जब बुद्ध से कहा खेत जोतकर खा.....
एक समय भगवान भिक्षा के लिए कसिभारद्वाज के घर पहुंचे। उन्हें देखकर वह बोला “ श्रमण ! मैं जोत बोकर खाता हूं। तुम भी जोत बोकर खाओ।" इस पर भगवान ने क्या कहा?
मैं भी जोत-बोकर खाता हूं।" जब कसिभारद्वाज ने कहा कि मुझे तो आपकी खेती दिखायी नहीं देती, तब उन्होंने उसे बतलाया कि मैं अमृत उपजाने वाली खेती करता हूं जिसमें श्रद्धा बीज, तप वर्षा, प्रज्ञा हल और इसी प्रकार के अन्य खेती के साधन होते हैं। इस खेती को करने से कोई भी सारे दुःखों से छूट जाता है।
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मैं भी जोत-बोकर खाता हूं।" जब कसिभारद्वाज ने कहा कि मुझे तो आपकी खेती दिखायी नहीं देती, तब उन्होंने उसे बतलाया कि मैं अमृत उपजाने वाली खेती करता हूं जिसमें श्रद्धा बीज, तप वर्षा, प्रज्ञा हल और इसी प्रकार के अन्य खेती के साधन होते हैं। इस खेती को करने से कोई भी सारे दुःखों से छूट जाता है।
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