10धन्यवाद की जिरोत नहीं है लाईये
17:12मैं ये बोला रिक्षा तक पहुचा देता हूँ
17:14वो मेरा विरोध करने लगी
17:16और अंतमे मैंने हार कर उस बोले को छोड़ दिया
17:19वो फिर से मुस्कुराई
17:21वो इस टेशन से बाहर जाने वाले गेट की तरप बढ़ गी
17:24मैं भी पिछे पिछे उसके साथ ही इस टेशन से बाहर आया
17:28परतु वहाँ पर एक भी साइकल रिक्षा नहीं था
17:30वो तो हरान हो गी
17:32अंधेरा हो चुका था
17:34उस टेशन के पास की चाय की दुकान भी बंद हो रही थी
17:37उसने जाकर उस दुकान के मालिक से कहा
17:40आज कोई भी रिक्षा नहीं है
17:42हमको मालिंब होगा के
17:44रिक्षा वालों में जगडा हो गया था
17:46उसके कारण सभी रिक्षा वालों ने
17:48उस दिन हरताल कर दे थी
17:50दो रिक्षा युनियन का जगडा काफी बढ़ गया था
17:53बिधारी आओलत नहीं समझ पा रही थी
17:55कि उसको क्या करना चाहिए
17:57मैंने ना चाहते हुए भी पूछी लिया
17:59आपका घर कितनी दूर है
18:01मैं आपका बोरा आपके घर पहुचा देता हूँ
18:03वो बढ़बड़ाई नहीं ने
18:05आपने तो पहले ही मेरे इतनी मदद कर दिये
18:07मेरा घर यहाँ से काफी दूर है
18:25यहाँ तो तुम राद भर खड़ी रहोगी और कोई भी नहीं आएगा
18:27वो विरोध करने लगी लेकिन
18:29कोई और विकल्प भी तो नहीं था
18:31उसने मुस्परा कर कहा
18:33अब मैं आपसे क्या करूँ
18:35आप मेरे लिए इतनी तक्रीफ उठा रहे हैं
18:37वो आगे आगे चलने लगी है
19:07रास्ता आगे काफी गुभावधार था
19:09उसने कहा ये रास्ता बहुत लंबा होगा
19:11अगर आपको बुरा नहीं लगे तो
19:13हम खेतों में से होकर जा सकते हैं
19:15जल्दी पहुँँ जाएगे
19:17हम लोग खेतों की पकड़ंडी पर चलने लगे
19:19चंद्रमा अब आकाश में पूरी तरह से दिखने लगा था
19:23खेत पानी और कीचड से भरे होगे थे
19:25कुछ आगे चलकर पकड़ंडियों में भी कीचड था
19:29और चलना बहुत ही खतरनाक हो गया था
19:31फिर भी मैं हिम्मत करके आगे बढ़ता ही रहा
19:36फिसलने का हर मौका था
19:38हम बहुत से खेतों को पार करते हुए चलते रहें
19:41वो और उसके बच्चे आगे आगे थे
19:43अचानक मेरा पैर फिसल गया
19:45मैं नीचे गिर गया और बोरा मेरे उपर
19:47मैं जोर से चिलाया
19:50वो अरद भी रुक गयी और गला नहीं भरी आंको से
19:52मुझे देखने लगी
19:54मैं खेत में कीचर में पढ़ा था
19:56उसने कहा अपना हाथ दिजिये
19:57मैं आपको उठाती हूँ
19:59उसने मेरा हाथ पकड़कर मुझे फिर से
20:01मेरे पैरों पर खरा कर दिया
20:03मेरे जुते खीचर से लगपत हो गये थे
20:05और कपड़ों का तो बुरा हाल था
20:07उस आरत ने कहा
20:09अब हमारा घहर नज़ी की है
20:11उसने अपने बेटे से कहा
20:13अपनी बेहन का हाथ पकड़ो और उसको घहर ले जाओ
20:15उसने बोरे को अपने सिर्फर लग लिया
20:18मैंने उसकी मदद की वो आ गया कि चलने लगी
20:20मैं सोच रहा था कि
20:22मैं वापिस से स्टेशन कैसे पहुँचूँगा
20:24पाँच मिनट के बाद हम
20:26एक कमरे के मकान के सामने खड़े थे
20:28खेट समाप्त हो गय थे
20:30औरत उस मकान की तरह बढ़ चली और
20:33उसने कहा आखिर घरा आयी गया
20:35उसने मकान के सामने खड़ी होकर
20:37अपनी साडी के पल्लू से
20:39बदा हुआ एक चाबी का चलना खोला और
20:41दर्वाजे पर लगे ताले को खोलकर
20:43अंदर दाखिल हो गयी
