'जो आम में है वो नहीं लबे शीरी में नहीं रस'आते हैं नजर आम तो जाते हैं बदन कस। जी हैं किसी शायर की ये पक्तियां आम जैसे फल पर बिल्कुल मुफीद बैठती हैं। पश्चिम उप्र का मेरठ हो या बागपत यहां के बागों के आम दिल्ली प्रधानमंत्री आवास से लेकन यूपी के मुख्यमंत्री आवास और राजभवन तक मशहूर हुआ करते थे। बागपत के रटौल के आम तो ब्रिटेन की महारानी तक भेट स्वरूप इंदिरा गांधी भिजवाकर डिप्लोमेसी को मजबूत करती थी। 70 के दशक से लेकर 90 के दशक तक मेरठ के किठौर,शाहजहांपुर और बागपत के रटौल के बागों में राजनैतिक दलों के दिग्गज आम का स्वाद लेने आते थे। बाग में चारपाइयों पर बैठकर अटल बिहारी वाजपेयी, चंद्र्शेखर और बलराम जाखड़ के अलावा मोराजजी देसाई तक आम चूसने का मजा लिया करते थे। वक्त के साथ—साथ बागों में अब राजनैतिक दलों के दिग्गजों की जुटने वाली महफिले भी विलुप्त हो गई। या यो भी कहा जा सकता है कि अब राजनीति दिग्गजों की वो पौध ही विलुप्त हो गई जो फलों के राजा आम के स्वाद की कायल हुआ करते थे।
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