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  • 5/31/2017
चारो तरफ उजाला पर अँधेरी रात थी
जब वो हुए शहीद उन दिनों की बात थी
आंगन में बैठी माँ से बेटा पूछे बार बार
दीपावली पर पापा क्यों नहीं आये अबकी बार

माँ क्यों ना आज भी तूने बिंदिया लगाई है
है दोनों हाथ खाली ना मेहंदी रचाई है
बिछिया भी नहीं पांव में बिखरे से बाल है
लगती थी कितनी प्यारी अब ये केसा हाल है

कुमकुम के बिना सुना सा लगता है सिंगार
दीपावली पर क्यों ना आये पापा अबकी बार

सबके पापा नए कपडे लाये है
मिठाइयाँ वो साथ में पटाखे लाएं है
वो सब नए जूते पहनकर खेलने आए है
पापा पापा कहकर सब मुझको चिढ़ाए है

अब तो बता दो क्यों है सूना आँगन घर द्वार
दीपावली पर क्यों नहीं आये पापा अबकी बार

दो दिन हुए है तूने कहानी ना सुनाई
हर बार की तरह ना तूने खीर बनाई
आने दो पापा को में सारी बात कहूँगा
तुम से ना बोलूँगा न तुम्हारी में सुनूंगा

ऐसा क्या हुआ की बताने से है इनकार
दीपावली पर पापा क्यों नहीं आये अबकी बार

पूछ ही रहा था बेटा जिस पिता के लिए
जुड़ने लगी थी लकड़ियाँ उसकी चिता के लिए
पूछते पूछते वो हो गया निराश
जिस वक्त उसके पिता की आँगन में आई लाश

मत हो उदास माँ मुझे जबाब मिल गया
मकसद मिला जीने का ख्वाब मिल गया
पापा का जो काम रह गया है अधुरा
लड़कर देश के लिए मैं करूँगा पूरा
आशीर्वाद दो मां काम पूरा हो इस बार

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😹
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