20:46मैं उसके बच्चों के साथ बाहर अंधेरे में ही खड़ा था
20:49अंधेरे में कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था
20:51तबी उसने अंदर एक माचिस की तिली जलाई
20:53और एक लाल्टेन बाल दी
20:56उसने उस लाल्टेन को छट के एक बांस पर लटका दी
21:00आईए ना अंदर आईए
21:03मैं इसके चाता वो बोला
21:05मुझे इस टेशन वापिस जाना होगा
21:07अगली ट्रेन पकरनी है
21:09मैं आब इस टेशन कौन से रास्ते से वापिस जाओ
21:11उस आरब में गुछे से कहा
21:13ऐसे कैसे चले जाएंगे
21:15कुछ खाय पिये बिना नहीं जाने देंगे आपको
21:17आपके कपड़े भी कितने गंदे होगे
21:19आईए बैठे
21:21मैं खाना बनाती हूँ और आपकी कमीज भी दो देती हूँ
21:25मुझे भी उसका विचार पसंद आया
21:27कीचर से भरी कमीज पहने
21:29मैं स्टेशन तो नहीं जा सकता था
21:31मैंने अपने दोनों जुते उतार दिया
21:33और अपनी जुराबों को मिचोड कर
21:35पानी निकाल दिया
21:37उनको दन्वाजे पर इरक कल
21:39मैं हिचकिताते हुए अंडर जाने लगा
21:41तभी उस औरत ने मुझे
21:43एक तौलिया देते हुए कहा
21:45वो उझडर एक तालाब है बीच है
21:47आप जाकर आपनों दो आईए
21:49आपके कपड़े तालाब के किनारे के छोड दिजेगा
21:53ये सारी और तौलिया ले पेट दिजेगा
21:57मैं तब तक चावल उबलने रख देती हूँ
22:00मैं किसी तरह कीचर भरे रास्ते से उठता हुआ तालाब तक पहुज गया
22:06मुझे राहत बहसूस हुई
22:08जब मैंने दिखा कि तालाब के किनारे पत्थर की सिर्या थी
22:12मैंने पूरे कपड़े उतार कर तालाब के पानी में इस्नां किया
22:16और फिस उस औरंत ने दिए हुई एक साड़ी अपने बज़न पर लपेट ली
22:20मैंने अपना पर्स और अपनी कंगी साड़ी के पल्लु से भाग ली
22:25मैंने तॉलियों को सर पर लपेट लिया
22:28मैंने अपनी कमीज, पैंस और अपने अंदर वियर को कई बार पानी में डूबोडू बकल, कीचर साफ किया
22:34और उनको फिर निचओड कर अपनी बगल में लवा लिया
22:37मैं धुले हुए कपड़ों को बगल में लवाये, मकान की तरफ बढ़ने लगा
22:42अपने अंदर के एक कोने में नंदी थी जल रही थी, और उस पर एलिमुनियम का एक पतीला चरा था
22:47वो आरत आग के पास ही बैठे थी, वो कुछ आलु छिल रही थी, कुछ कटे हुए प्याल एक प्लेट में पास ही रखे थे
22:55उसका बेटा पास बैठा बिसकित खा रहा था और मां को काम करते हुए देख रहा था, उसकी छोटी बेटी सो चुकी थी और वही जमिन पर एक बिस्तर पर पढ़ी थी
23:07उस आरत में मुष्कुरा कर मेरी तरफ देखा और कहा तो आप नहाद होकर आ गए, अब तो अच्छा महसूस हो रहा होगा, आपने कपड़े क्या लोड़ी हैं, मैं धोड़ी थी, दीजिए आपके कपड़े मैं डोरी में इनको सुखा देती हूँ, उसने आपके पास उपर
23:37वो बाहर चली गी, मैं उसके बेटे के सामने ही बैठा था, वो मुझे भूर रहा था, मैंने मुष्कुरा कर उस लड़के से पूछा, तुम्हारा नाम क्या है, वो बोला किशोर, श्कूल जाते हो, क्या नाम है तुम्हारे श्कूल का, शैनी टॉक्स, अपर केजी, श्कू
24:07जाते है, तुम्हारा नाम किशोर, शैनी टॉक्स, अपर केजी, शैनी टॉक्स, अपर केजी, शैनी टॉक्स, अपर केजी, शैनी टॉक्स, अपर केजी, शैनी टॉक्स, अपर केजी, शैनी टॉक्स, अपर केजी, शैनी टॉक्स, अपर केजी, शैनी टॉक्स, अपर केजी,
