कुवैत : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2 दिवसीय दौरे पर कुवैत पहुंच गए हैं। उनका भारतीय समुदाय के लोगों ने भव्य स्वागत किया। पीएम मोदी ने भारतीय समुदाय के लोगों को संबोधित करते हुए कहा, "एक समय था जब कुवैत से मोती, खजूर और शानदार नस्ल के घोड़े भारत जाते थे और भारत से बहुत सारा सामान यहां आता था। भारत के चावल, चाय, मसाले, कपड़े, लकड़ी यहां आती थी। भारत की टीकवुड से बनी नौकाओं में सवार होकर कुवैत के नाविक लंबी यात्राएं करते थे। कुवैत के मोती भारत के लिए किसी हीरे से कम नहीं रहे हैं। आज भारत के आभूषणों की पूरी दुनिया में धूम है तो उसमें कुवैत के मोतियों का योगदान है...। भारत दुनिया के उन पहले देशों में से एक है जिसने कुवैत की स्वतंत्रता के बाद उसे मान्यता दी थी। इसलिए जिस देश से, जिस समाज से इतनी सारी यादें जुड़ी हैं, जिससे हमारा वर्तमान जुड़ा है, वहां आना मेरे लिए बहुत यादगार है...।"
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00:00एक समय था जब कुवेज से मोती, खजूर और शांदार नसल के घोड़े भारत जाते थे
00:16और भारत से भी बहुत सारा सामान यहां आता रहा है
00:23भारत के चावल, भारत की चाय, भारत के मसाले, पपडे, लकडी यहां आती थी
00:37भारत की टिकबुड से बनी नवकाओं में सवार होकर, कुवेज के नाविक लंभी यात्राएं करते थे
00:49कुवेज के मोती भारत के लिए किसी हीरे से कम नहीं रहे हैं
00:59आज भारत की ज्वैलरी की पूरी दुनिया में धूम है, तो उसमें कुवेज के मोतियों का भी योगदान है
01:13गुझरात में तो हम बड़े बुजुर्गों से सुनते आये हैं कि पिछली शताब्दियों में कुवेज से कैसे लोगों का व्यापारी कारोबारियों का आना जाना रहता था
01:33खास तोर पर 19th century में ही कुवेज से व्यापारी सूरत आने लगे थे तब सूरत कुवेज के मोतियों के लिए इंटरनेशनल मार्केट हुआ करता था
01:53सूरत हो पोरबंदर हो वेरावल हो गुझराद के बंदरगाह इन पुराने संवंदों के साक्षी है कुवेजी व्यापारियों ने गुझरादी भाषा में अनेक किताबे भी पब्लिस की है
02:19गुझराद के बाद कुवेज के व्यापारियों ने मुंबई और दूसरे बाजारों में भी उन्होंने अलग पहचान बनाई थी
02:31यहां के प्रसित व्यापारी अब्दूल लतीप अल अब्दूल रज्जा की किताब हाऊ टू केलिक्यूलेट कौल वेट मुंबई में छपी थी
02:47कुवेज के बहुत सारे व्यापारियों ने एक्सपोर्ट और इंपोर्ट के लिए मुंबई, कोलकत्ता, पूर्बंदर, वेरावल और गोवा में अपने अफिस खोले हैं
03:07कुवेज के बहुत सारे परिवार आज भी मुंबई की महमद अली स्टीट में रहते हैं
03:19कुवेज के बहुत सारे लोगों को ये जान कर हैराणी होगी, साट, 65 साल पहले कुवेज में भारतिय रुपये बैसे ही चलते थे जैसे भारत में चलते हैं
03:39यानि यहां किसी दुकान से कुछ खरीदने पर भारतिय रुपये ही श्विकार किये जाते थे तब भारतिय करंसी की जो शब्दा वली थी जैसे रुपया, पैसा, आना
04:04ये भी कुवेज के लोकों के लिए बहुती सामान्य था
04:10भारत दुनिया के उन पहले देशों में से एक है जिसने कुवेज की स्वतंतरता के बार उसे माननिता दी थी
04:23और इसलिए जिस देश से, जिस समाथ से इतनी सारी यादे जुड़ी हैं जिससे हमारा वर्तमान जुड़ा है वहाँ आना मेरे लिए बहुत यादगार है
04:49मैं कुवेज के लोगों का यहां की सरकार का बहुत आभारी हूँ मैं हिज हाइनेश दामीर का उनके इंविटेशन के लिए विशेष रुप से धन्यवाद देता हूँ