Is the Animal film toxic or is it good? Join Dhruv Rathee in this film review into the world of societal influences, from movies and songs to media, revealing their powerful role in molding our attitudes. Uncover the shocking effects of movies like 'Animal,' where violence and toxic masculinity take center stage, dissecting their dangerous normalization of aggression in our culture. Delve into the critical link between regressive narratives in media and the troubling perpetuation of a violent society. Explore how these influences can shape our perceptions and behaviours in profound ways.
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00:00नमासकार दोस्तों, एक लड़का जिसे अपने पिता का प्यार नहीं मिलता
00:04या तो उसका पिता उसकी जिंदिगी से एपसेंट रहता है या फिर उसके साथ बड़ी सक्ती से पेशाता है
00:10इसकी वजए से बच्चे के अंदर साइकलोजिकल प्रॉबलम्स डेवलब हो जाती है
00:14और जब वो बच्चा बड़ा होता है, तो ये प्रॉबलम्स बहुत सीरियस बन जाती है
00:18ये कोई काल्पनिक कहानी नहीं है बलकि कई रीसर्च पेपर्स ने इस चीस को साबिद किया है दोस्तों
00:24कई स्टडीज दिखाती हैं, पिता का एपसेंट होना बच्चे का सेफ कॉंफिडेंस कम कर देता है
00:29दूसरी कुछ studies दिखाती है हार्ष पेरेंटिंग, यानी बच्चों के साथ सक्ती से पेशाना, उनके अंदर aggressive behavior जगा सकता है।
00:37आप शाथ सोचूगे कि हार्ष पेरेंटिंग तो बड़ी common चीज़ है, ये कैसे हो सकता है?
00:41मैं कहूँगा कि अपने आसपास देखो, low self confidence होना और aggressive behavior होना, ये भी बड़ी common चीज़ें हैं लोगों में.
00:48इतना ही नहीं, कई research papers तो ये भी दिखाते हैं कि एक caring father का ना होना, एक contributing factor बन सकता है किसी के criminal बनने में.
00:58अब ये सोचकर देखो दोस्तो ऐसे sensitive topic पर, अगर कोई फिल्म बनाये तो.
01:02सोचने की जरूत नहीं क्योंकि एक masterpiece फिल्म हमारे सामने already exist करती है.
01:07नहीं नहीं, उसकी बात नहीं कर रहा हूँ, मैं बात कर रहा हूँ The White Ribbon की.
01:12मौर्गन सो बाल्ड इयर दुरिश दी जुश्टिकुं गराइनिश्ट साइन वेरदेट, विर्ट और मुटर उश अनुईट इस बंड उम बिंदन और इयर वेरदेट इस त्रागं, बिस विर दुश और वहाल्तन अनुईट विठावन गविनन करने कारण हैं इन उश
01:42कि गोविन निलानी की अर्ध सत्य है
01:53या फिर विक्रम अधित्य मोटवाने की उडान फिल्म
02:05इस मुद्दे पर कई बड़ी और फेमस गाने भी बने हैं
02:08जैसे की ये वाला
02:09इसके लिरिक्स में कहा गया है
02:10बच्चे पैदा करना तो लोगों को आता है
02:12लेकिन पापा बनना उन्हें नहीं आता
02:14अब imagine करके देखो दोस्तों
02:16अगर इसी sensitive concept को
02:18कोई insensitive director उठा ले
02:20एक ऐसा director जिसने regressive और
02:22mysoginistic फिल्म बनाई है कबीर सिंग जैसी
02:24फिर क्या होगा?
02:26इसे भी चीज हमें imagine करने की जरूत नहीं
02:28क्योंकि इसका नतीजा होगा ये
02:30animal फिल्म
02:32बॉलिवूड ने घटिया फिल्में
02:34तो बहुत बनाई हैं लेकिन ये animal फिल्म
02:36बड़ी खास है मेरा मानना है
02:38कि ये एक ऐसा cringe fest है
02:40जो हमारे समाज के लिए cancer है
02:42इस बात को सुनकर कुछ लोगा instant reaction होगा
02:44कि इस तरीके से exaggerate करना बंद कर
02:46फिल्म ही तो है इतना
02:48woke बनने की जरूत नहीं और वैसे भी
02:50इसके लावा कितनी violent फिल्में आई है
02:52Gangs of Wasseypur, Kill Bill, Pulp Fiction
02:54उन फिल्मों का क्या? और वैसे भी फिल्म में
02:56violence देखने से कोई
02:59Director की अपनी individual morality होती है
03:01उसका अपना subjective opinion होता है
03:03तुम किसी फिल्म को ऐसे cringe fest, cancer कैसे बोल सकते हूँ?
