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Maha Kumbh History | Ban on Kumbh Mela | 1858 और 1942 की अनसुनी कहानियां | From the pages of history
क्या आप जानते हैं कि भारत के प्रसिद्ध कुंभ मेले पर भी कभी प्रतिबंध लगाया गया था?
साल 1942 और 1858—दो ऐसे महत्वपूर्ण साल जब कुंभ मेले की पवित्र परंपरा बाधित हुई। आइए, इतिहास के इन पन्नों को पलटते हैं और जानते हैं इन अनसुनी कहानियों को।
📌 1942: भारत छोड़ो आंदोलन और कुंभ मेला
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने कुंभ मेले पर प्रतिबंध लगा दिया।
दावा किया गया कि जापान बम गिरा सकता है, लेकिन असली कारण था आंदोलनकारियों का जमावड़ा।
लाखों लोग आजादी के लिए जुट रहे थे, जिससे अंग्रेजों को खतरा महसूस हुआ।
📌 1858: प्रथम स्वाधीनता संग्राम के बाद का कुंभ मेला
1857 के विद्रोह के बाद इलाहाबाद (अब प्रयागराज) पर अंग्रेजों का कड़ा पहरा।
मेला क्षेत्र में तीर्थ पुरोहितों की जगह अंग्रेजी सेना के तंबू।
परंपरा को जीवित रखने के लिए तीर्थ पुरोहितों ने गंगा जल को दारागंज में लाकर धार्मिक स्नान कराया।
📌 कुंभ मेला: आस्था और परंपरा का प्रतीक
1942 और 1858 के प्रतिबंधों ने कुंभ मेले की महिमा और महत्व को और बढ़ा दिया। यह मेला न केवल धार्मिक आयोजन है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और राजनीतिक चेतना का प्रतीक भी है।
क्या आप इन ऐतिहासिक घटनाओं से प्रेरित हैं?
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Maha Kumbh History | Ban on Kumbh Mela | 1858 और 1942 की अनसुनी कहानियां | From the pages of history
क्या आप जानते हैं कि भारत के प्रसिद्ध कुंभ मेले पर भी कभी प्रतिबंध लगाया गया था?
साल 1942 और 1858—दो ऐसे महत्वपूर्ण साल जब कुंभ मेले की पवित्र परंपरा बाधित हुई। आइए, इतिहास के इन पन्नों को पलटते हैं और जानते हैं इन अनसुनी कहानियों को।
📌 1942: भारत छोड़ो आंदोलन और कुंभ मेला
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने कुंभ मेले पर प्रतिबंध लगा दिया।
दावा किया गया कि जापान बम गिरा सकता है, लेकिन असली कारण था आंदोलनकारियों का जमावड़ा।
लाखों लोग आजादी के लिए जुट रहे थे, जिससे अंग्रेजों को खतरा महसूस हुआ।
📌 1858: प्रथम स्वाधीनता संग्राम के बाद का कुंभ मेला
1857 के विद्रोह के बाद इलाहाबाद (अब प्रयागराज) पर अंग्रेजों का कड़ा पहरा।
मेला क्षेत्र में तीर्थ पुरोहितों की जगह अंग्रेजी सेना के तंबू।
परंपरा को जीवित रखने के लिए तीर्थ पुरोहितों ने गंगा जल को दारागंज में लाकर धार्मिक स्नान कराया।
📌 कुंभ मेला: आस्था और परंपरा का प्रतीक
1942 और 1858 के प्रतिबंधों ने कुंभ मेले की महिमा और महत्व को और बढ़ा दिया। यह मेला न केवल धार्मिक आयोजन है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और राजनीतिक चेतना का प्रतीक भी है।
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