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राजसमंद। यह दास्तां है एक ऐसी युवती की, जिसने पहले बाल विवाह का दंश झेला। फिर दहेज प्रताड़ना का शिकार हुई। बाद में पढ़ाई की राह में रोड़े अटके और अब समाज के कई लोग इसके परिवार के खिलाफ हो गए। यह पढ़ना चाहती है। पढ़-लिखकर कुछ बनना चाहती है। ना जाने अपने जैसी कितनी ही बेटियों की उम्मीदों को पंख लगाना चाहती है, मगर सामाजिक कुरीतियां पैरों में बेड़ियां बन रही हैं। 'ज्यादा पढ़कर क्या कलेक्टर बन जाओगी' जैसे ताने तक सुनने को मिले रहे हैं।
राजसमंद। यह दास्तां है एक ऐसी युवती की, जिसने पहले बाल विवाह का दंश झेला। फिर दहेज प्रताड़ना का शिकार हुई। बाद में पढ़ाई की राह में रोड़े अटके और अब समाज के कई लोग इसके परिवार के खिलाफ हो गए। यह पढ़ना चाहती है। पढ़-लिखकर कुछ बनना चाहती है। ना जाने अपने जैसी कितनी ही बेटियों की उम्मीदों को पंख लगाना चाहती है, मगर सामाजिक कुरीतियां पैरों में बेड़ियां बन रही हैं। 'ज्यादा पढ़कर क्या कलेक्टर बन जाओगी' जैसे ताने तक सुनने को मिले रहे हैं।
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