03:06मैं कहूँगा, रुखो जरा, सबर करो
03:08सब कुछ समझाऊँगा अच्छे से आपको इस वीडियो में
03:11और ना सिर्फ इस animal फिल्म की problematic चीजों के बारे में
03:14बलकि इसके अरांड जो पूरा माहॉल बना हुआ है यहाँ पर
03:17alpha males, feminism, इस सारी चीजे समझते हैं आज के इस वीडियो में
03:26दोस्तों मुझे यकीन है आपको याद होगा निरभया case के बारे में
03:292012 का वो case, जिसकी खबर सुनकर पूरा देश shocked रहे गया था
03:34उस वक्त एक महिला थी मधुमिता पांडे नाम से जो अपनी master's की degree complete कर रही थी clinical psychology में
03:40एक सवाल उनको बड़ा सता रहा था कोई भी इंसान ऐसा घिनोना काम कैसे कर सकता है
03:46उन्होंने सोचा इस सवाल का जवाब ढोड़ने के लिए क्यों ना ऐसे लोगों से खुद जाकर बात करी जाए जो ये काम करते हैं
03:53क्यों ना तिहाड जेल के कैदियों से बात करके एक सर्वे किया जाए
03:57इसी के चलते उन्होंने जाकर बात करी 122 convicted rapists और 65 convicted murderers से जेल में
04:04बात करते वक्ते उन्होंने एक बड़ा clear difference देखा
04:07जो murderers थे ज्यादतर murderers में कुछ हद तक regret की feeling थी
04:12उन्होंने अफसोस था कि उन्होंने किसी की जिंदिकी तभा कर दी है
04:15कुछ को ज्यादा अफसोस था कुछ को कम अफसोस था लेकिन ज्यादतर murderers में कोई ना कोई degree of regret जरूर था
04:22लेकिन जब उन्होंने rapist से जाकर बात करी उनमें से ज्यादतर के मन में कोई भी regret की feeling नहीं थी
04:28कोई अफसोस नहीं था
04:30यही चीज हमने उस documentary में भी देखी थी
04:32निरभाया काण्ड पे बनाए गई जो documentary थी India's Daughter
04:36इसमें rapist का जब interview किया गया तो उन्होंने कहा कि लड़की बाहर क्यूं गई थी रात को इतनी late अपने boyfriend के साथ
04:42उन्हें उसे सबक सिखाना था
04:44इंटरव्यू में ये चीज बड़ी clear थी कि उन्होंने जो किया उन्हें उस चीज का कोई regret नहीं था
04:49ये देखकर मदुमिता के मन में सवाल आया कि इसके पीछे क्या कारण हो सकता है?
04:53ये rape convicts क्यूं अफसोस की कोई feeling नहीं दिखाते?
04:57इन्होंने दो questionnaire करवाए उनसे
05:14इस research इकलोती नहीं थी इस चीज को लेकर
05:16एसी ही research इंडिया के बहार भी बहुत करी गई है
05:18सूजन ब्राउन मिलर ने अपनी 1975 की book
05:21Against Our Will, Men, Women and Rape में यही चीजे बताई थी
05:25इन्होंने अपनी किताब में लिखा कि rape डराने का, intimidation का एक process है
05:30अक्सर rapist अपनी power exert करना चाहते हैं
05:32कि वो उपर हैं, औरते उनके नीचे हैं
05:35सूजन के लावा रिचरड जॉनसन, डानियाले कुजमेन और रेबेका विसनेंड जैसी
05:38कई researchers की यही findings रही हैं
05:41कि बलादकार का कारण एक अत्य अधिक यॉन की इच्छा नहीं होती
05:45बलकि बलादकारी तीन प्रकार के होते हैं
05:48पहले वो जो अपनी शक्ती का प्रदर्शन करना चाहते हैं
05:51दूसरे, वो जो क्रोध निकालने के लिए यह करते हैं
05:54और तीसरे, जो sadist क्रूर लोग होते हैं
05:57पर इन तीनों में कॉमन बात यह है कि यह सब के सब औरतों को अपने से inferior मानते हैं
06:03अगला सवाल यहाँ पर उठता है कि ऐसी regressive सोच आती कहा से हैं
06:07और इसका सही जवाब है दोस्तो हर जगहं से
06:10एक कहावत है जो यहां अकसर कही जाती है
06:13इसका मतलब है कि एक आदमी का behavior, उसकी personality, उसकी identity, उसके आसपास के माहौल को देखकर बनती हैं
06:21और यह माहौल हर चीज से बनता है
06:23पेरेंट्स जिस तरीके से आपका ख्याल रखते हैं, आपके relatives का जो बरताव होता है आपको लेकर
