हुब्बल्ली शहर में बच्छा बारस का पर्व उत्साह से मनाया गया। इस दौरान महिलाओं ने गाय और बछड़े की पूजा की। महिलाओं ने इसके साथ ही सुख—समृद्धि के साथ खुशहाली की कामना की। जियो-जियो म्हारो लाल बरस्या बाछड़ सरीखे मंगल गीतों के बीच सुहागिन महिलाओं ने बच्छ बारस का पर्व परंपरागत रूप से उल्लास के साथ मनाया। इसके साथ ही गाय के चारों ओर परिक्रमा कर मंगल कामना की गई।
शहर के विभिन्न इलाकों और गौशालाओं में बच्छ बारस को महिलाओं ने गाय और बछड़े की पूजा कर चुनरी ओढ़ाई। महिलाओं ने गौमाता की कथा सुनकर विधि-विधान के साथ मंगल गीत गाते हुए गाय के बछड़े का पूजन किया। बच्छ बारस के पर्व को लेकर महिलाओं में जबरदस्त उत्साह का माहौल देखने को मिला।
कहीं पर महिलाओं ने सामूहिक रूप से तो कहीं अकेले बछड़े का पूजन किया। गायों को चारा डालना व दान पुण्य का क्रम भी दिनभर चलता रहा। गोशालाओं में भी बच्छ बारस की रौनक रही। गाय-बछड़े का पूजन करने के बाद महिलाओं ने पहले कथा सुनी। इसके बाद सत्तू के लड्डू का भोग लगाकर पुत्रों के दीर्घायु और सलामती की मंगलकामनाएं की।
राजस्थान के पाली मूल की कांता प्रजापत ने बताया कि बच्छ बारस के दिन गाय और बछड़े की पूजा की जाती है। मान्यता है कि गाय और उसके बछड़े की पूजा से पुत्र की लंबी आयु होती है। इसके अलावा महिलाएं पुत्र प्राप्ति की कामना करती हैं। ऐसी भी मान्यता है कि अच्छी बारिश के लिए भी यह पूजा की जाती है। बच्छ बारस के दिन गौ पूजन के साथ गौमाता की कथा सुनते हैं। बच्छ बारस के गौ पूजन का बड़ा महत्व है।
शहर के विभिन्न इलाकों और गौशालाओं में बच्छ बारस को महिलाओं ने गाय और बछड़े की पूजा कर चुनरी ओढ़ाई। महिलाओं ने गौमाता की कथा सुनकर विधि-विधान के साथ मंगल गीत गाते हुए गाय के बछड़े का पूजन किया। बच्छ बारस के पर्व को लेकर महिलाओं में जबरदस्त उत्साह का माहौल देखने को मिला।
कहीं पर महिलाओं ने सामूहिक रूप से तो कहीं अकेले बछड़े का पूजन किया। गायों को चारा डालना व दान पुण्य का क्रम भी दिनभर चलता रहा। गोशालाओं में भी बच्छ बारस की रौनक रही। गाय-बछड़े का पूजन करने के बाद महिलाओं ने पहले कथा सुनी। इसके बाद सत्तू के लड्डू का भोग लगाकर पुत्रों के दीर्घायु और सलामती की मंगलकामनाएं की।
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