3 तरह के लोग जो कभी जीवन में आगे नहीं बढ़ सकते ! Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj

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3 तरह के लोग जो कभी जीवन में आगे नहीं बढ़ सकते ! Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj
Transcript
00:00These three become natural.
00:06Vidyamadho, who is proud of his knowledge, becomes natural.
00:12Devotion cannot be awakened in the heart.
00:17Vidya, Roop, Mahat, Kul, Dhan, Jauvan, Abhiman, Bhagwat Rishi ji.
00:23Shat, Kantak, Dekhe, Jahan, Rahayana, Bhakti, Nidan.
00:27Rahayana, Bhakti, Nidan, Swam, Sam, Nagar, Narike,
00:31Vishayana, Hath, Bikaya, Nahiri, Jauvan, Bhatarike.
00:35If this is the pride of Vidya, Roop, Kul, Dhan, Jauvan,
00:40then devotion cannot be awakened in the heart.
00:46Devotion will be awakened to be sold to the materialistic men,
00:51and not to be sold to Hari.
00:54This is the experience of great men.
00:57Vidya, Roop, Mahat, Kul, Dhan, Jauvan, Abhiman.
01:01These are the six big thorns of Shat, Kantak.
01:05Devotion is very soft.
01:07It does not even take a step in the heart where this pride resides.
01:11Rahayana, Bhakti, Nidan, Swam, Sam, Nagar, Narike.
01:15Nagar, Narike is called Vaishya.
01:17Just as Vaishya does her disguise to be sold to the materialistic men,
01:22similarly, the one who has Vidya, Roop, Mahat, Kul, Dhan, Jauvan, Abhiman,
01:27can do the drama of devotion to be sold to the materialistic men.
01:33Vastu, Vidya, Roop, Mahat, Kul, Dhan,
01:36all these can become the reason for the happiness of the society,
01:42if one does not be proud of it.
01:45But Vidurji is saying,
01:47विद्यामदो धनमदस्तृतियो भिजनो मदः
01:51The one who has the pride of knowledge,
01:54the pride of wealth,
01:57और उंचे कुल में जर्मा हो बहुत से लोग हमारे शायोगी हैं
02:03ऐसे घमंडी पुरुषों का घमंड नष्टो कर देता है
02:08अगर यही विद्या, धन, और कुलिंता,
02:11शंत शमागम के द्वाला अहंकार का दमन कर दिया जाये,
02:15तो जगत मंगल का हेत हो जाये.
02:18आपके पास विद्धता है, दुष्णों को शत मारग का उपदेश करके,
02:23उनको उत्साह, उनको भगवत मारग की पिरणा के बल से,
02:28असत मारगों से बचा लिया, पाप कर्म से बचा लिया,
02:31धन है, उसका शत प्रियोग करते हुए,
02:34दुष्रों की शेवा में, भगवत सेवा में अरपीत कर दिया,
02:37आपके पास सरीर बल है, जन बल है, समाज सेवा में उतार दिया,
02:43पशु, पक्षी, जन शमुदाय, शब भगवत स्वरूप मान कर,
02:47तो यही तुमारे परम कल्यान का हो गया,
02:50औगर यही अभिमान हो गया, तो तुमारा ही नाश हो जाएगा,
02:53तुमारा पतन हो जाएगा,
02:55अन्याय में इस्थित हुआ बल्वान राजा भी,