06:29आपके school में जो teachers जिस तरीके से behave करते हैं, आपके दोस जिस तरीके के होते हैं, बाकि और जो आप experience करते हो उपने आसपास के environment में
06:38इसके लावा mass media का भी एक बड़ा factor रहता है
06:41जो खबरों में आप सुनते हो, जो किताबें आप पढ़ते हो, जो radio में आप सुनते हो, जो TV पर ads आप देखते हो, social media पर जो आप चीजें देखते हो, जो गानें आप सुनते हो और जो फिल्में आप देखते हो
06:53इन सब चीजों का एक असर पढ़ता है जिस से कि एक इंसान की identity बनती है उसका बरताफ दिखता है
06:59कुछ चीजें आपके conscious control में होती हैं जिनने आप control कर सकते हो जैसे कि क्या पढ़ना है, क्या देखना है
07:04लेकिन सभी चीजों का एक subconscious असर पढ़ता है आपके दिमाग पर जिसका आपको शायद पता भी नहीं चलता होगा
07:11अब कुछ लोग इस बात का counter करेंगे ये कहकर कि देखो मैं तो gangster की फिल्में देखता हूँ लेकिन मैं तो gangster बना नहीं
07:17इस फिल्म के director संदीप वांगा रेड़ी ने भी same argument दिया था एक interview में
07:21अनुपामा चोपड़ा ने उनसे पूछा की कवीर सिंग जैसी फिल्मों का समाच पर क्या impact होता है
07:26तो उन्होंने जवाब में कहा कि उन्होंने gangster फिल्में देखी है लेकिन वो तो कोई gangster बने नहीं उसे देखने के बाद
07:40अब देखो दोस्ते वही बात है जैसे कुछ लोग कहते नहीं कि देखो मैं तो deep fried छोले भटूरे खाता हूँ
07:44जिससे कि heart attack का risk बढ़ जाता है, cholesterol खराब हो जाता है लेकिन मैं तो अभी जिन्दा हूँ, मुझे तो कोई heart attack हुआ नहीं
07:51point यहाँ पर यह कि एक plate deep fried छोले भटूरे खाने से किसी को heart attack नहीं आएगा
07:55लेकिन दिन परती दिन, हफ़ते बर हफ़ते, साल बर साल अगर deep fried चीजे खाते रहोगे तो जरूर किसी दिन heart attack आ सकता है और heart attack का risk बहुत ज़्यादा बढ़ जाएगा अगर heart attack नहीं भी आया तो
08:06Similarly, अगर कोई कहता है कि मैं तो देखो एक गंटेत के लिए gym होके आया आज लेकिन मेरा weight तो कम हुआ नहीं यहां बदलाव आता है छोटे-छोटे incremental changes से, बून्द-बून्द से ही पूरा सागर बनता है
08:17सेम चीज फिल्मों के बारे में भी कही जा सकती है एक gangster की फिल्म देखकर कोई gangster नहीं बन जाता ना ही कोई एक अच्छी फिल्म देखकर महात्मा बन जाता है
08:25लेकिन छोटा-छोटा incremental change जो आता है वो add up होता चले जाता है जिंदगी में चाहें वो positive हो या negative हो
08:33वेट लोस वाले वीडियो में मैंने धेर सारे अलग-अलग factors की बात करी थी
08:36डाइट, exercise, sleep, stress free होना
08:39मैंने कहा था वेट लोस इन सभी factors का एक combination होता है
08:42Similarly एक बच्चे की जिंदगी में अगर सब कुछ अच्छा चल रहा है
08:46उसके parents उसका ढंग से ख्याल रखते हैं
08:48उसके teachers उसे प्यार से पढ़ाते हैं, उसके दोस्त बहुत अच्छे हैं
08:51उसे आदते हैं अच्छी किताबे पढ़ने की
08:54वो educated है, logic से सोचता है, intellect से काम करता है
08:57तो एक problematic फिल्म देखने से कुछ फरक नहीं पढ़ने वाला
09:01लेकिन यही मैं कहना चाहूँगा, एक उल्टा case imagine करो
09:04एक लड़का है मुन्नू, जिसके घर में उसके पिता उसकी माँ को मारते पीठते है
09:09उसकी बेहन को बाहर party करने जाना allowed नहीं है, लेकिन उसे खुद allowed है
09:13यूट्यूब पर मुन्नू छपरी यूट्यूबर्स को follow करता है जो औरतों को objectify करते हैं
09:17यह कहते हैं कि देखो लड़कियों में दिमाख नहीं होता, उनका काम बस घर पर काम करना होता है
09:22इंस्टाग्राम पर मुन्नू एंजू टेट जैसे लोगों को follow करता है
09:25जो toxic masculinity और misogyny के symbol बने बैठे हैं
