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00:00सुबा उटकर वनजाक्षी देखती है कि जहां पिछली रात को एक छोटा सा पौदा था, वो अगले दिन एक बड़ा छे फुट वाला पेड़ बन चुका था
00:10और इतना ही नहीं उन पे बैंगन पे इतने भरे भरे और चार गुना बड़े भी उग गए थे
00:17ये देख वनजाक्षी अपनी आँखों का खुद यकीन नहीं कर पा रही थी, पेड़ के पास आकर उसे जांचने लगती है
00:26ये कैसे हुआ, कि मुम्किन कैसे है, कल तक तो ये पौदा था, आज पेड़ कैसे बन गया
00:33वो ऐसे सोच में बढ़ गई थी, कि इतने में उसकी बेटी वसुंदरा वहां आकर, उस पेड़ को देख ऐसे ही चौंग जाती है
00:42कुछ देर बाद वो हार मान कर, कुछ बैंगन को लेकर उनका भरता बनाती है
00:50बस वो भरता स्वादिश था, उस स्वाद पे फिदा होकर मा बेटी दोनों, बचे कुछ बैंगनों को उनके आजू-बाजू पड़ोसी लोगों में बाट देते हैं
01:02अगले दिन उस बैंगन के स्वाद पे फिदा होकर बार बार वनजाक्षी के घर आकर उनसे बैंगन बूचते हैं
01:13और इतना ही नहीं, जितने बैंगन को कल वो पेर से तोड़े थे, उतनी ही बैंगन अगले दिन वापस उख गये थे
01:21ये देख मा बेटी दोनों आश्चेर चकित हो जाते हैं, तब दोनों फैसला करते हैं कि इन बैंगनों को मुफ्त में नहीं देना है
01:29ये कहकर बेचते हैं कि ये जादूई पेर है और इसके बैंगन बहुत स्वादिष्ट है, ऐसे वो बैंगन दुगने रेट में बिग जाते हैं
01:38कुछी दिनों में इन स्वादिष्ट बैंगनों के बारे में और वो बड़ा सा बैंगन के पेड़ के बारे में इधर उधर बात फैल कर आजू बाजू पड़ो सी शहर तक पहुंच जाता है
01:49इसलिए हर रोज सुबर शुरू होते ही पेड में भर के बैंगन उगते थे और उनके लिए लोगों की लाइन लग जाती थी सुबर सुबर और वो भी वनजाक्षी के घर के बाहर
02:01बनजाक्षी का पैसों का डिपा हर रोज पैसों से भर जाता था और ये बहुत साधारन सी चीज होती थी
02:08कुछी दिनों में बनजाक्षी का नाम बैंगन से जुड़ गया और सब उसे बैंगन बेचने वाली बनजाक्षी करके बुलाने लग गये
02:18और इतना ही नहीं वो बहुत कम समय में उस सारे गाउ में सबसे अमीर बन जाती है
02:23बड़ी सी बंगला बनवाती है और उस बैंगन के पेड के चारो और बार लगवा देती है
02:33और उस पेड के पास एक सेक्योरिटी गाड को भी रख लेती है
02:36एक दिन वसंदरा वनजाक्षी के पास जाकर ऐसे कहती है
02:40मा रातो रात एक छोटा सा पौदा इतना बड़ा पेड कैसे बन गया
02:47और उपर से अगर सारे के सारे बैंगन हमने तोड़ दिया तो भी अगले दिन उनके जगह में उतने ही बर के बैंगन उग जाते हैं
02:57ये कैसे मुम्किन है अरे हाँ हाँ मैं भी इस चीज के बारे में सोचना भूल गई चलो जो भी हुआ उनसे हमारा अच्छा ही तो हुआ
03:05अब तो मुझे तुम्हारी शादी की भी कोई फिकर नहीं है बेटा
03:09ऐसे कहती है और ठीक तभी वनजाक्षी को एक बात याद आती है उस समय में जब भी वनजाक्षी के लिए रिश्टे लाते थे तो कुछ भी सेट नहीं होता था
03:21अगर वसुंदरा को लड़का पसंद आ गया तो लड़के वालों को इनका दहेज नहीं पसंद आता था
03:28और अगर लड़के ने वसुंदरा को पसंद कर लिया तो वसुंदरा को वो लड़का पसंद नहीं आता था