24:37शैनी टॉक्स, अपर केजी, शैनी टॉक्स, अपर केजी, शैनी टॉक्स, अपर केजी, शैनी टॉक्स, अपर केजी, शैनी टॉक्स, अपर केजी, शैनी टॉक्स, अपर केजी, शैनी टॉक्स, अपर केजी, शैनी टॉक्स, अपर केजी, शैनी टॉक्स, अपर केजी, शैनी
25:07टॉक्स, अपर केजी, शैनी टॉक्स, अपर केजी, शैनी टॉक्स, अपर केजी, शैनी टॉक्स, अपर केजी, शैनी टॉक्स, अपर केजी, शैनी टॉक्स, अपर केजी, शैनी टॉक्स, अपर केजी, शैनी टॉक्स, अपर केजी, शैनी टॉक्स, अपर केजी, शैनी टॉक
25:37मेरा एक देवर है पर उसकी पत्री ने हमको अपने साथ रखने से एंकार कर दिया
25:43और कहा कि मैं अभागिन थी जिसने अपने पती को खा लिया था
25:47वो कहती है कि मगर उनके साथ रही तो उसका परिवार भी बर्माद हो जाएगा
25:54मेरे पती ने कुछ वर्ष पहले ये जमीन खरीदी थी
25:57वो हमारे लिए एक घर बनवाना चाहते थे ये जमीन पर
26:00पर लिए तो भाग्य को कुछ औरी मन्जूर था
26:03मैं उनको जाने के बाद यही पर एक कमरा बनवाकर रहने लगी
26:08बातों भी बातों में उसने प्याद चोक कर अंडा करी पकने के लिए
26:11चूरे पर चरा दी थी, मैंने फिर से कहा
26:14लेकिन आप ये बुरा लेकर कहां से आ रही थी
26:17मेरी बड़ी बैहन हुत्तुर में रहती है
26:20उनके पास भी कुछ जमीन है
26:23पर आज रात को ये समस्या होगी
26:53उसने कुछ देर बाद प्लेटे सजा दी और चावन और अंडा करी परोष दी
26:57लीजिये खाना तयार है, जो कुछ बन पड़ा बस बना दिया
27:00आए बैठी और जो है वो ही थोड़ा खा लीजिये
27:03पता नहीं आपको अच्छा लगे है नहीं
27:06किशोर अपनी प्लेट लेकर चौपड़ी मार कर खाने बैठ चुका था
27:10वो अपनी बेटी को उठाने लगी, रुची बेटी रुची उठो
27:13खाना तयार हो गया है, अंडा करिये खालो फिर सो जाना
27:17उसकी बेटी उठी और बोली मुझे नहीं खाना, मुझे बहुत नीन आ रही है
27:21बेटी बस थोड़ा सा खा लो और फिर सो जाना
27:24उसने बेटी को गोदी में उठा ली और अपने हातों से उसको निवाले खिलाने लगी
27:29वो मेरी तरफ देख कर बोली, खाना शुरू कीजिये न, गरम गरम खाये
27:33उसका बेटा बोल पड़ा, मैं दो अंडे भाओंगा एक और दो
27:37वो बोली, नहीं बेटा, दो खाओंगे तो पेट खराव हो देगा
27:41वो पिरसे पुरे अंडे की मांग करने लगा
27:47मैंने खाना शुरू नहीं किया था, मैंने अपना अंडा उसको देते वे कहा
27:51लो, ये ले ले तुम, नहीं बागु, ये बिमार हो जाता है, नहीं तो मैं पहले ही इसके लिए
27:57दो अंडे पका देती, आप खाये
28:01आपका बेटा जित करने लगा तो उसने एक जहापर लगाते वे कहा, अब अपना खाना समाप्त करे और सोझा
28:07बच्चा बेचारा चुप चाप अपने चावल और करी खाने लिए बागा
28:11रुची खाने से एंकार कर रही थे, परन्तु फिर में माने एक दो निवाले उसके मुँमें ठूसी दिये
28:17फिर उसका मुँद धुलवाया और उसको बिस्तर पर लिटा दिया
28:20वो मेरी तरफ देखकर बोली, आप थोड़े चावल और करी आगलीजिये
28:24इतनी दूर वापर जाना है, फिर भूक लग जाएगे
28:27जी नहीं, मैंने पहले ही ज़्यादा खा लिया
28:30मुझे खाना खिला कर, उसने मुझे बाहर ले जाकर मेरे हाथ धुलवाये
28:34उसका बेटा तक तक सोचुका था
28:37मैंने कहा, अब मुझे भी चलना चाहिए, आगे भी बहुत देर हो गयी है
28:41उसने मेरे कपड़ों को हाथ लगा कर कहा, सिफ आदा गंटा और लगेगा इनको सुखने में