09:28सिमिलर बाते वही से भी सुनता है
09:30इसके इलावा जब मुन्नू गाने सुनता है
09:32तो गानों में भी यही औरतों की objectification सुनने को मिलती है
09:35मैं तो तंदूरी मुर्गी हूँ यार
09:37गटका ले मुझे alcohol से
09:39हनी सिंग के गाने कभी lyrics पर ध्यान दिया है
09:41मैं हूँ womanizer
09:43मुझसे अकेले में मत मिल
09:45Silicon वाली लड़की को मैं पकड़ता नहीं
09:47Brown girl से मेरा दिल भरता नहीं
09:49मैं हूँ शेर, घास चरता नहीं
09:51तू है जानता मैं हूँ शिकारी
09:53तुझे खा जामूँगा सारी की सारी
09:55मुझे ये lyrics बोलते हुए भी अजीब सा लग रहा है
09:57UNICEF ने American Psychological
09:59Association की एक ये report पबलिश करी थी
10:01जिसमें बताया कि कैसे
10:03mass media में और्तों की objectification
10:05उनके खिलाफ violence का
10:07कारण बन जाती है
10:09जब अपने घर में होता है तो पीछे
10:11background में news channels चल रहे होते हैं
10:13वहाँ वो किसी politician को कहते हो सुनता है
10:15कि लड़कों से गल्तिया हो जाती है
10:17लड़कियों को छोटे कपड़े नहीं पहनने चाहिए
10:19लड़कियों को रात में घर से बाहर
10:21नहीं निकलना चाहिए
10:23फिर टीवी पर बीच में जब ads आती हैं तो उन ads में
10:25भी यही औरतों की objectification दिखाई जाती है
10:27एक perfume की ad जिसमें एक लड़की आ रही है
10:29और चार लड़के कहते हैं कि एक एक
10:31शॉट लें लड़की घबरा जाती है
10:33फिर दिखाई जाता है कि ये तो perfume की बात कर रहे हैं
10:35और इन सब चीजों के बाद जब
10:37मुन्नू सिनेमा हॉल में कोई फिल्म देखने जाता है
10:39तो उसे animal जैसी फिल्म
10:41देखने को मिलती है एक ऐसी फिल्म जिसमें
10:43प्रोटागिनिस्ट अपनी पतनी का हाथ मरोड देता है
10:45कभी गला पखड लेता है
10:47कभी उस पर बंदूख तान देता है
10:49कुछ लोग कह रहे हैं कि इसमें कौन सी बड़ी बात है उसकी पतनी
10:51ने भी तो उसको थपड मारा लेकिन यही
10:53तो बात है कि आदमी औरत को
11:14फिल्म में रनविजे इतने मास मरडर करता है
11:16लेकिन उसकी पतनी गितांजिली कभी उसे छोड़ने का नहीं कहती
11:19लेकिन जब वो एक्स्टर मेरिटिल अफेर कर लेता है
11:22तो वो रनविजे को कहती है कि उस लड़की को जाकर मार दे
11:26रनविजे को फिल्म में एक बेटी का बाप दिखाया है
11:29लेकिन उसके बावजूत वो मैंस्ट्रेशन की डिसकमफर्ट का मजाख उडाता है
11:33अपनी वाइफ को कहता है कि ये मरदों की दुनिया है
11:36अपनी लवर को कहता है कि मुझसे महपत है तो मेरा जूता चाट कर दिखा
11:40फिल्म में दिखाया गया है कि ये बंदा डैड़ी इशूस से सफर कर रहा है
11:43इससे अपने बाप का प्यार नहीं मिला
11:44लेकिन यही रनविजे अपने बच्चो को सेम तरीके से इगनोर करता है
11:49अब इन सारी चीजों को फिर भी कुछ हद तक जस्टिफाई किया जा सकता था
11:52अगर फिल्म में दिखाया जाता कि ये एक मेंटली इल इनसान था
11:55और बाद में इसका हिरदे परिवर्तन हो गया
11:57लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है
11:59फिल्म के आखिर में कोई रिडेम्शन नहीं दिखाई गई है
12:01रनवीर कपूर की आक्टिंग में कुछ भी ऐसा नहीं है
12:04जिसे देखकर लग सके कि ये एक मेंटली इल इनसान था
12:07इसलिए ये सब मिसोजनी और टॉक्सिक मैस्किलेनिटी
12:10एक प्रवचन की तरह दी जाती है
12:12फिल्म का हीरो कुछ ऐसा है जो इस सारी चीजे करता है
12:15और पूरे इस कॉंफिटेंस के साथ
12:17अपने आपको जैसे एलफा मेल की तरह दिखाया जा रहा है
12:20मुन्नू की जिंदगी में पूरा माहॉल ही ऐसा है
12:23हर जगह है रिग्रेसिव व्यूज रिग्रेसिव व्यूज
12:25औरतों की उब्जेक्टिफिकेशन, औरतों को गलत तरीके से टीट किया जाना
12:29और इसके बाद कोई कहता है कि एक फिल्म से क्या फरक पड़ता है?
