Digvijay Singh and Scindia stayed away even after being close. When the Congress returned to power after 15 years in 2018, Digvijay Singh supported Kamal Nath. And since then there was a political tussle between Digvijay Singh and Jyotiraditya Scindia. As time went on, the tussle kept growing and when Scindia finally felt completely isolated in the Congress, she announced to go Tata-bye by the party. But, if we reverse the history, the battle between Digvijay Singh's Raghogarh and Scindia's Gwalior royal family is not new. The story of the battle of Scindia and Raghogarh gharana is almost 200 years old.
दिग्विजय सिंह और सिंधिया पास रहकर भी दूर ही रहे.2018 में जब कांग्रेस ने 15 साल बाद सत्ता में वापसी की तो दिग्विजय सिंह ने कमलनाथ का साथ दिया.और तभी से दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया में सियासी खींचतान चल रही थी। जैसे-जैसे समय निकला ये खींचतान बढ़ती चली गई और आखिरकार जब सिंधिया कांग्रेस में खुद को पूरी तरह से अलग-थलग महसूस करने लगे तो उन्होंने पार्टी को टाटा-बाय बाय करने का ऐलान कर दिया। लेकिन, अगर हम इतिहास को पलटकर देखें तो दिग्विजय सिंह के राघोगढ़ और सिंधिया के ग्वालियर राज घराने के बीच की लड़ाई कोई नई नहीं है।सिंधिया और राघोगढ़ घराने की लड़ाई की कहानी करीब 200 वर्ष पुरानी है
#Scindiajoinbjp #ScindiaDumpsCongress #MadhyaPradeshCrisis
दिग्विजय सिंह और सिंधिया पास रहकर भी दूर ही रहे.2018 में जब कांग्रेस ने 15 साल बाद सत्ता में वापसी की तो दिग्विजय सिंह ने कमलनाथ का साथ दिया.और तभी से दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया में सियासी खींचतान चल रही थी। जैसे-जैसे समय निकला ये खींचतान बढ़ती चली गई और आखिरकार जब सिंधिया कांग्रेस में खुद को पूरी तरह से अलग-थलग महसूस करने लगे तो उन्होंने पार्टी को टाटा-बाय बाय करने का ऐलान कर दिया। लेकिन, अगर हम इतिहास को पलटकर देखें तो दिग्विजय सिंह के राघोगढ़ और सिंधिया के ग्वालियर राज घराने के बीच की लड़ाई कोई नई नहीं है।सिंधिया और राघोगढ़ घराने की लड़ाई की कहानी करीब 200 वर्ष पुरानी है
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