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  • 10/21/2019
श्रीकृष्ण ने किया था नरकासुर का वध

प्रागज्योतिषपुर नगर का राजा नरकासुर नामक दैत्य था। जब उसका अत्याचार बहुत बढ़ गया तो देवता व ऋषिमुनि भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गए। नरकासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया तथा उन्हीं की सहायता से नरकासुर का वध किया।  श्रीकृष्ण ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध कर देवताओं व संतों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई। उसी की खुशी में दूसरे दिन अर्थात कार्तिक मास की अमावस्या को लोगों ने अपने घरों में दीएं जलाए। तभी से नरक चतुर्दशी तथा दीपावली का त्योहार मनाया जाने लगा।



राजा बलि ने मांगा था ये वरदान

जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर दैत्यराज बलि से तीन पग धरती मांगकर तीनों लोकों को नाप लिया तो राजा बलि ने उनसे एक वरदान मांगा। बलि ने कहा कि- आपने कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से लेकर अमावस्या की अवधि में मेरी संपूर्ण पृथ्वी नाप ली है, इसलिए जो व्यक्ति मेरे राज्य में चतुर्दशी के दिन यमराज के लिए दीपदान करे, उसे यम यातना नहीं होनी चाहिए और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का पर्व मनाए, उनके घर को लक्ष्मीजी कभी न छोड़ें। वामनदेव ने कहा कि ऐसा ही होगा। तभी से दीपावली का पर्व मनाया जा रहा है।



बंधन मुक्त हुई थीं महालक्ष्मी

एक बार सनत्कुमार ने ऋषि-मुनियों की एक सभा में कहा कि- कार्तिक मास की अमावस्या को सभी को भक्तिपूर्वक देवी लक्ष्मी के साथ ही अन्य देवताओं की भी पूजा करनी चाहिए। मुनियों ने पूछा कि- लक्ष्मी पूजन के साथ अन्य देवी-देवताओं की पूजा का क्या कारण है। तब सनत्कुमार बोले कि- राजा बलि के यहां सभी देवता सहित देवी लक्ष्मी भी बंधन में थीं। कार्तिक अमावस्या के दिन ही भगवान विष्णु ने उन सभी को राजा बलि के बंधन से छुड़वाया था। इसीलिए इस दिन रात के समय देवी लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए।



खत्म हुआ था पांडवों का वनवास

दीपावली से जुड़ी एक मान्यता यह भी है कि इसी दिन पांडवों का 12 वर्ष के वनवास व 1 वर्ष के अज्ञातवास समाप्त हुआ था।



समुद्र मंथन में प्रकट हुई थीं माता लक्ष्मी

एक अन्य मान्यता यह भी है कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी (धनतेरस) को समुद्र मंथन से देवी लक्ष्मी प्रकट हुई थीं और अमावस्या (दीपावली) पर लक्ष्मी ने अपने पति के रूप में विष्णु को चुना और फिर उनसे विवाह किया।   

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