28:46पूरे सुख जायें तब ही पहनीगा, नहीं तो विमार हो जाएगे
28:50आप इदर थोड़ी देर आराम कर लीजिए, उसने फर्ष के एक कोने पर लगे, एक बिस्तर की तरफ संकेत करते हुए का
28:57मैं बिस्तर पर लेड़ गया और वो बोलने लगी, दो दो बच्चों को पालना अकेली मां के लिए कितना कठिन होता है, मैं बता नहीं सकती
29:05जब एक बिमार हो जाता है तो बहुती मुश्किल होती है, मैंने कहा आप तो बहुती भादुर हैं, आपके आसपास नहीं तो कोई पढ़ोसी है और नहीं कोई और सेवा, अकेले इस तरह दो बच्चों के साथ रहना भादुरी का ही काम है
29:19वो मुश्कुल आकर गोली, अगर मेरे पती जिन्दा होते तो असा नहीं होता, वो दो तीन महिने के बाद घर आकर हमारा नया घर बनवाने वाले थे, पराई उनकी मिर्ति के खमर, मेरे सपने विखर गए थे, उसकी आँखों से आंसु बील में लगे, मुझसे रहा
29:49उसने अचानक अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया, और सुपकने लगी, मैंने उसकी पीठ पर हाथ रख कर उसको सांतना देने का प्रयास किया, मैंने गौर से देखा कि वो वास्तव में बहुत खुब्सुरत थे, कुछ देर तक वो मेरे कंधे पर सर रख कर आसु बाती रह
30:19मैंने उसकी पीठ पर रख दिया, मैंने उसकी पीठ पर रख दिया, मैंने उसकी पीठ पर रख दिया, मैंने उसकी पीठ पर रख दिया, मैंने उसकी पीठ पर रख दिया, मैंने उसकी पीठ पर रख दिया, मैंने उसकी पीठ पर रख दिया, मैंने उसकी पीठ पर रख दि
30:49मैंने उसकी पीठ पर रख दिया, मैंने उसकी पीठ पर रख दिया, मैंने उसकी पीठ पर रख दिया, मैंने उसकी पीठ पर रख दिया, मैंने उसकी पीठ पर रख दिया, मैंने उसकी पीठ पर रख दिया, मैंने उसकी पीठ पर रख दिया, मैंने उसकी पीठ पर रख दि
31:19वो वही ज़वान उरद थी, मैं हरान होकर सोचने लगा कि किशोर और उसकी बेटी तो उसके पीठे चल रहे थे, तो फिर वो तीसरा बच्चा कहां से आ गया?
31:28अच्छानक मेरा जमान भूमने लगा और उस रात के शारीरित मिलन के दिर्शे मेरी आखों के सामने आने लगे, ट्रेन चलती जा रही थी और मुझे बालूम चल चुका था कि मैं एक बच्चे का बाब बन गया था, मैं गलावी से भड़ा ट्रेन में बैठा चला जा रहा �
31:58मैं जुलाई की उस रात का परिणाम उस औरत की गोजी में देख लिया था, जिसका मैं नाम भी नहीं जानता था
32:29प्रेणा कथा अंधे होने का अनुभव एक बाल हमारे व्यापार मंडल ने दिव्यां लोगों के लिए पैसे कठे करने के लिए एक कारिकरम का आयजन किया था, वो कारिकरम एक अंधे लोगों की संस्था में रखा गया था
32:53क्योंकि शुक्रवार की शाम को वो कारिकरम था, पहले तो मैंने वहाँ नहीं जाने के बारे में सोचा, परंतो फिर मैंने सोचा कि मुझे भी अपने अन्य व्यापारी साथियों की तरह दिव्यां लोगों के लिए कुछ तो करना ही चाहिए
33:07मैंने भी फ़ोन करके अपना नाम उस कारिकरम में भाग लेने के लिए लिखवा दिया, कारिकरम में मुफ़्त में रात का भोजन में मिलने वाला था, मैंने सोचा जाने में कोई हर्ज नहीं था, दूसरी बात मैं भी शुक्रवार की शाम को समय वितीद करने के लिए कोई �
33:37मैंने पाया कि वहाँ लगबख पचास बड़े बड़े व्यापारी और उद्योगपती आये हुए थे, कुछ विदेशी उद्योगपती भी थे, उनसे बात करके मुझे बहुत सी नई बातों का पतर चला, कुछ लोगों से व्यापार करने के प्रस्ताओं भी मिले, मैं ख�
34:07गंभीरता से उस कारिकरम में भाग ले रहे थे, हमको बताया गया कि वह सुस्ता कैसे अंधे लोगों को बढ़त करती थी और उनको पूरा जीवन चीज़े का मौका दे रही थी, विडियो देखने के बाद हमको एक बड़े सा हॉल में ले जाया गया, वहाँ के बारे में हम
34:37हमको बताया गया कि हम सभी व्यापारियों और उंजोग पतियों को एक बड़े से डाइनिंटेबल पर बिल्कुल अंधेरे में खाना खाना होगा, अगले लोग घंटों का कारिकरम बिल्कुल योजना बद्ध, संगटित और बहुत अच्छी तरह से निर्देशित किया गय
35:08उस लड़की ने हम से कहा, जब आप लोग अंधेरे में डाइनिंटेबल पर अपनी अपनी कुर्शियों पर बैठ जाएगे, आपके सामने चीजे इस तरह से रखी पिलेगी
35:20आपके सामने लगबग आठींज की दूरी पर खाने की प्लेट होगी, प्लेट के पास आपकी चमच एक तरफ होगा, प्लेट के उस तरफ एक काटा रखा होगा, प्लेट के दाई तरफ प्लेट को चू रहा एक गिलास होगा, प्लेट के बाई तरफ प्लेट को चू रहा ए
35:50दिवार वाले जग में संत्रे का जूस होगा, जग से पानी या जूस अपने ग्लास में भरते समय आपको अपने बाए हाथ की एक उंगली को ग्लास के अंदर लखनी होगी ताकि आपको वालम हो के ग्लास कितना भर गया है, आपकी प्लेट में पाँच परकार की खाने की च
36:20अपनी अपनी जगा बैड़ गए और अच्छानक बत्तियां बुज गई, बिल्कुल अंधेरा हो गया, तीन अंधे वेटर ही हमको खाना पर असने लगे, अगले दो घंटें बहुती रुमाचक थे, बिल्कुल अंधेरे में सिर्फ इस्पर्स करके चीजों को चूचू कर �
36:50कर रहे थे, जैसे हम लोग अपनी आँखों से देखकर अंधों की मदत करते हैं, हम अंधेरे में बहुती मजय से खा रहे थे, परतु वो एक बहुती कठिन अन्भो था, दो घंटे के बाद हमको पुछे गया, क्या हम सबने खाना खा लिया था, और पानी या जू
37:20क्या हम सबी भागेशाली थे, क्या हम इस दुनिये की खुफ़सूर्थी को अपनी आँखों से देख सकते थे,
37:26मैंने और साथी वियापैरियों में ये मैसूस कर लिया था, कि जीवन अंधेरे लोगों के लिए कितना कठिन होता है,
37:34दो अंधेरे में खाने में ही हमको ऐसा लगने लगा था, जैसे हम कोई बहुत ही खतरनाक इंतहान पास कर रहे थे,
37:42मुझे मैसूस हुआ कि हम वास्तर में बहुत ही स्वार्थी थे, क्योंकि हम कभी भी दिव्यांगो को गंबिर्था से नहीं लेते हैं,
37:50मैंने तुरन्त यह उस संस्था के प्रबंदक्ष मिला और अपनी जेप से चेक बुक निकालिए कर दस अजार डौलर का एक चेक काट कर नमको दे दिया,
38:01कहां मैं मुफ्त का खाना खाने गया था और कहां मैं दस अजार डौलर दान में दिया था, पर इतना खुश था क्योंकि मैंने लगा था कि जीवन में पहली बार मैंने कुछ अच्छा काम किया था, काश मैं दिव्यांगो के लिए कुछ और भी कर सकता,
38:18वित्रो दस अजार डौलर नहीं, आप जो कुछ भी करना चाहें कुरपया दिव्यांगो के लिए करें, आपकी छोटी मदद भी दिव्यांगो के लिए वरदान सावित हो जाएगी, कुरपया जितना बन पड़ें दिव्यांगो के लिए कीजिए, भगवान आपके खाजान
38:48प्रेड़ना कथा
39:04प्रेड़ना कथा
39:07चोटा भाई
39:10एक रात मैं अपने विस्तर पर बड़े बज़े से सो रही थी,
39:16अच्छानत मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मेरी सांस घोट रही है,
39:21मैंने आखे खोली और खुल कर सांस लेने का प्रयास किया,
39:25मैंने दिखा कि मेरा तीन बरस का भाई मेरे साथ सोय हुआ था,