02:58अपने पुरुखों के राज संपत्य का सर्व नाश कर देता है,
03:03महराज, इसलिए अपने को भरष्ट होने से,
03:07बचा लिजिए,
03:13इसलिए आप अपनी बुद्धी को शंतों के चर्णों में समर्पित किजिए,
03:17तुमारी बुद्धी बिगढ गई है,
03:19विदुर जी महराज कहते है,
03:21जो शंतों का सहारा ले लेता है,
03:29वो उसे संत ही बना देते है,
03:31अथात उसकी बुद्धी भागवतिक हो जाती है,
03:34तुम महापुर्शों का, शंतों का आश्टरे लो,
03:37क्योंकि जितने भी शंत हुए हैं,
03:39वो संत संग से ही शंत हुए हैं,
03:43संत जो हुए हैं,
03:45उनको शाधुता प्रदान करने वाले संत ही हुए है,
03:48अशताम्च गति शंतो नत शंता अशताम्गति ही,
03:53दुष्टों को भी अधि शंतो का संग मिल जाए,
03:56तो शंत बन जाएंगे,
03:58देखो, कुछ लोग कहते हैं,
04:00अरे यह यहां क्यों आ गया,
04:02नहीं हमें तो लगता उसको जरूर आना चाहिए था,
04:06जब नित्यानन्द महाप्रिभू और ठाकु हरदास जी,
04:11नाम किर्तन घर घर ऐसे,
04:15नाम सुनाना, नाम उच्छा,
04:17जिससे घर में जाते हैं,
04:19तो कोई संस्ता भिक्षा लेने आये हैं,
04:21क्या देते हैं, बोले बस आप,
04:23दो च्छण हमारे साथ नाम बोले,
04:26हम नाम किर्तन करते हैं, आप नाम बोले,
04:29बस हमें भिक्षा मिल गई,
04:31आप इसको जब समय मिले तो जपिये, ऐसे,
04:34ओ जगाई मधाई,
04:36मदिराप पिये हुए,
04:38देखा ऐसे गंदे शब्द बोलने लगे, गाली गलू,
04:44ठाकु हरदास जी का प्रभू,
04:47अरे बोले, यही अधिकारी है,
04:49ऐशे लोग ही महाप्रभू की कृपा के अधिकारी हैं,
04:53जो नाम जप कर रहे हैं, उनकी उपर तो कृपा,
04:55इन बेचारों को देखो ना,
04:57किस दुरदशा में जी रहे हैं,
04:59चलो, मारा उन्होंने वो पात्रशे,
05:04नित्यानन्द महाप्रभू के रक्तव,
05:06कितने करुणा में हैं,
05:08आखिरकार महाप्रभू से कृपा करा के,
05:12उन्हें जगाई मधाई की जगए,
05:14कितने वड़े महाप्रश मना दे,
05:16गंगा में खड़े होके महाप्रभू ने सारे पाप ले ले है,
05:20विदुर जी कह रहे है,
05:22असताम्च गतिः शंतो,
05:24इन असत पुर्शु की गतिः ही संत जन है,
05:27कह ये अरे कैसे आया,
05:29ये तो ये पीता है, ये खाता है,
05:31नहीं, वो आयेगा, बार-बार बात करेगा,
05:34तो रंग चड़ेगा, वो सब छोड़ देगा,
05:38भगवत, प्रीमि शंतु का भगवन नाम जापक,
05:42शंतु का शंग,
05:44सब को पावन कर देता है,
05:46जब एक पारश मनी अपना प्रभाव दिखा देती है,
05:49तो भरान, नील मनी,
05:51और श्रिप्रियाजु के आश्रित जनों का संग करने से,
05:54परिवर्तन क्यों नहीं होगा,
05:56यदि आप करना चाहें तो अवश्य हो जाएगा,
05:58तो अस्ताम्च गति शंतों,
06:01महराज, असत् पुरुषों की गति शंत जने हैं,
06:05जिनका बहुत तर्क भाधी भी लोग होते हैं,
06:10पहार के पहार रुई को जलाने के लिए,
06:12जलाने के लिए एक दिया सलाई काफी होती है,
06:16भगवान का एक नाम त्रेलो कहिता रहे,
06:20जो न लेही सो, जन में ही आ रहे हैं,
06:23अभी तुम समझते क्या?
