#सचिन पायलट गुट के विधायक #हेमाराम_चौधरी ने क्यों दिया इस्तीफा Why resigned Hamaram #TheHindMail
राजस्थान में कोरोना के आंकड़े जैसे—जैसे घटने लगते हैं, सियासी पारा वैसे—वैसे चढ़ने लग जाता है। पिछले साल कोरोनाकाल में हम सियासी संकट के उफान को देख चुके हैं। प्रदेशभर में ताउ ते के असर के बीच पूर्व मंत्री हेमाराम चौधरी का इस्तीफा राजनीतिक तूफान बनकर आया है। पायलट खेमे के विधायक हेमाराम चौधरी बाड़मेर जिले के गुड़ामालानी विधानसभा क्षेत्र से आते हैं। राज्य की सियासत में सरहदी इलाके से उठा यह बवंडर क्या गुल खिलाएगा, यह तो भविष्य के गर्भ में है। लेकिन इसने असंतुष्ट चल रहे पायलट गुट के विधायकों को फिर से आक्सीजन दे दी है। यह दूसरी बात है कि अस्पतालों में आक्सीजन की लगातार कमी चल रही है।
हेमाराम भी जानते हैं कि उनका इस्तीफा मंजूर करके कांग्रेस सियासी कढ़ी में उबाल नहीं लाना चाहेगी। लेकिन इस्तीफे की पेशकश से ही उनकी आवाज एकदम से आलाकमान तक पहुंच जाएगी कि राजस्थान कांग्रेस में सबकुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है। ऐसे में पिछले सियासी संकट के समाधान के लिए बनी कमेटी को फिर से याद किया जा सकता है। इसकी एक—दो मीटिंग हुई थीं और फिर फाइल कोरोना के चलते दाखिल दफ्तर हो गई। पायलट गुट का यही तर्क है कि जब कोरोना में सभी काम हो रहे हैं तो मंत्रीमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियां करने में क्या हर्ज है? वैसे भी सरकार अलगे माह ढाई साल यानी आधा कार्यकाल पूरा करने जा रही है। यदि कोई समझौता हुआ है तो उसे चरितार्थ करने का यही मौका है। दबाव की रणनीति भी इस्तीफे की एक वजह मानी जा रही है।
दरअसल, दो गुटों में बंटी कांग्रेस के बीच अंतर्कलह कोई नई नहीं है। हेमाराम को उम्मीद थी कि सरकार में उन्हें मंत्री पद मिलेगा, लेकिन बाड़मेर से ही उनकी बजाए हरीश चौधरी को राजस्व मंत्री बना दिया गया। हेमाराम चौधरी खुद सरकार से नाराजगी जाहिर कर इससे पहले भी इस्तीफा दे चुके हैं। लेकिन तब उन्हें पार्टी ने मना तो लिया पर उनके दिल की बात अब तक पूरी नहीं की। इसीलिए विधानसभा में भी चौधरी का दर्द इन शब्दों में छलक आया—मुझे पता है, आप बोलने नहीं देंगे। बोलना तो बहुत कुछ है। मेरी आवाज को आप यहां दबा सकते हो। यहां बोलने नहीं दोगे तो दूसरी जगह हम बोल देंगे।
छह बार के विधायक हेमाराम पार्टी के वरिष्ठता के आधार पर ओहदा न मिलने के अलावा नाराजगी की दूसरी वजह सरहदी इलाके में राजस्व मंत्री का बढ़ता वर्चस्व भी है। हेमाराम के इस्तीफा देते ही इसी जिले के एक और विधायक, जो राजस्व मंत्री की कार्यशैली से खफा हैं, उन्होंने भी पर निकाल लिए हैं। उनका आरोप है कि जिले के अधिकारी सिर्फ मंत्री के कहने पर ही काम कर रहे हैं। इससे उनके क्षेत्र के छोटे—मोटे काम भी नहीं हो रहे। इधर असंतुष्ट विश्वेंद्र सिंह के पुत्र ने भी ट् वीट कर आग में घी डालने का काम किया है।
बहरहाल, ताउ ते से बने ठंडे मौसम में कांग्रेस की राजनीति इस्तीफे से गरमा गई है। प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने इस्तीफे को घर का मामला बताया है और विश्वास व्यक्त किया है कि हेमाराम को मना लिया जाएगा। इस इस्तीफे से भाजपा नेता कांग्रेस पर हमलावर हो गए हैं। वे खुद—ब—खुद मिले इस मौके को भुनाना चाहते हैं। भाजपा नेताओं ने इसे कांग्रेस सरकार के जहाज में छेद बताते हुए कहा है कि यह कब डूब जाए पता नहीं। अगले कुछ दिनों में तस्वीर साफ हो जाएगी कि मान—मनौव्वल चलती है या फिर जहाज में कुछ और सुराख निकल आएंगे !!