39:29और उसके चोटे चोटे पैल मेरे गले को दवा रहे थे,
39:34सुबा हो गयी थी और मेरी नीन लोड गयी थी,
39:37मुझे अपनी चत्रकारी करनी थी,
39:39सुबा तो हो ही गयी थी पर अपनी घर में पूरी तरह से शांती थी,
39:43ऐसा तो कभी भी नहीं होता था,
39:46हर सुबा अपने दोस्तों को फोन पर संदेश भेजते हुए,
39:49और उनके संदेश पढ़ते हुए,
39:51मेरी मम्मी जोर जोर से हसा करती थी,
39:54मेरे डैड़ी सुबा सुबा ही वीडियो गेम खेलने लगते थे,
39:57और कोई फुटबॉल के खेल हातने के बाद जोर जोर से गुसा करते थे,
40:03मेरा भाई भी उस समय तब उट जाता था,
40:05लेकिन उस दिन मैं हरां थी, क्योंकि चारो तरफ फुर्ण शांती थी,
40:09जिक्यासा और चित्ता से भरी मैं बाहर के कमरे के तरफ चल दी,
40:13बहुत थंड थी, और घर के अंदर की बत्तियां बत थी,
40:17मुझे मेरे मम्मी और डैड़ी बाहर के कमरे में भी नहीं मिले,
40:22मैंने सोचा कि वो तब भी सोही रहे थे,
40:25मैं वैसे तो अपने मम्मी पापा को सोते से कभी भी नहीं जगाती थी,
40:29पर उस दिन तो सुबह हो गई थी,
40:32मुझे लगा कि घर में कुछ अनुठा हो रहा था,
40:37क्योंकि घर में कोई भी नहीं उठा था,
40:40मैंने मम्मी टाइड़ी के बैडरूम में दिवार पर लगी घरी को देखा,
40:44एक बज़ कर 37 सुनट हो रहे थे,
40:47मैंने सोचा कि रात को मेरा छोटा भाई घरी से खेल रहा था,
40:50और उसने ये समय बदल लिया था,
40:53मैंने खिर्की से बाहर देखा तो पाया कि बाहर तो अंधेरा ही था,
40:56तब मैंने आभास किया कि अभी तो रात ही थी,
40:59मैं जल्दी से अपने कमरे में चली गई और अपने मिस्टर में फिर से सोगी,
41:03मुझे नीन की जरुवत थी क्योंकि सुबह को मैंने बहुत से चित्र बना रहे थे,
41:08परम्तु मैं फिर से सो नहीं सकी,
41:11मैं बस करवटे ही बदलती रही,
41:17अगली सुबह जब मेरी नीन तूटी,
41:20मैंने पाया कि मैं बहुत ठकी हुई थी,
41:23और अभी भी नीन में ही थी,
41:25मैंने पिछली राज सिर्फ दो घंटे की ही नीन लिए थी,
41:30मैंने अपने दान साप किये,
41:32और अपने मम्मी डैडी को गुड़ माणि कहा,
41:36मैंने अपने भाई को भी गुड बानि कहा,
41:38मैं नास्टे की मेज पर बैठकर,
41:40दूद के कटोरे और सामने पड़े हुए सूखे मेवे, काजु, किस्ते, बादाम, अखरो, तित्यानी को दिखने लगी।
41:47मुझे उन सबको दूद में विलाकर खाना बहुत पसंद था।
41:50मैं अपनी मंत पसंद कुर्सी पर बैठे थी।
41:53मैंने शान्ति से अपने नास्था शुरू कर दिये।
41:56मुझे भाई आदा आया।
41:58कैसे रात को उसने अपने चोटे-चोटे पैरों से मेरा गला ही गोड़ दिया था।
42:02मैं नास्था खाने के बाद फिर से अपने बेड्रूम की तरफ चल दी।
42:05तभी मेरी मम्मी ने पूछा, तुम कहा जा रही हो।
42:08मैंने कहा, सोने जा रही हूँ।
42:10मैं बहुत ठकी हुई हूँ।
42:12मम्मी ने कहा, तुम अब फिर से नहीं सो सकती।
42:15हम लोग कोस्ट को जा रहे हैं।
42:17मैंने एक लंभी सास थी।
42:19मेरे भाई ने खुशी खुशी कहा, मैं खेलना चाहता हूँ।
42:23हम सब लोग नहां धोकर तैयार हो गए, और फिर कार की तरफ चल दीये।
42:29मेरा भाई तो कार में भी सो गया।
42:33हमारे घर से कोस्ट को लगबग 11 मिल की दूरी पन है।
42:40कुछ ही देर में भाई फिर से उठ गया।