06:26अरे जब जग जाये तभी भाध,
06:28पूरा जीवन सोते रहे, मो अंधकार में पाप करते रहे,
06:32आखरी शमय तुमें बात आ गई,
06:34हे प्रभु आपके शिवा,
06:36कोई भगवान उद्धार कर देंगे,
06:39जीवन का भरूषा नहीं कि अगले सेकेण,
06:41तो अभी ये जो सेकेण है,
06:43इसमें रादः बोलो और प्रभु से प्रार्थन करो,
06:46आगे हमारा मंगल में,
06:48आपके चर्णों में शमय बिदीत हो।
06:56कह रहे हैं,
06:58कि अगर शंत जन दुष्टों को शाहरा ना दे,
07:01तो दुष्टता का नासी ही नहीं होगा,
07:04इसलिए प्राया बड़े-बड़े महापुरुषों को देखा गया,
07:07औरों को आदर करें नहीं करें,
07:09पर देहा भी मानी, पदा भी मानी,
07:12नाना प्रकार के कुमार के प्रवतियों,
07:14उनको बेटे जैसा दुलार करते हैं,
07:16क्यों?
07:17कि यही दुलार उनके हरदय का अपरेशन करेगा,
07:21जिसे आप भगवत मार्ग में चल रहे हैं,
07:24द्रश्टी से देख ले आँटी, लाधा लाधा चल.
07:27पता है कि तुम्हारे अंदर विचार बिवेक है,
07:31तुम अशत से लड़ सकते हो,
07:33तुमें ज्यादा सपोर्ट की आपशक्ता,
07:35ज्यादा सपोर्ट की आपशक्ता उसको है,
07:37ना विचार है, ना बिवेक है,
07:39केवल ब्रश्टाचार है,
07:41आप उसके आगे हमें जुकने की जरूरत हैं,
07:43हमें जुकने की,
07:45रख मेरे उपर पेर और चड़ जा उपर,
07:47फिशलने नहीं देंगे तुझे,
07:49जब आप चड़ रहे हो तो द्रश्टी है,
07:51नहीं फिशलोगे,
07:53तुम्हारे इंदर बिवेक द्रश्टी देंगे,
07:55लेकिन जो फिशल गया है,
07:57वो चड़ना ही नहीं चाहिता है,
07:59उसे उठाहित करके,
08:01जुकके, अपने ऊपर
08:03पेर रखे चड़ भगवत मार्ग में,
08:05यह सब को शिद्दांत समझ में नहीं आएगा,
08:08अगर समझ में आ जाये तो,
08:10समभात्मा ही नहीं हो जाये,
08:16जो निन्दा करते हैं, अपमान करते हैं,
08:18जो संतों को पीड़ा पहुँचाते हैं,
08:20उनका परम मंगल करते हैं,
08:22उन्हीं को संत कहते हैं,
08:24उनके परति भगवत प्रार्थना करते हैं,
08:26जो कभी किसी के परति भगवत प्रार्थना नहीं करते हैं,
08:28वो ऐसे जनों के लिए
08:30अपने इश्च से प्रार्थना करते हैं,
08:32प्रभु, अगर इसका मंगल नहीं हुआ,
08:34तो फिर आपके सर्णागति का प्रभाव क्या?
