इच्छा से अंतराय

  • 2 months ago
जीवन में बिना माँगे किसी चीज की प्राप्ति नहीं होती| इच्छाओं का नियम क्या है और वास्तविकता में इच्छा अनुसार मिलने या न मिलने के पीछे क्या विज्ञान है?
Transcript
00:00आपके मंदर पर्मात्मा है, आप खुद पर्मात्मा है, फिर आपको ये चीजे क्यों नहीं मिल रही हैं?
00:29उसका वज़ है आपके ही अंतराय कर्मा, और अंतराय कर्मा आपके अंदर और कोई नहीं डालता है, आप खुद ही बानते हों.
00:39और किस तरह से मांधे जाते हैं अंतराय कर्मा? इन इच्छाओं से, भवतिक इच्छाओं से, संसार के सुख पाने के लिए ही उसके पीछे दोडता हैं, और वही सुख उससे दूर दूर भागते हैं, मुरुग जल की जैसे, यह संसार मुरुग जल है, यह भूल जाता है, इस
01:09जुनिया की चीज़े उसके सामने आती हैं, तो भी उसको कोई फर्क नहीं गिरता है, उसको कोई अंदर से उसके परती एक आकर्शन नहीं होता है, और इच्छाओं का नीयम क्या है? चीज कब मिलती है, कि जब आपकी इच्छा पुरी हो जाती है, आपकी इच्छा मर जाती
01:39हैं, लेकिन या तो चीज को पाके इच्छा पुरी होती है, या ना पाके भी इच्छा पुरी होती हैं,
01:46इच्छा मर जाती है, या पाके भी इच्छा पुरी होती है, इसा नीयम है इच्छाओं का,
01:54और इच्छा को तो प्रगट अगनी कहा गया है, जब तक आपकी इच्छा पुरी नहीं होगी, तब आपको जला आएगी,
02:06और जब इच्छा पुरी हो जाएगी, तब चीज मिलेगी, तो क्या फाइदा,
02:11यानि हम मुरख बनते हैं इच्छा करके, मुरख, मुरख बनने की क्या जूरत है, आएगा हिसाब में तो आने दो, और ना आया तो कुछ नहीं, जो है सो है, उतना ही क्या कम है,
02:26निरुमाची, आपने ये बताया उसके पीछे एक्जेट सायंस क्या है, उसको जरी समझाने की कुरुपा कीजिए, इच्छा तो हर आदमी को होती है, और आप बोलती हो इच्छा नहीं करना है, तो आपको मिल जाएगा, तो किस तरह से सायंस के हिसाब से होता है?
02:44आपको जो भी कुछ मिलता है, स्थूल चीजे आपको जो भी कुछ मिलती है, आप पैदा हुए थे, तो क्या आपने कुछ इच्छा की थी कि नौ मेने मेरे कुछ लोजिंग बोर्डिंग की व्यवस्ता हो?
03:00नहीं, बेलकुल नहीं.
03:01फिर भी होगी न?
03:02हाँ.
03:03अच्छी तरह से हुई?
03:04हुँ.
03:05पलना पलना मिलेगा है, नहीं मिलागा है, ऐसा कोई इच्छा की थी?
03:08नहीं.
03:09खाना बिना दूद बगेरा मिलेगा है, कि नहीं मिलेगा है, इच्छा की थी?
03:13नहीं.
03:14कुछ नहीं?
03:15नहीं.
03:16कुछ इच्छा नहीं?
03:18हाँ.
03:24हुँ.
03:25हाँ.
03:26हाँ.
03:27हाँ.
03:28हाँ.
03:29हाँ.
03:30हाँ.
03:31हाँ.
03:32हाँ.
03:33हाँ.
03:34हाँ.
03:35हाँ.
03:36हाँ.
03:37हाँ.
03:38हाँ.
03:39हाँ.
03:40हाँ.
03:41हाँ.
03:42हाँ.
03:43हाँ.
03:44हाँ.
03:45हाँ.
03:46हाँ.
03:47है.
03:48है.
03:49इसवालीन की लीथ है,
03:50तो
03:52पर वैप केला दाना,
03:54कुछ भी रहतो तो,
03:55आपका जीतने तुंक्षा देवार थी,
03:57क्या?
03:58है?
04:00यून्ट के लिए आपको
04:01कनने जककते हमेश का
04:02पर आपको
04:03आतमुतøर देवार
04:16क्या अरे क्या गटोर गचके जैसा खाते हैं।
04:22हाँ सभी बात है, इससे ही होता है।
04:25और न खायें तो वो बेचारी परिशान हो जाएगें।
04:28अरे नहीं खाते, ये बनाओ, वो बनाओ, भज्ये बनाओ,
04:36हलवा बनाओ, सीखन बनाओ, लडू बनाओ, बोलो तुम, आप बोलो,
04:42आप क्यों खाते नहीं हो, आप बोलो, मैं बनाके खिलाऊँ आपको।
04:49करके तो देखो।

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