12:31एक फिल्म से फरक नहीं पड़ता, पूरा का पूरा माहॉल ही यहां पर बिगड़ा हुआ है
12:35और इस माहॉल को बरकरार रखने का काम कर रही हैं ऐसी फिल्में
12:39इसलिए मैं कहता हूँ कि आनिमल जैसी फिल्में समाज के लिए कैंसर है
12:43यह चीज तो वैसे आपको फिल्म का पोस्टर देखकर ही पता लग जानी चीजी है
12:46जब फिल्म का हीरो यहाँ पर कैंसर को प्रमोट करेगा, स्मोक करते हुए
12:50तो और क्या एकस्पेक्ट कर सकते हूँ?
12:52जिस दिन यह फिल्म रिलीज ओई थी, उस दिन एक और फिल्म रिलीज हो थी
12:55सिनेमा हॉल्स में, सैम बहाधुर, हमारे फील्ड मार्शल सैम मानेक शौ के उपर
12:59दोनों फिल्मों के हीरों में, कॉंट्रास्ट देखो कितना बड़ा है यहाँ पर
13:03सैम बहाधुर एक ऐसे जाबाज असल जिंदिकी के हीरों, जो देश के ले लड़े, इंसानियत के ले लड़े
13:09इन्होंने बांगला देश में हो रहे एक भयंकर जैनोसाइड पर रोक लगाई
13:13खुदी सोच कर देखो, मैस्किलिनिटी का सिम्बल यहाँ पर सैम बहाधुर जैसे लोगों को होना चाहिए
13:17या फिर कभीर सिंग या रणविज़े जैसे केरेक्टर्स
13:20इस साल पहले, मारियो पूजो ने एक नौवल लिखी थी, तक गॉड़ फादर नाम से
13:24फेमस डिरेक्टर फ्रांसिस फॉर्ड कपोला ने इस एक किताब पर तीन फिल्में बनाई गॉड़ फादर के नाम से, जो बड़ी हिट हुई
13:30लेकिन उसके बाद से इसे कितनी ही इंडियन फिल्मों ने कॉपी किया है
13:34धर्मात्मा, नायकन, दयावान, आतंग ही आतंग, सरकार, मलिक और अब एनिमल भी
13:40ये फिल्म कितनी ओरिजिनल है और कितनी कॉपीड है, आप खुदी डिसाइड कर सकते हैं
13:44गॉड़फादर का जो प्लॉट है उसमें एक गैंक्ष्टर होता है वीटो नाम से जो अपना बिजनस एमपायर चला रहा होता है
13:49उसका छोटा बेटा, माईकल, उससे बाहर रहता है अमेरिका में
13:53लेकिन जब एक एसासिनेशन एटेम्ट किया जाता है वीटो की उपर, तो माईकल वापस लॉटता है और इस गैंक को जॉइन करता है
13:59उससे देखकर पता चलता है कि उसके बेहन के हस्बंड कारलो एक गद्दार है तो वो कारलो को मरवा देता है
14:04और उसके बाद वो बाकी गैंक्स के साथ लडने लग जाता है
14:07गॉटफादर जो फिल्म थी वो गैंक्स्टर जॉनरा की थी लेकिन संधीब वांगर रेड़ी ने सोचा कि मुझे एक 300-400 करोड रुपए कमाने वाली फिल्म बनानी है
14:15तो उन्होंने अपनी पुरानी फिल्म कवीर सिंग का जो कॉंसेप्ट था वही कॉपी कर लिया
14:19एक ऐसा प्रोटागिनिस्ट होगा अपनी फिल्म में जो नायक नहीं खल नायक हुँ में वाली बात करेगा
14:24शॉट टेमपर्ड लड़का जिसे बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता है, एलफा मेल जैसा दिखता है वो, बहुत ज्यादा स्मोक करता है
14:31और मुझे ऐसे बंदे को बड़ा कूल दिखाना है
14:33और फिर जब पता होता है कि फिल्मे वाइलन्स दिखाने से फिल्म ज्यादा चलेगी, तो वाइलन्स को और बढ़ा दो
14:39जितना ज्यादा खून खराबा हो सके उतना खून खराबा दिखाओ
