प्रसिद्ध रागिनी गायक एवं लेखक दादा जगन्नाथ का जन्म 24 जुलाई 1939 गांव समचाना में हुआ था। तीज वाले दिन पैदा हुए जगन्नाथ जी के चारों ओर गीत-मलहार का माहौल था | दादा जगन्नाथ प्रतिभा के इतने धनी थे कि उन्होंने अपने पिता की अनुपस्थिति में चार वर्ष की आयु में ही एक दंपती के फेरे तक करवा दिए थे। पंडित जगन्नाथ को परिजनों ने छह वर्ष की आयु में प्राथमिक स्कूल में शिक्षा के लिए दाखिल करवा दिया। स्कूल में उनका पंजीकरण करने वाले पंडित रामभगत को ही पंडित जगन्नाथ ने अपना गुरु मान लिया था। उन्हीं के मार्गदर्शन में संगीत की भी शिक्षा ली। पंडित जगन्नाथ प्रसिद्ध गायक पंडित लख्मीचंद से भी प्रभावित हुए।
पंडित जगन्नाथ ने उस समय में सभ्य समाज में प्रचलन न होने व इसे गलत मानने के बावजूद वर्ष 1970 में घड़वा-बैंजू को अपनाया। उन्हीं के साथ धार्मिक, साहित्यिक व ऐतिहासिक रचनाओं को गायन के माध्यम से प्रस्तुत किया। पंडित जगन्नाथ ने इन्हीं वाद यंत्रों से आकाशवाणी व दिल्ली दूरदर्शन पर भी प्रस्तुति दी। सूर्य कवि की उपाधि से नवाजे गए पंडित जगन्नाथ के पास करीब आठ सौ भजनों का संग्रह है। भजनों के अलावा उन्होंने लगभग हर किस्से की पुनः रचना की | एक समय था जब वे पूरे-पूरे दिन व पूरी रात गाते थे और मात्र 3-4 घंटे ही सोते थे | ये लोगों में उनकी रचनाओं के प्रति दीवानगी ही थी की जहां भी वे जाते और जहां भी बैठते तो लोग उनकी रागनी सुनने के लिए इकट्ठे हो जाते थे | दादा जगन्नाथ जी हरियाणवी रागनी कला को, जो उस समय देशी तर्ज़ों तक ही सीमित थी, फिल्मी तर्ज़ों मे ढाल कर एक नया आयाम दिया और हरियाणवी रागनी कला के विस्तार के लिए नए दरवाजे खोल दिए |
पंडित जगन्नाथ को उनकी उपलब्धियों के कारण ही हरियाणा साहित्य अकादमी की तरफ से विशिष्ट साहित्य सेवा सम्मान, फौजी जाट मेहर सिंह हरियाणा आदि दर्जनों अवार्डों से सम्मानित किया गया।
हरियाणवी लोकसंस्कृती काव्य और गायन के भीष्म पितामह दादा जगन्नाथ 10 अगस्त 2018 को इस नश्वर संसार को छोड़ कर पंच तत्व मे विलीन हो गए | हरियाणवी संस्कृति को उनका योगदान अतुलीनीय है |
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