हेमाराम भी जानते हैं कि उनका इस्तीफा मंजूर करके कांग्रेस सियासी कढ़ी में उबाल नहीं लाना चाहेगी। लेकिन इस्तीफे की पेशकश से ही उनकी आवाज एकदम से आलाकमान तक पहुंच जाएगी कि राजस्थान कांग्रेस में सबकुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है। ऐसे में पिछले सियासी संकट के समाधान के लिए बनी कमेटी को फिर से याद किया जा सकता है। इसकी एक—दो मीटिंग हुई थीं और फिर फाइल कोरोना के चलते दाखिल दफ्तर हो गई। पायलट गुट का यही तर्क है कि जब कोरोना में सभी काम हो रहे हैं तो मंत्रीमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियां करने में क्या हर्ज है? वैसे भी सरकार अलगे माह ढाई साल यानी आधा कार्यकाल पूरा करने जा रही है। यदि कोई समझौता हुआ है तो उसे चरितार्थ करने का यही मौका है। दबाव की रणनीति भी इस्तीफे की एक वजह मानी जा रही है।
दरअसल, दो गुटों में बंटी कांग्रेस के बीच अंतर्कलह कोई नई नहीं है। हेमाराम को उम्मीद थी कि सरकार में उन्हें मंत्री पद मिलेगा, लेकिन बाड़मेर से ही उनकी बजाए हरीश चौधरी को राजस्व मंत्री बना दिया गया। हेमाराम चौधरी खुद सरकार से नाराजगी जाहिर कर इससे पहले भी इस्तीफा दे चुके हैं। लेकिन तब उन्हें पार्टी ने मना तो लिया पर उनके दिल की बात अब तक पूरी नहीं की। इसीलिए विधानसभा में भी चौधरी का दर्द इन शब्दों में छलक आया—मुझे पता है, आप बोलने नहीं देंगे। बोलना तो बहुत कुछ है। मेरी आवाज को आप यहां दबा सकते हो। यहां बोलने नहीं दोगे तो दूसरी जगह हम बोल देंगे।
छह बार के विधायक हेमाराम पार्टी के वरिष्ठता के आधार पर ओहदा न मिलने के अलावा नाराजगी की दूसरी वजह सरहदी इलाके में राजस्व मंत्री का बढ़ता वर्चस्व भी है। हेमाराम के इस्तीफा देते ही इसी जिले के एक और विधायक, जो राजस्व मंत्री की कार्यशैली से खफा हैं, उन्होंने भी पर निकाल लिए हैं। उनका आरोप है कि जिले के अधिकारी सिर्फ मंत्री के कहने पर ही काम कर रहे हैं। इससे उनके क्षेत्र के छोटे—मोटे काम भी नहीं हो रहे। इधर असंतुष्ट विश्वेंद्र सिंह के पुत्र ने भी ट् वीट कर आग में घी डालने का काम किया है।
बहरहाल, ताउ ते से बने ठंडे मौसम में कांग्रेस की राजनीति इस्तीफे से गरमा गई है। प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने इस्तीफे को घर का मामला बताया है और विश्वास व्यक्त किया है कि हेमाराम को मना लिया जाएगा। इस इस्तीफे से भाजपा नेता कांग्रेस पर हमलावर हो गए हैं। वे खुद—ब—खुद मिले इस मौके को भुनाना चाहते हैं। भाजपा नेताओं ने इसे कांग्रेस सरकार के जहाज में छेद बताते हुए कहा है कि यह कब डूब जाए पता नहीं। अगले कुछ दिनों में तस्वीर साफ हो जाएगी कि मान—मनौव्वल चलती है या फिर जहाज में कुछ और सुराख निकल आएंगे !!
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