14:42अनुपमा चोपरा के साथ इंटरविउ के दुरान संदीप ने कहा था कि उनकी अगली फिल्म और भी ज्यादा वाइलन्ट होगी
14:47कुछ लोग कवीर सिंग को वाइलन्ट बुलाते हैं लेकिन वो दिखा देंगे कि और वाइलन्ट फिल्म कितनी वाइलन्ट हो सकती है
14:53जब ये एनिमल फिल्म आई तो इनके फैंस इसी क्लिब को शेयर कर रहे हैं कि देखो संदीप ने दिखा दिया कि वाइलन्ट फिल्म क्या हो सकती है
15:06अब ऐसी फिल्मों के फैंस के बारे में भी एक बड़ी खास बात होती है
15:09आपने अकसर देखा होगा कि सबसे यदा टॉक्सिक फैंस ऐसी फिल्मों के होते हैं
15:13क्यूंकि बॉलिवूड की तरफ से मेडियॉकर फिल्में तो काफी आई हैं
15:17चाहे अभी हाल ही में रिलीज होगी तेजस हो, शहजादा हो
15:20या रणभीर कपूर की पिछली फिल्म समशेरा हो
15:22इन सभी फिल्मों को नेगेटिव रिवियूज मिले, आउडियन्स ने जम कर इने क्रिटिसाइस किया
15:26लेकिन किसी को कोई परॉबलम हुई इस क्रिटिसिजम से, किसी को कोई परॉबलम नहीं हुई
15:30लेकिन जब कबीर सिंग और आनिमल जैसी फिल्मों को क्रिटिसाइस किया जाता है, तो कुछ लोग बिलकुल तूट पड़ते हैं
15:36फिल्म क्रिटिक सुचरीता त्यागी ने कहा कि ये फिल्म एंटेटेइनिंग नहीं है
15:39और इस फिल्म के फैंस ने जाकर उनकी ट्विटर पर उन्हें गालियां देनी शुरू करती
15:43इसलिए क्यूं होता है क्योंकि कुछ लोगों को इन फिल्मों में अपनी वैलिडेशन मिलती है टॉक्सिसिटी के
16:14जब इन फिल्मों को कृटिस्जिस किआ जाता है तो इन के फैंस को लगता है कि इन कुछ की परस्नलीटी को कृटिस्सिज किया जाता है
16:21इन से वैलिडेशन कहीना कहीं चीनी जा रही है
16:24एकिन इत्रा सारा खुण खराबा दिखाने की पीछे असली कारण्ड मैं सच बताओं दोस्तों
16:28तो ये है की वाइलिन्स सेल्स
16:31आमिर खान ने इसके बारे में एक बड़ी अच्छी चीज़ कही थी इस क्लिप को देखी
16:35बहुत अर्ध होते हैं किे लिएस्तर कास्ति बारे में
16:39वोह साथं Gates पर पन suddenly क्या है
16:48यह सममनय का सिर waited फ़ीर खुल के लिए नहीं
16:51मूलकी हूलिवूर्ट के लीए भी क्या काम है
16:52एक नया जौनरे निकल के आया है फिल्मों का जिने
16:55कहा जाता है इमाजिन करो कोई बंदा अपने किसी दोस्त को कह रहा हो कि यार देखे नई गोर फिल्म आई है
17:01बहुत ज़्यादा खून खराबा हुआ उसमें देखने के लिए उसे देखने चलते हैं बहुत मज़ा आएगा वो जब हम किसी का सिर फटते हुए देखेंगे
17:08किसी को चाकू से कटते हुए देखेंगे यह सब देखकर बड़ा दिल खुश हो जाएगा मर
17:13इसके पीछे भी एक साइकलोजिकल रीजन है दोस्तों कि कुछ लोगों को इतना वाइलेंस और खून खराबा देखना क्यूं पसंद आता है
17:20उजिली वो लोग होते हैं जो अपनी असल जिन्दी में पावरलेस और डबे हुए फिल करते हैं
17:27कोई इंसान जो अपनी रियल लाइफ में अपने बॉस के नीचे दबा हुआ है, पूलीसमेन के नीचे दबा हुआ है
17:33या अपने पेरेंट्स से घर में बहुत डाट खाता है।
