मां चिंतपूर्णी के दर्शन व रहस्य-
चिंतपूर्णी गांव जिला ऊना हिमाचल प्रदेश राज्य में स्थित है। पर्यटक अपने निजी वाहनो से चिंतपूर्णी बस स्टैण्ड तक जा सकते हैं। बस स्टैण्ड चिंतपूर्णी मंदिर से 1.5 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है। चढाई का आधा रास्ता सीधा है और उसके बाद का रास्ता सीढीदार है।
गर्मी के समय में मंदिर के खुलने का समय सुबह 4 बजे से रात 11 बजे तक है और सर्दियों में सुबह 5 बजे से रात्रि 10 बजे तक का है। दोपहर 12 बजे से 12.30 तक भोग लगाया जाता है और 7.30 से 8.30 तक सांय आरती होती है। दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालु माता के लिए भोग के रूप में सूजी का हलवा, लड्डू बर्फी, खीर, बतासा, नारियल आदि लाते हैं। कुछ श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी हो जाने पर ध्वज और लाल चूनरी माता को भेट स्वरूप प्रदान करते हैं। चढाई के रास्ते में काफी सारी दूकाने है जहां से ही श्रद्धालु माता को चढाने का समान खरीदते हैं। मंदिर के मुख्य द्वार पर प्रवेश करते ही सीधे हाथ पर आपको एक पत्थर दिखाई देगा। यह पत्थर माईदास का है। यही वह स्थान है जहां पर माता ने भक्त माईदास को दर्शन दिये थे। भवन के मध्य में माता की गोल आकार की पिण्डी है। जिसके दर्शन भक्त कतारबद्ध होकर करते हैं। श्रद्धालु मंदिर की परिक्रमा करते हैं। माता के भक्त मंदिर के अंदर निरंतर भजन कीर्तन करते रहते हैं। इन भजनो को सुनकर मंदिर में आने वाले भक्तो को दिव्य आंनद की प्राप्ति होती है और कुछ पलो के लिए वह सब कुछ भूल कर अपने को देवी को समर्पित कर देते हैं। मंदिर के साथ ही में वट का वृक्ष है जहां पर श्रद्धालु कच्ची मोली अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए बांधते हैं। आगे पश्चिम की और बढने पर बड़ का वृक्ष है जिसके अंदर भैरों और गणेश के दर्शन होते हैं। मंदिर का मुख्य द्वार पर सोने की परत चढी हुई है। इस मुख्य द्वार का प्रयोग नवरात्रि के समय में किया जाता है। मंदिर की सीढियों से उतरते वक्त उत्तर दिशा में पानी का तालाब है। पंड़ित माईदास की समाधि भी तालाब के पश्चिम दिशा की ओर है। पंड़ित माईदास द्वारा ही माता के इस पावन धाम की खोज की गई थी।
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चिंतपूर्णी गांव जिला ऊना हिमाचल प्रदेश राज्य में स्थित है। पर्यटक अपने निजी वाहनो से चिंतपूर्णी बस स्टैण्ड तक जा सकते हैं। बस स्टैण्ड चिंतपूर्णी मंदिर से 1.5 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है। चढाई का आधा रास्ता सीधा है और उसके बाद का रास्ता सीढीदार है।
गर्मी के समय में मंदिर के खुलने का समय सुबह 4 बजे से रात 11 बजे तक है और सर्दियों में सुबह 5 बजे से रात्रि 10 बजे तक का है। दोपहर 12 बजे से 12.30 तक भोग लगाया जाता है और 7.30 से 8.30 तक सांय आरती होती है। दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालु माता के लिए भोग के रूप में सूजी का हलवा, लड्डू बर्फी, खीर, बतासा, नारियल आदि लाते हैं। कुछ श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी हो जाने पर ध्वज और लाल चूनरी माता को भेट स्वरूप प्रदान करते हैं। चढाई के रास्ते में काफी सारी दूकाने है जहां से ही श्रद्धालु माता को चढाने का समान खरीदते हैं। मंदिर के मुख्य द्वार पर प्रवेश करते ही सीधे हाथ पर आपको एक पत्थर दिखाई देगा। यह पत्थर माईदास का है। यही वह स्थान है जहां पर माता ने भक्त माईदास को दर्शन दिये थे। भवन के मध्य में माता की गोल आकार की पिण्डी है। जिसके दर्शन भक्त कतारबद्ध होकर करते हैं। श्रद्धालु मंदिर की परिक्रमा करते हैं। माता के भक्त मंदिर के अंदर निरंतर भजन कीर्तन करते रहते हैं। इन भजनो को सुनकर मंदिर में आने वाले भक्तो को दिव्य आंनद की प्राप्ति होती है और कुछ पलो के लिए वह सब कुछ भूल कर अपने को देवी को समर्पित कर देते हैं। मंदिर के साथ ही में वट का वृक्ष है जहां पर श्रद्धालु कच्ची मोली अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए बांधते हैं। आगे पश्चिम की और बढने पर बड़ का वृक्ष है जिसके अंदर भैरों और गणेश के दर्शन होते हैं। मंदिर का मुख्य द्वार पर सोने की परत चढी हुई है। इस मुख्य द्वार का प्रयोग नवरात्रि के समय में किया जाता है। मंदिर की सीढियों से उतरते वक्त उत्तर दिशा में पानी का तालाब है। पंड़ित माईदास की समाधि भी तालाब के पश्चिम दिशा की ओर है। पंड़ित माईदास द्वारा ही माता के इस पावन धाम की खोज की गई थी।
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