08:36यह तो सब भजन करी रहे हैं,
08:39इनका तो अमंगल होही नहीं सकता,
08:41लेकिन यह भजन नहीं कर रहा है,
08:43इसका मंगल होना चाहिए,
08:45अगर द्रश्टी पड़ गई,
08:47तो तुम निन्दा करो, अपमान करो,
08:49वो इस बात के प्रभाव नहीं करते हैं,
08:51तुम्हारा मंगल करकी ही छोड़ेंगे,
08:54तो कह रहे है,
09:07सही बात,
09:08बिगडेल बच्चे को माँ ज़्यादा प्यार करती है,
09:11यह सुधर जाये, भगवान यह सुधर जाये,
09:14यह सुधरे हैं तो है यह ना,
09:16पर यह सुधर जाये,
09:17ऐसा ही शंतों का वात्सल्य में हरदे होता है,
09:21इसलिए महराज आपकी मती बिगड़ गई,
09:24आप शंतों का आश्रे लिजिए,
09:37जो अपनी पाँच घ्यानेंद्रियों को अपने वस्मे कर लेता है,
09:43उसके आनन्द समपत्ती ऐसे बढ़ती,
09:46जैसे सुखल पक्ष में चंद्रमा मढ़ता है,
09:49और जो अपनी इंद्रियों को नहीं जीत लिया,
09:52तो उसकी बिपत्ती भी ऐसे बढ़ती,
09:54जैसे सुखल पक्ष का चंद्रमा बढ़ता है,
09:58बढ़ता है, बिपत्तिया बढ़ती ही चली जाती है,
10:03इंद्रियों को अशुभ, अधर्म में भोगों से हटा लेना चाहिए।
10:10महराज, ये मनुष्य का सरीर एक रथ है,
10:15और इस रथ का सार्थी बुद्धी है,
10:18और इसके घोड़े इंद्रिया है,
10:20और मन इसकी लगाम है,
10:22इसलिए अपनी बुद्धी रूपी सार्थी से,
10:26मन रूपी लगाम को खिचिए,
10:29और अधर्म में चलने वाली इन इंद्रियों को सत मार्ग में लगाईए,
10:34नहीं तो महराज, इस संसार पथ में आप बहुत बुदी तरे नश्ठ हो जाएंगे।
10:41अगर सिख्षा ना पाये हुए गोड़े पर सवार हुआ जाये, तो गोड़ा ही उसे मार देता है।
10:49ऐसे यदि सास्त्र सम्मत मन और इंद्रियों को ना चलाया जाये,
10:54तो ये मन ही इंद्रियां दुस्मन की तरे उसका नास कर देती, फशा देती है।
10:59जो अधिक धन का श्वामी होता है और आहंकार करता है मैं धनी हूँ, तो उसमें दोश आने लगते हैं।
11:08वो मदिरा पीने लगता है, वो बेविचार करने लगता है, वो मन मानी आचरण करने लगता है,
11:15इसलिए वो पुर्ण नश्ट होने के कारण आगे चलकर एश्वर भ्रष्ट हो जाता है।
11:21महराज आपको ऐसा नहीं करना चाहिए, अर्थात आपके पुत्र ऐसे ही आचरणों से युगत हो रहे हैं, आपको शावधान होना चाहिए।
11:30जो पापाचारी का संग नहीं त्यागता, उसकी वही गति होती है, जो पापाचारी की होती है।
11:37भले आप पापाचरण नहीं कर रहे हैं, लेकिन आप अपने पुत्र पापाचारी हों का साथ दे रहे हैं, तो आपकी भी वही दुरगती होगी।
11:46मूर्ख मनुश्य यदि विद्वान को गाली दे और वो उस कष्ट को शह जाए, तो उसके सारे पाप नश्ठ हो जाते हैं।
11:56जो विद्वान को, शंतों को, भक्तों को, धर्मात्माओं को गाली देते हैं, निन्दा करते हैं, अगर वो शह जाए, जिसको निन्दा करते हैं, तो उसके सारे पाप नश्ठ हो जाएंगे और वो उसका दंड भोगेगा।