17:36इस तरीके के लोगों को इस टाइप की गोर वाइलेंट फिल्में सबसे ज्यादा पसंद आती हैं
17:40क्योंकि सिनिमा में जाकर वो इनसान खुद को हीरो की तरह एमैजिन कर सकता है।
17:44उससे खुशी मिलती है देखते हुए कि यहाँ पर औरो को मारा काटा जा रहा है।
17:48और एनिमल फिल्म में इसी तरीके के खुन खराब है और बलड लस्ट को एक्स्ट्रीम लेवल पर ले जाया गया है।
17:53यहाँ एक बंदा है जो दुश्मन को सिर्फ गोली नहीं मारेगा।
17:56वो अपने हातों से जाकर दूसरे का गला घोटेगा।
17:59दूसरे बंदे को एक चाकू से उसका गला काटेगा।
18:02यह कोई नॉर्मल बंदा नहीं, इसे साइकोपात कहलाया जाएगा असल जिंद्गी में।
18:07और फिल्म के डारेक्टर्स ऐसे सीन्स को गलामराइज करते हैं।
18:10स्टाइलिश तरीके से दिखाते हैं।
18:12इसका नतीजा ये हुआ कि 15 मिनित लंबा कंटिनियोस सीक्वेंस जिसमें भरपूर खुण खरावा दिखाया जा रहा है।
18:19किसी ने ट्विटर पर सही कहा इस फिल्म के बारे में।
18:22यह फिल्म फोर दी आनिमल्स, औफ दी आनिमल्स और बाई दी आनिमल्स है।
18:26अब आम तोर पर कोई भी नॉर्मल इनसान ऐसे करेक्टर को देख कर कहेगा
18:30कि कोई ना कोई साइकलोजिकल प्रॉबलम है इसे, ये मेंटली इल है।
18:33लेकिन फिल्म में जब ये सीन आता है और ये करेक्टर साइको थेरिपिस्ट के बाद जाता है
18:37उस बात को डिसमिस कर देता है।
18:39ओडियन्स को इतनी सीरियस्नेस दिखा कर टाइम विस्ट नहीं करना।
18:42एक के बाद एक सीन होना चाहिए जिसमें खून खराबा हो।
18:45जैसा आमिर खान ने कहा था, जो चीफ डिरेक्टर्स होते हैं, उनके बास कुछ और दिखाने के लिए नहीं होता।
18:49तो पैसे कमाने के लिए जितना जदा ये सब हो सके वही दिखाते रहते हैं।
18:53क्योंकि सच बात पता है क्या, फिलमे ऐसी भी बनाई जा सकती हैं, जिसमें वाइलन्स दिखाया गया हो, लेकिन उसे ग्लैमराइज ना किया जाए।
18:59उसे स्टाइलिश तरीके से ना दिखाया जाए, बल्कि ऐसा दिखाया जाए कि असल जिंद्गी में ये वाइलन्स होता है और इसका इतना बुरा इम्पैक्ट पड़ता है लोगों पर।
19:08लेकिन वैसी रियलिस्टिक फिलमे बॉक्स ओफिस पर इतनी चलती नहीं है।
19:12इसका एक बड़िया एक्जांपल है अनुराग कशिप की फिलमे, अगली, डेट गरल इन येलो बूट्स, आलमोस्ट प्यार विध, डीजे महौपत।
19:19ये ऐसी फिलमे हैं जो समाच पर एक कॉमेंटरी हैं।
19:22लेकिन लोगों को विलन की तरफ से वाइलेंस नहीं देखना।
19:25उनका मूड खराब हो जाता है जब विलन ऐसा वाइलेंस करता है।
19:28उन्हें लगता है कि पहले ही दुनिया में इतनी प्रॉबलम है,
19:31इस सिनेमा हॉल में भी ऐसा वाइलेंस देखकर क्या करना।
19:34क्योंकि ऐसा वाइलेंस देखने से आप डिसगस्ट फिल करते हो वाइलेंस को लेकर।
19:38आप वाइलेंस से रिपेल्ड फिल करते हो, नफरत होने लग जाती है आपको वाइलेंस से।
19:43जोकि अक्शुली में अच्छी चीज़ है, वाइलेंस से आपको प्यार नहीं होना चाहिए।
19:47देकिन लोगों का रिपरेस्ट सेल्फ क्या चाहता है?
