प्रथम यज्ञ भूखंड धरा पर आर्य का आगाज है।
यह प्रयागराज, पावन संगम की धरती है, जहाँ समय और काल के बीच एक दिव्य मिलन होता है।
प्रयागराज में कण-कण में भगवान बसे हैं, हर कदम स्वर्ग से धाम की ओर जाता है। यह वह स्थान है जहां हर श्रद्धालु को आत्मिक शांति मिलती है। यहाँ गंगा, यमुना, और सरस्वती का संगम है, और यह मिलन राम के चरणों से पवित्र हो चुका है।
संगम तट पर जहाँ हर आत्मा को मुक्ति की प्राप्ति होती है, यह स्थल तीर्थराज प्रयाग है—धर्म का राज्य, और सनातन संस्कृति का गौरव।
यहां हर वर्ष अर्धकुंभ और महाकुंभ के अवसर पर लाखों श्रद्धालु अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए गंगा के पवित्र जल में स्नान करते हैं। यह कुंभ मेला ऋषि-मुनियों के विविध किरदारों का साक्षी है, जो इस भूमि को अपने ज्ञान और तप से ओतप्रोत करते हैं।
कल्पवास और अमृत की बूंदें सनातन संस्कृति के गर्व का प्रतीक हैं, जो इस पुण्य भूमि पर बहती हैं।
कुंभ में जाऊंगी, संगम तीर्थराज गंगा में गोता लगाऊंगी। यह नारा केवल एक श्रद्धा का ही प्रतीक नहीं है, बल्कि यह उस आस्था का भी प्रतीक है, जो हमारे अतीत से जुड़ी हुई है।
संगम की जय हो!
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यह प्रयागराज, पावन संगम की धरती है, जहाँ समय और काल के बीच एक दिव्य मिलन होता है।
प्रयागराज में कण-कण में भगवान बसे हैं, हर कदम स्वर्ग से धाम की ओर जाता है। यह वह स्थान है जहां हर श्रद्धालु को आत्मिक शांति मिलती है। यहाँ गंगा, यमुना, और सरस्वती का संगम है, और यह मिलन राम के चरणों से पवित्र हो चुका है।
संगम तट पर जहाँ हर आत्मा को मुक्ति की प्राप्ति होती है, यह स्थल तीर्थराज प्रयाग है—धर्म का राज्य, और सनातन संस्कृति का गौरव।
यहां हर वर्ष अर्धकुंभ और महाकुंभ के अवसर पर लाखों श्रद्धालु अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए गंगा के पवित्र जल में स्नान करते हैं। यह कुंभ मेला ऋषि-मुनियों के विविध किरदारों का साक्षी है, जो इस भूमि को अपने ज्ञान और तप से ओतप्रोत करते हैं।
कल्पवास और अमृत की बूंदें सनातन संस्कृति के गर्व का प्रतीक हैं, जो इस पुण्य भूमि पर बहती हैं।
कुंभ में जाऊंगी, संगम तीर्थराज गंगा में गोता लगाऊंगी। यह नारा केवल एक श्रद्धा का ही प्रतीक नहीं है, बल्कि यह उस आस्था का भी प्रतीक है, जो हमारे अतीत से जुड़ी हुई है।
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