12:10जवाब भर न दें, मौन रहे, तो वो जो अंदर जलन होती होती, उत्में निश्पाप कर देगी, साक्षा धर्मराज बूल लें।
12:19बाणी का सयम करना बहुत कठिन है महराज।
12:23बहुत सुन्दर।
12:25वाकिष्ययमो ही निर्पते सुदुस कर तमो मतः।
12:31एक भी शब्द प्रमाद में नहीं निकलना चाहिए सादक का।
12:35शावधान होकर बोलो बहुत, देखो भगवत रशिक जी ने कहा है, प्राया बोले नहीं, और जब बोले तो हरदय की ग्रंथ ही खोले, ऐसा बोलना होना चाहिए।
12:46ब्यर्थ में बक्वास नहीं, बानी को शैयम में रखो।
12:49वाकि शैयमो ही निर्पते सुदुस कर तमो मतः।
12:53यह बहुत मत की बात है कि बानी को शैयम में नहीं किया जा सकता, बड़ा दुस्कर है।
13:02अगर कोई वानी को शैयम में कर ले, तो सपसे ज़यदा भजन उसका बचे और बने, यह बहुत अपराद बानी से हुता है।
13:16तो इसलिए मौन का अस्तरे ले, पर बड़ा कठिन है मौन रहना।
13:22मौन रहने का मतलब उँसे नहीं, लिखना पढ़ने से नहीं, शांत ब्रत्ति, बानी से किसी से कोई सम्मन नहीं, कुछ नहीं बोलना।
13:30कुछ नहीं बोलना, तो बड़ा कठिन है, जिसे राधा बाबा ने निर्वाख किया।
13:35पुझ राधा बाबा काश्ठ मौन। इसारा नलिखना बिल्कुल सुनने। ना अंदर कोई चिंतन और ना बाहर कोई चेष्टा।
13:45मौन का मतलब है, आगे फिर बोल रहे हैं। पहली बात मौन तो राधा बाबा जैसे पुझ राधा बाबा काश्ठ मौन।
13:53कोई चेष्टा नहीं, कोई लिखना पहूँ। इसे मौन। इसलिए कहें वाक सयमो ही निरपते सुदुषकर तमोण। मताः। धर्म के मत के अनुशार वानी को पुर्ण सयम में कर लेना बड़ा कठीन है। ना अंदर इश्पुरन ना बाहर इश्पुरन। किसी से कोई �
14:24उस मौन से भी उत्तम बात यह है कि मधुर शब्दों में बात कही जाए, जो सामने वाले का परममंगल, परमकल्यान करने वाली है।
14:35मौन से भी यह उच्छकोटी की है। क्या? म्रदु शब्दों में और हिद कर उसका कल्यान करने वाली बात कही जाए।
14:47अगर वही कल्यान करने वाली बात ऐसे कट शब्दों में कही जाए, जो अनर्थ का कारण बन जाए, तो उशे फिर नहीं। कठोर शब्दों में धिकार पर ऐसे नहीं।
15:00म्रदु शब्दों में और हिद कर कल्यान कारी बात मौन से भी स्थरिष्ट है।
15:06इसलिए गुरुजणों ने यही कहा था कि मौन का मतलब है विचार मौन।
15:13शांत हैं आप, भजन कर रहे हैं, आपसे किसी ने पूछा, आप पहले विचार करो, उत्तर देना आवश्यक है कि नहीं।
15:19नहीं आवश्यक है, बिल्कुल पगले जैसे वासे नहीं।
15:23मतलब ऐसी हरकत ही नहीं करनी कि हमें सुनाई दिया है।
15:26वो अबनिया हो सकता है, बेहरा हो सकता है।
15:29क्या है, वो क्या अपनी गड़ित लगा है, हमें लगा कि उत्तर देना चाहें राधा।
15:34फिर म्रदु शब्दू में ऐसा हाँ, ऐसा हाँ।
15:38फिर इशके बाद उत्तर करता है, मौन होके चल लिया है।
15:40शादु गंबीर होता है, बहुत सोच समझ।
15:43शादु का तथपर है भगवत मार्ग का पथी.
