बड़ा मुश्किल है सच को जिताना || आचार्य प्रशांत, उत्तर गीता पर (2020)

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वीडियो जानकारी: पार से उपहार शिविर, 10.01.20, ग्रेटर नॉएडा, उत्तर प्रदेश, भारत

प्रसंग:
दानं व्रतं ब्रह्मचर्यं यथोक्तं ब्रह्मधारणम् ।
दमः प्रशान्तता चैव भूतानां चानुकम्पनम् ॥१५॥

संयमाश्चानृशंस्यं च परस्वदान्वार्जनम् ।
व्यलीकानामकरणं भूतानां मनसा भुवि ॥१६॥

मातापित्रोश्च शुश्रूषा देवतातिथिपूजनम्।
गुरु पूजा घृणा शौचं नित्यमिन्द्रियसंयमः॥१७॥

प्रवर्तनं शुभानां च तत्सतां वृत्तमुच्यते।
ततो धर्मः प्रभवति यः प्रजाः पाति शाश्वतीः॥१८॥

भावार्थ: दान, व्रत, ब्रह्मचर्य, शास्त्रोक्त रीति से वेदाध्ययन, इन्द्रियग्रह, शान्ति, समस्त प्राणियों पर दया, चित्त का संयम, कोमलता, दूसरों के धन लेने की इच्छा का त्याग, संसार के प्राणियों का मन से भी अहित न करना, माता-पिता की सेवा, देवता, अतिथि और गुरुओं की पूजा, दया, पवित्रता, इन्द्रियों को सदा काबू में रखना तथा शुभ कर्मों का प्रचार करना- यह सब श्रेष्ठ पुरुषों का बर्ताव कहलाता है। इनके अनुष्ठान से धर्म होता है, जो सदा प्रजावर्ग की रक्षा करता है।

~उत्तर गीता (अध्याय ३, श्लोक १५, १६, १७, १८)

~ माता-पिता की सेवा कैसे करें?
~ सच को जितना मुश्किल क्यों है?
~ माता-पिता को मुक्ति मार्ग पर कैसे ले जाएँ?
~ सच को कैसे जिताऐं?
~ साधक के क्या गुण होते हैं?

संगीत: मिलिंद दाते
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