03:33ऐसे बहुत सारे रिश्टे देख देख कर वनजाक्षी ठक कर ये सोचने लगती है कि शायद उसकी बेटी के कुंडली में कोई दोश है इसलिए वो बहुत सारे पूजा पाट करवाती रहती थी
03:45ऐसे ही एक दिन वो मंदर में पूजा करवा के घर लोटती रहती है तब रस्ते में उसे एक बेंगन का तुकड़ा नजर आता है उसे लेकर वो अपने घर के सामने रख देती है
03:57और कुछ दिन बात उस जगह में एक छोटा सा पौदा उग गया था
04:05मंदर जाने से पहले उन बेंगनों को देख बनजाक्षी सोचती है
04:09घराने के बाद ना इन बेंगनों का एक बहुत अच्छा भरता बनाना है मुझे
04:14यही सोचते हुए वो मंदर चलती रहती है रस्ते में वो ऐसे सोचती है
04:19अगर कोई वो बेंगन को लिखे गया तो वो फैसला करती है कि जल्दी जल्दी वो मंदर जाकर भगवान की प्रार्तना करके पहरा जाएगी
04:27वापस आते वक्त उसे रस्ते में एक सादू नजर आते हैं
04:31उनके पास जाकर वो ऐसे पूचती है
04:33स्वामी मैं मेरी बेटी की शादी करवाने के लिए बहुत कोशिश कर रही हूं
04:38लेकिन नहीं हो रहा है
04:39खुरुपा करके इसका कोई हल निकाल देजिए
04:42ठीक है उस जगा पे बैट कर अपनी पूरी मन से प्रार्थना करो
04:47ऐसे कहते हैं सादू
04:49तब वनजर आक्षी उस सादू के सामने बैट कर इसी डर में पड़ी रहती है
04:54कि कही कोई उस बैंगन को चुराना ले
04:56ए भगवान मेरे घर जाने तक उन बैंगरों को संभाल के रखना
05:00किसी को उसे चुराना नहीं है
05:02इसका प्रार्थना करके वो उटकर सादू के पास जाकर
05:06आशिरवात तीचे स्वामी ऐसे कहती है
05:09तब सादू कहते है
05:10जो प्रार्थना तुमने अपनी मन से
05:13पूरे मन से किया है
05:14तुम्हें वो हासिल होगा
05:16और वो भी दुगने में
05:18जाओ बेटी
05:19तब जाकर वनजाक्षी को समझाता है कि हुआ क्या था
05:22और वो वसंदरा को ये सब समझा देती है
05:25तो तुमने मेरे शादी के बारे में नहीं
05:28बेगन के बारे में प्रार्थना किया था
05:30मा तुम भी न
05:31ये कहकर हस लेती है
05:33चलो जो भी हुआ हमारा तो भलाई हुआ ना बेटी
05:36इस बेगन के पेड के वज़े से हम अमीर बन गये हैं
05:40और कल ही तुम्हारा स्वायमवर है
05:42तयार हो जाओ
05:43ये कहकर आजू बाजू पड़ो
05:46उसके सारे गाउं में डंडोरा पिटवाती है
05:48कि उससे भी अमीर लोग
05:50उसकी बेटी से शादी करने के लिए
05:52स्वायमवर आ जाए
05:53तब तक बेंगन बेचने वाली वनजाक्षी तो बहुत प्रसिद थी
05:58और उस घर के जादूई बेंगन का पेड भी
06:00इसलिए उससे रिष्टा पका करने के लिए
06:03बहुत सारे अमीर लोग लाइन में लग गए थे
06:05उन में इसे अमीर और अच्छा दिखने वाले एक आदमी से
06:09वनजाक्षी अपनी बेटी वसुंदरा की शादी करवा लेती है
06:13कुछ दिन बाद जब उसके सारे जिम्मदारिया खतम हो गई थी
06:17वनजाक्षी उस बेंगन के पेड के पास बैठ कर ऐसे सोचने लगती है
06:35अगले दन सुबा उटके देखने पर उस बड़े बेंगन के पेड के जगह में
06:47वही पुराना वाला चोटा सा पौदा था जो वनजाक्षी ने वहां लगाया था
06:53तब वनजाक्षी को पूरी बात समझ में आती है
06:56आशा करना तो अच्छा ही है लेकिन लालच करोगे तो निराशा ही मिलेगी