15:57विदुर जी महाराज कहते है,
16:00जो भगवत मार्ग में चलने की चेस्टा तो करते हैं,
16:04अगर ऐसे नुकीली बातें कहते हैं,
16:07ऐसे कठोर बातें कहते हैं,
16:09जो हरदय में बिंद जाती हैं,
16:11तो बार से जो परशना हतम,
16:14जो घाव करने वाले अस्तर हैं,
16:16उनसे उतनी पीड़ा नहीं होती,
16:18जितनी बात जो धस जाए हरदय में,
16:20वो बार बार बहुत समय तक पीड़ा देती रहती है,
16:24इसलिए कट वचन रूपी बान किसी भी परमार्थ पथिक के मुख से नहीं निकलने चाहिए,
16:33ये न्यायधिस त्रिभुवन के बोलने धर्म जी,
16:36पहली बात तो मौन,
16:38पर वो मौन रहना उस तरह का दुशकर है,
16:41उस से स्रेष्ट बात है विचार मौन,
16:43जब तक आपको लगे ना कि नहीं बोलना ही चाहिए,
16:47तो म्रद बोलिये, कल्याण कारी बात बोलिये,
16:50अन्धिफा मौन रहिए.
16:52अगर तुम कट वचन ऐसे बोलते हो,
16:54तो हरदय देश में ही भगवान बैठे हुए,
16:57तुम्हारे हरदय में कैसे प्रकासित होंगे,
16:59तुम्हारा भजन कैसे आनंद प्रदान करेगा?
17:07किशी को देवता लोग डंडा ले के नहीं मारते,
17:09बिदुर जी कह रहे है,
17:11बुद्धो कलुष भूतायां बिनासे प्रत्युपस्थिते,
17:16जब किशी का नाश और पतन और दंड होगना होता है,
17:19तो पहले उसकी बुद्धी बिगाड़ जीयाती, कर्म के अनुशाद,
17:24बुरी दशा आने के पहले बुद्धी बदली जाती है,
17:28आपने आवे ताही पर ताही तहां ले जाए,
17:31ओ बुद्धी वेशा बुलवा देगी,
17:33वेशी चेष्टा करवा देगी,
17:35कब, जब नाम नहीं चल रहा होगा तब,
17:38अगर नाम चल रहा है,
17:40तो किशी भी कर्म की ताकत नहीं कि,
17:42हमारी ऐसी बुद्धी बिगार दें,
17:44नहीं, अगर ऐसी इतनी शामर्थ तो भी,
17:46भगवत प्राप्ती ही नहीं होती,
17:48फिर यह उपदेश कहां लाइबू होती,
17:49क्योंकि भाईया, जैसा होगा कर्म के अनुशाद,
17:51वैसा हो जाएगा, उससे तो हम रोक नहीं सकते,
17:53नहीं, क्यों नहीं रोक सकते,
17:55अभी तक कर्म प्रभाव चला है,
17:57नाम प्रभाव नहीं चला,
17:59गुरु क्रपा प्रशाद नहीं चला,
18:01अब भगवत आश्रित है,
18:02सब प्रभाव को रोक करके,
18:05प्रभाव तो है,
18:06कर्मों का प्रभाव अपना भी दिखाएगा,
18:08लेकिन भजन का प्रभाव भी तो है,
18:10वो कर्म असत इतना बल रखता है,
18:13कि हमारी दुरगती कर देता है,
18:15तो सत कर्म क्या इतना बल,
18:17कि उस असत कर्म को नश्ट कर दे,
18:19उत्साः,
18:21वानी को शयम में रखते हुए,
18:23कह रहे हैं कभी देवतालोग
18:25किसी को डंडा ले के नहीं मानते,
18:27उसकी बुद्धी बरष्ट कर देते हैं,
18:28बुद्धी बदल देते हैं,
18:30फिर वो अन्याय करता है,
18:33और भारी डंड का पात्र बन जाता है,
18:36इसलिए महराज,
18:37आपकी बुद्धी गिर गई है,
18:39आप अपनी बाणी को समहलिये,
18:41आप संतों का अश्रे लिजिये,
18:43और अपने पुत्रों को,
18:45अपने परिवार को बचा लिजिये,
18:47जो अधर्माच्रण में है,
18:49सेश चर्चा के,
18:50स्याधाविल्लालिकि

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