19:49सिरफ एंटेटेन्मेंट, हीरो की तरफ से वाइलेंस देखने को मिल।
19:52आप अपने आपको इमैजिन करना चाहते हो कि आप जेम्स बॉंड हो, किल बिल हो, एनिमल का करेक्टर हो।
19:58और बहुत से डारेक्टरस और प्रडीूसर्स इसी चीज़ को समझ रहे हैं
20:01कि ये चीज़ असानी से बिक जाती है, तो और ये बनाओ, और इस टाइप की वाइलेंट और एक्शन फिल्में बनाओ।
20:06नतीजा ये हो रहा है कि अल्मोस्ट हर बड़े बज़ेट की जो फिल्म आ रही है,
20:09उसमें भरपूर एक्शन और वाइलेंस देखने को मिलता है।
20:13एक फिल्म क्रिटिक ने अपने एनिमल के रिवियू में कहा,
20:15हम साथ साथ है का टाइम गया, पब्लिक को अनिमल चाहिए।
20:19ये बड़े अफसोस की बात है क्योंकि हम साथ साथ है एक हार्ट वार्मिंग फैमिली ड्रामा है,
20:24जो रमायंड से इंस्पायर है।
20:25एक ऐसी फिल्म जो पूरा परिवार साथ में देख सकता है।
20:28एक ऐसी फिल्म जो दिल तक पहुचती है और एक अच्छा पॉजिटिव मेसेच देती है समाच को।
20:33रमायंड वाले वीडियो में ने बात करी थी भगवान राम के आइडियल्स को लेकर कि
20:37एक ऐसे इंसान को अच्छा मॉडल होना चाहिए हमारी सुसाइटी में मैस्किलिनेटी का।
20:45लेकिन कुछ लोगों को ऐसे मॉडल्स पसंद नहीं है क्योंकि उनके खुद के अंदर कोई कमपैशन और एमपैथी नहीं है।
20:50और एक इंसान जिसके अंदर कोई कमपैशन नहीं होता वो इंसान नहीं बलकि एक जानवर है लिटरली एक एनिमल है।
20:58संधीप बांगा की फिल्म के जो करेक्टर्स हैं कभीर सिंग और रन विजय इनका खुद के उपर कोई कंट्रोल नहीं है।
21:04कभीर सिंग दारो पीता है, ड्रग्स में एंगेज करता है, रन विजय चिल्लाता है, मारता है, गुस्सा होने पर अपनी बीवी के उपर ही एक गन पॉइंट कर देता है।
21:13क्या इस तरीके का करेक्टर कोई रोल मोडल बन सकता है कि?
21:16जो रिगरेसिव छपरी लोग ऐसे करेक्टर को पसंद करते हैं, वो अभी तक अपने आपको मार्चो मैन कहते थे।
21:22लेकिन पिछले कुछ सालों से एक नया शब्द आया है सोशल मीडिया पर इन लोगों के लिए।
21:28ये लोग अपने आपको अलफा मेल कहते हैं।
21:30लेकिन अगर आप समझदार हो तो आपको इन चीजों से दूर रहना चाहिए।
21:33ऐसी फिल्में नहीं देखनी चाहिए क्योंकि आपका दिमाग कोई डस्ट बिन नहीं है।
21:37अपने दिमाग को रिस्पेक्ट करो।
21:39और अगर आपके दोस्तों में कोई ऐसा है जो इस तरीखे की फिल्में पसंद करता है।
21:43उनके साथ ये वीडियो शेर करो और उन्हें दिखाओ कि इस तरीखे की फिल्में कैसे समाज के लिए कैंसर है।
21:49वीडियो पसंद आया है तो यहां क्लिक करके अब आप रमायंड वाला वीडियो देख सकते हो।
21:53वो भी बहुत पसंद आयेगा।
21:54बहुत-बहुत धन्यवाद।