अहमदाबाद. झुलसी अवस्था में लावारिश मिली चार वर्षीय एक बालिका का न सिर्फ अस्पताल में अच्छा उपचार किया गया बल्कि चिकित्सक व अन्य कर्मियों ने उसके माता-पिता की कमी भी महसूस नहीं होने दी। बालिका फिलहाल महानगरपालिका संचालित एल.जी. अस्पताल में उपचाराधीन है।
बताया गया है कि पिछले दिनों इस बालिका को एक महिला अहमदाबाद शहर के भद्रकाली मंदिर के निकट बगीचे में छोडकऱ चली गई थी। इसके बाद यह बालिका उसी क्षेत्र में बच्चों के साथ खेल रही थी कि चूल्हे पर रखे गर्म पानी से टकरा कर गिर गई। चावल पकाने के लिए पानी गर्म किया जा रहा था। इसके चलते वह गंभीर रूप से झुलस गई। दर्द से कराहती और रोती बालिका पर अज्ञात लोगों ने दया की और उसे उपचार के लिए एल.जी. अस्पताल में भर्ती कराया।
बालिका इतनी छोटी है कि वह अपने माता-पिता के बारे में भी कुछ नहीं जानती है। हालांकि अस्पताल में न सिर्फ उसका उपचार किया गया बल्कि स्टाफ के अनेक कर्मचारियों ने उसे माता-पिता जैसा ही लाड-दुलार दिया। साथ ही कारंज पुलिस का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा।
बताया गया है कि फिलहाल यह बालिका पूरी तरह से ठीक हो गई। उसे नारी गृह केंद्र में भेजने के प्रयास किए जा रहे हैं। यह बालिका अस्पताल के स्टाफ से इस तरह से घुल गई है कि वे सभी उसके परिवार के सदस्य हों।
अस्पताल के वार्ड में उसे लोगों ने खिलौने और पुस्तक जैसी वस्तुएं भी उपलब्ध करवाई हैं। जिससे वह सभी के साथ मिलजुल कर रहने लगी।
बताया गया है कि पिछले दिनों इस बालिका को एक महिला अहमदाबाद शहर के भद्रकाली मंदिर के निकट बगीचे में छोडकऱ चली गई थी। इसके बाद यह बालिका उसी क्षेत्र में बच्चों के साथ खेल रही थी कि चूल्हे पर रखे गर्म पानी से टकरा कर गिर गई। चावल पकाने के लिए पानी गर्म किया जा रहा था। इसके चलते वह गंभीर रूप से झुलस गई। दर्द से कराहती और रोती बालिका पर अज्ञात लोगों ने दया की और उसे उपचार के लिए एल.जी. अस्पताल में भर्ती कराया।
बालिका इतनी छोटी है कि वह अपने माता-पिता के बारे में भी कुछ नहीं जानती है। हालांकि अस्पताल में न सिर्फ उसका उपचार किया गया बल्कि स्टाफ के अनेक कर्मचारियों ने उसे माता-पिता जैसा ही लाड-दुलार दिया। साथ ही कारंज पुलिस का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा।
बताया गया है कि फिलहाल यह बालिका पूरी तरह से ठीक हो गई। उसे नारी गृह केंद्र में भेजने के प्रयास किए जा रहे हैं। यह बालिका अस्पताल के स्टाफ से इस तरह से घुल गई है कि वे सभी उसके परिवार के सदस्य हों।
अस्पताल के वार्ड में उसे लोगों ने खिलौने और पुस्तक जैसी वस्तुएं भी उपलब्ध करवाई हैं। जिससे वह सभी के साथ मिलजुल कर रहने लगी।
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00:00Ashiya na tera, saath mere hain na, dhoondte teri gali, mujhko ghar mila
00:15Ek na na vadke, jaa chali jaa udhke, jaa tujhe bhoolisi bhi na lage nazar