42:45उसने कहा, क्या तुम मेरे साथ खेलोगी।
42:50मैंने सोचा, क्या सभी बच्चे से खेलने के भारे में सोचते हैं।
42:55मुझे इतना गुसा आ रहा था, कि मुझे उसके मुँपर एक गुसा मार देने का दिल करना था।
42:59मेरी निन तो विगाड़ दी रात को, और आप अपने खेलने की बात कर रहा है।
43:04दस मिनट के बाद हम लोग कोस्टको के सामने थे।
43:07मैंने कारों की एक लंबी सी पंग्ती देखी, सभी बाई तरफ बुढने की प्रतिक्षा कर रहे थे।
43:13मुझे बुसा आने लगा उस टैफिक जाम को देखकर।
43:15आदे घट्य तक प्रतिक्षा करनी पड़ी, मेरी आखे तब तक लाल हो चुकी थी।
43:20आखिर हम सब कोस्टको पहुँची गये और कार से बाहर निकले।
43:24मेरी मम्मी ने सामान लाने जाने वाली चार पईयो की एक कार्ट ले ली और हम सब कोस्टको के मुख्य गेट की तरफ पढ़ चले।
43:32तभी मैंने देखा कि मेरी सबसे अच्छी दोस्ट सितारा और उसके परिवार के लोग अंदर से बाहर आ रहे थे।
43:38मेरी मम्मी ने भी उनको देख लिया था। मेरी मम्मी ने उनकी तरफ संकेत करते हुए मुझे कहा आओ उनसे बाते करते हैं हम सब उनकी तरफ चलने लगे हैं।
43:48सब ने एक दुसरे को हेलो कहा। सितारा के परिवार में भी चार सदस्य हैं और मेरे परिवार में भी मुझे को मिला कर चाह रही हैं। मैं और सितारा एक ही उम्र के भी हैं और दोनों के ही छोटे भाई भी हैं।
44:02मेरे डेड़ी और सितारा के डेड़ी अपने अपने काम के बारे में बातित करने लगे हैं। मेरी मम्मी और सितारा की मम्मी बहुत सी चीज़ों के बारे में बाते करने लगी। मेरो छोटा भाई और सितारा का छोटा भाई जमीन में एक छोटे से छेंड को देख रहे थे�
44:33कुछ देर के बाद वो लोग बाहर चले गए और मैं और मेरा परिवार कुस्टको के अंदर चले गए।
44:43और खाने पीने का सामान और अन्य चीजें खारिबने लगे हैं।
44:49हमने राशन से भरे हुए जोले कार में रख दिये और मन पसंद रेस्टॉर्ट की तरफ चल दिये हैं।
44:59वहाँ हमने लंच किया और उसके बाद हम लोग घर वापिस आ गये हैं।
45:04मेरा भाई मम्मी के फ़ोन पर कोई गेम खेवने लगा।
45:08मुझे सितारों ने एक योजना बताई थी और मैं उसके ही बादे में सोच रही थी।
45:12मैंने एक किताब उठाए और अपने बिस्तर पर चल गई।
45:15मैं तीन गंतों तक उस किताब को पढ़ती रही।
45:18कुछ देंजे बाद रात के खाने का समय हो गया।
45:21मेरी मम्मी ने काफी सारी खाने की चीज़े बनायी थी उस रात।
45:24पेट बड़ स्वादिश्ट खाना खाने के बाद हमने मीठा भी खाया।
45:28नौ बज़े महाने कहा के सोने का समय हो गया था।
45:31मैंने अपने दान साफ किया और अपने भाई को कहा कि सोने का समय हो गया था।
45:37उसने कोई भी जवाब नहीं दिया।
45:39मैं अपने कमरे में चली गई और फिर भाई के कमरे में भी गई।
45:43मैंने देखा कि अपने खिलोनों के बीच में ही सो गया था।
45:49वो बहुती सुद्धन दिख रहा था और इस तरह खिलोनों के बीच में सोय होगा।
45:57मैंने ममी को कहा कि भाई को उठा कर अपने बिस्तर पर रख दे क्योंकि मेरे लिए वो काफी भारी था और मैं उसको नहीं उठा सकती।
46:05ममी डाइड़ी ने मुझे गुडनाइट कहा और मैं अपने बिस्तर पर सोने चले दे। तब मुझे सितारा की योजना आ दे। मैंने ममी डाइड़ी को इसके बारे में बताया। उन्होंने भी सहमती दिखा दिया।
