• 4 years ago
प्रकृति भी कितनी नायब चीज़ है
क्या नहीं है प्रकृति के पास , इस संसार में पैदा होने वाला हर जीव
प्रकृति से जुड़ा हुआ होता है , प्रकृति पोषण करती है , इसलिए हम उसे माँ कहते है
महात्मा गांधी ने कहा कहा है की " प्रकृति में इतनी ताकत होती है की मनुष्य की हर ज़रूरत को पूरा कर सकती है
मगर प्रकृति कभी भी मनुष्य के लालच को पूरा नहीं कर सकती "
बाईस अप्रैल यानि आज ही के दिन अर्थ डे मनाया जाता है
इस बार का अर्थ डे , पृथ्वी दिवस , खास है
क्यूंकि कोरोना वायरस के चलते लॉक डाउन की स्थिति है
काला , सफ़ेद ज़हरीला धुआं उड़ेलते सारे कारखाने बंद है
, बसे , कारें स्कूटर मोपेड सब गैराजो में पड़े हैं
यहाँ तक की मनुष्य केवल खिडकियों तक सीमित होगया है
इन्सान क्या तहज़ीब में आया सारा का सारा वातावरण नया होने लगा है
प्रकृति फिर से श्रृंगार करने लगी है
वो गोरैया भी अब दिखने लगी है जो न जाने हमारे बचपन के साथ कहा गम होगी थी
इन्सान घरों में कैद होगया है , और जीव जंतु खुले में सैर कर रहे है नदियाँ निर्मल होने लगी है , आसमान साफ़ होने लगा है
हमरी धरती के वातावरण को सूरज की खतरनाक किरणों से बचने वाली ओजोन लेयर जिसे हमने छलनी किआ हुआ था , खुद का उपचार कर रही है
जीव जंतुओं के लिए वातावरण और अधिक सुरक्षित होगया है
पहले हम ये मान बैठे थे की हम ही इस धरती के रजा है
और अन्य जीव जंतुओं के साथ दोयम दर्जे का बर्ताव करते थे थे मगर माँ प्रकृति ने ये साबित कर दिया है की जितना ये धरती हमारा घर है उतना ही अन्य जंतुओं का भी
इसे आप प्रकृति का न्याय भी कह सकते है
जिस प्रकार से मनुष्य कैद होगया है और वातावरण सोंदार्यवान होरहा है तो ये कहना गलत नहीं होगा की हम मनुष्य इस धरती पर रहने लायक नहीं है .
हम ही है वो जंगली जानवर , वो उत्पाती हैं
जिसने इस सुन्दर दुनिया को शती पहुंचाई है , तहस नहस किआ है
इन्सान ने हमेशा खुद को सर्वशक्तिमान घोषित किआ है
मगर प्रकृति ने उसका ये घमंड भी तोड़ दिया है
नाकि सिर्फ घमंड तोडा है , बल्कि ये एहसास भी दिला दिया है की
एक अति सूक्ष्म विषाणु उसकी हालत ख़राब कर सकता है
अपने अपने परमाणु पर नाज़ करने वाले हैरान है
की इस संसार में एक विषाणु से कैसे बचा जाये .
जिंदा बचे रहने की लालच में दुनिए के तमाम लोग
काम धंधे बंद किये बैठे है , जो पहले कहते थे की सब रुक सकता है मगर काम नहीं
एक दिन covid -19 से दुनिया मुक्त हो ही जाएगी
सब ढर्रे पर लौट आएगा , मगर क्या भरोसा है
की इन्सान सुधर जायेगा , सबक लेगा और प्रकृति से धरा से प्रेम करेगा
आएये हम सब मिल कर इस पृथ्वी दिवस पर ये प्रण ले की हम आगे से प्रकृति वो हश्र नहीं करेगे की माँ हमसे क्रुद्ध होजये
अन्य जीव जंतुओं को भी सम्मान देंगे
विकास की अंधी दौड़ में सरकारे शामिल न हो
तो ये धरा दिवस मानाने का उद्देश्य सार्थक साबित हो सके
अन्यथा धरा दिवस मानना व्यर्थ ही रहेगा

Category

🗞
News

Recommended