दुर्गा का सातवां रूप माँ कालरात्रि NAVRATRI DAY 7 MAA KALRATRI
दुर्गा का सातवां स्वरूप मां कालरात्रि है Navratri Day 7 Maa Kalratri । इनका रंग काला होने के कारण ही इन्हें कालरात्रि कहा गया हैं। असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए देवी दुर्गा ने अपने तेज से इन्हें उत्पन्न किया था। इनकी पूजा शुभ फलदायी होने के कारण इन्हें शुभंकारी भी कहते हैं।
पंडित एन एम श्रीमाली के अनुसार नवरात्र के सातवें दिन माँ दुर्गा के कालरात्रि Navratri Day 7 Maa Kalratri रूप की पूजा की जाती है। माता कालरात्रि की पूजा करने से मनुष्य समस्त सिद्धियों को प्राप्त कर लेता है। माँ कालरात्रि पराशक्तियों (काला जादू) की साधना करने वाले जातकों के बीच बेहद प्रसिद्ध हैं। माँ की भक्ति से दुष्टों का नाश होता है। इससे ग्रह बाधाएं भी दूर हो जाती हैं।
पंडित निधि श्रीमाली के अनुसार दुर्गा पूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि Navratri Day 7 Maa Kalratri की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन सहस्त्रारचक्र में अवस्थित होता है। साधक के लिए सभी सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णतरू माँ कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है। उनके साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य का वह अधिकारी होता है। उसकी समस्त विघ्न बाधाओं और पापों का नाश हो जाता है। उसे अक्षय पुण्य लोक की प्राप्ति होती है। भगवती कालरात्रि का ध्यान, कवच, स्तोत्र का जाप करने से भानुचक्र जागृत होता है। इनकी कृपा से अग्नि भय, आकाश भय, भूत पिशाच स्मरण मात्र से ही भाग जाते हैं। कालरात्रि माता भक्तों को अभय प्रदान करती है।
माँ कालरात्रि का पूजन मात्र करने से समस्त दुखों एवं पापों का नाश हो जाता है। माँ कालरात्रि के ध्यान मात्र से ही मनुष्य को उत्तम पद की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही भक्त सांसारिक मोह माया से मुक्त हो जाते हैं। माँ कालरात्रि के भक्तों को किसी भी प्रकार का भय नहीं सताता है। भूत, प्रेत, पिशाच और राक्षस इनके नाम का स्मरण करने से ही भाग जाते है।
माँ कालरात्रि की उत्पत्ति की कथा
कथा के अनुसार दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था।. इससे चिंतित होकर सभी देवतागण शिव जी के पास गए। शिव जी ने देवी पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा, शिव जी की बात मानकर पार्वती जी ने दुर्गा का रूप धारण किया। शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया। परंतु जैसे ही दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए।. इसे देख दुर्गा जी ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके बाद जब दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को कालरात्रि ने अपने मुख में भर लिया। सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया।
गुड़ का भोग प्रिय है माँ कालरात्रि को
सप्तमी तिथि के दिन भगवती की पूजा में गुड़ का नैवेद्य अर्पित करके ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से पुरुष शोकमुक्त हो सकता है।
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दुर्गा का सातवां स्वरूप मां कालरात्रि है Navratri Day 7 Maa Kalratri । इनका रंग काला होने के कारण ही इन्हें कालरात्रि कहा गया हैं। असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए देवी दुर्गा ने अपने तेज से इन्हें उत्पन्न किया था। इनकी पूजा शुभ फलदायी होने के कारण इन्हें शुभंकारी भी कहते हैं।
पंडित एन एम श्रीमाली के अनुसार नवरात्र के सातवें दिन माँ दुर्गा के कालरात्रि Navratri Day 7 Maa Kalratri रूप की पूजा की जाती है। माता कालरात्रि की पूजा करने से मनुष्य समस्त सिद्धियों को प्राप्त कर लेता है। माँ कालरात्रि पराशक्तियों (काला जादू) की साधना करने वाले जातकों के बीच बेहद प्रसिद्ध हैं। माँ की भक्ति से दुष्टों का नाश होता है। इससे ग्रह बाधाएं भी दूर हो जाती हैं।
पंडित निधि श्रीमाली के अनुसार दुर्गा पूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि Navratri Day 7 Maa Kalratri की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन सहस्त्रारचक्र में अवस्थित होता है। साधक के लिए सभी सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णतरू माँ कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है। उनके साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य का वह अधिकारी होता है। उसकी समस्त विघ्न बाधाओं और पापों का नाश हो जाता है। उसे अक्षय पुण्य लोक की प्राप्ति होती है। भगवती कालरात्रि का ध्यान, कवच, स्तोत्र का जाप करने से भानुचक्र जागृत होता है। इनकी कृपा से अग्नि भय, आकाश भय, भूत पिशाच स्मरण मात्र से ही भाग जाते हैं। कालरात्रि माता भक्तों को अभय प्रदान करती है।
माँ कालरात्रि का पूजन मात्र करने से समस्त दुखों एवं पापों का नाश हो जाता है। माँ कालरात्रि के ध्यान मात्र से ही मनुष्य को उत्तम पद की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही भक्त सांसारिक मोह माया से मुक्त हो जाते हैं। माँ कालरात्रि के भक्तों को किसी भी प्रकार का भय नहीं सताता है। भूत, प्रेत, पिशाच और राक्षस इनके नाम का स्मरण करने से ही भाग जाते है।
माँ कालरात्रि की उत्पत्ति की कथा
कथा के अनुसार दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था।. इससे चिंतित होकर सभी देवतागण शिव जी के पास गए। शिव जी ने देवी पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा, शिव जी की बात मानकर पार्वती जी ने दुर्गा का रूप धारण किया। शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया। परंतु जैसे ही दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए।. इसे देख दुर्गा जी ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके बाद जब दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को कालरात्रि ने अपने मुख में भर लिया। सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया।
गुड़ का भोग प्रिय है माँ कालरात्रि को
सप्तमी तिथि के दिन भगवती की पूजा में गुड़ का नैवेद्य अर्पित करके ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से पुरुष शोकमुक्त हो सकता है।
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