46:16मेरे ममी डाइड़ी ने मेरे कहें अनुसार मेरे बिस्तर को कमरे की एक दिवार के साथ लगा दिया। उन्होंने मेरे कहें अनुसार सोफे को भी एक दिवार के साथ लगा दिया।
46:26मेरे डाइड़ी ने बत्ती बंद कर दी। मैं एक कंबल लेकर सोफे पर सोने का प्रयास करने लगी। मेरे ममी डाइड़ी अपने कमरे में जाकर सो गए।
46:45रात को लगबग बारा बजे के आसपास मेरा छोटा भाई रोता हुआ मेरे कमरे में आया और मेरे बिस्तर पर मुझे खोजने लगा। मुझे बिस्तर पर ना पाकर वो और भी जोर से रोने लगा। मेरे नीम खुल गई थी। मेरे ममी डाइड़ी भी उसके रोने की आवा�
47:15सोफे से उठकर उसको अपने सीने से लगा लिया और उसको चूबने लगी। मुझे खुद पर और सितारा पर गुशा नहीं लगा कि उसने ये योजिना बताई थी। बेचारा मेरा छोटा भाई सिर्फ तीन बरस करता था और इस तरह मुझे हादी रात को बिस्तर पर ना �
47:45उस बेचारे को तो ये भी नहीं मालम था कि वो रात को सोते लाते चलाते था उसकी तो कोई भी गलती नहीं थी। मुझे गलानी होने लगी। उस दिन के बाद मैंने भाई की लातों के साथ ही सोने के लिए खुद को तैयार कर लिया। कुछ दिन असुलगा हुई पर बात
48:15इसे को तो कहते हैं बच्पन को भर्पूर जीना, अपने से चोटो की बातों का कभी में बुरा मान के लिए। बहुत बहुत धन्यवाद।
48:45प्रेदा कथा शुब और अशुब।
49:05स्वामी विवेकनन जी प्रति दिन बहुत से लोगों से मिलते थे और उनकी समस्यां सुनते थे और उनको उचित सलाद देते थे।
49:17एक सुबह एक औरक उनके समक्ष उपस्टित हुई और बोली, स्वामी जी कुछ दिनों से मेरी बाही आग फढ़क रही है, ये अशुब लक्षन है, मुझे कुछ उपाय बताईए, कुछ अशुब होने वाला है।
49:31स्वामी जी ने मुष्कुला कर कहा, हे देवी कुछ भी शुब और अशुब नहीं होता है, इस मानव जीवन में अच्छी और बुली दोनों आई प्रकार की घटनाएं घटित होती ही रहती है, सब लोग अपने अपने इसाप्से किसी घटना को शुब और किसी को अशुब
50:01शुब होता है, लेकिन मेरे घ़र में तो हमेशा कुछ ना कुछ अशुबी होता रहता है, स्वामी जी ने फिर से कहा, देवी शुब और अशुब भी सोच का ही परिणाम है, इस संसार में कोई भी ऐसी वस्तु नहीं है, जिसे केवल शुब या केवल अशुबी कहा जा सके
50:31कि जो एक के लिए शुब है, वही दूसरे के लिए अशुब हो सकता है, ये सब परिस्थितियों पर निर्भर करता है, ये सुनकर महीला बोली, ये कैसे स्वामी, भला कि ये शुब घड़ी किसी के लिए अशुब कैसे हो सकती है,
50:45स्वामी जी बोले, देवी माल लो एक कुभार में बर्तन बना कर सुखाने के लिए रखे, और वह तेज धूप की कामना कर रहा है, दूसरी और एक किसान वर्षा की कामना कर रहा है ता की फसल अच्छी हो, ऐसे में धूप और वर्षा जहां एक के लिए शुब है, वही द�
51:15अपने जीवन को सुचारो रूप से जी सकता है, स्वामी विवातर उनकी बाते सुनकर, मैला उनसे सहमत हो गई और बोली, स्वामी जी, आपका कहना बिल्कुल ठीक है, मैं आज से केवल अपने कर्म पर ही ध्यान दोगी, इस्त्री सन्तुष्ठ होकर घर वापिस चल गई।
51:45अपने जीवन को सुचारो रूप से जी सकता है, स्वामी विवातर उनकी बाते सुनकर, मैला उनसे सहमत होगई और बोली, स्वामी जी, आपका कहना बिल्कुल ठीक है, स्वामी जी, आपका कहना बिल्कुल ठीक होगई और बोली, स्वामी जीवन को सुचारो रूप स

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