| Garhkundar fort | रहस्यमयी गढ़कुंडार किला: जो दूर से आता है नजर, पास जाते ही हो जाता है गायब(Ep-1)
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गढ़कुंडार किले का इतिहास:--
यह किला चंदेल काल में चंदेलों का सूबाई मुख्यालय व सैनिक अड्डा था. यशोवर्मा चंदेल (925-40 ई.) ने दक्षिणी-पश्चिमी बुंदेलखंड को अपने अधिकार में कर लिया था. इसकी सुरक्षा के लिए गढ़कुंडार किले में कुछ निर्माण कराया गया था. इसमें किलेदार भी रखा गया.1182 में चंदेलों-चौहानों का युद्ध हुआ, जिसमें चंदेल हार गए. इसमें गढ़कुंडार के किलेदार शियाजू पवार की जान चली गई. इसके बाद ही यहां नायब किलेदार खेत सिंह खंगार ने खंगार राज्य स्थापित कर दिया. 1182 से 1257 तक यहां खंगार राज रहा. इसके बाद बुंदेला राजा सोहन पाल ने यहाँ खुद को स्थापित कर लिया. 1257 से 1539 ई. तक यानी 283 साल तक इस पर बुंदेलों का शासन रहा. इसके बाद यह किला वीरान होता चला गया.1605 के बाद ओरछा के राजा वीर सिंह देव ने गढ़कुंडार की सुध ली. और जीर्णोधार कराया. 13वीं से 16 वीं शताब्दी तक यह बुंदेला शासकों की राजधानी रही. 1531 में राजा रूद्र प्रताप देव ने गढ़ कुंडार से अपनी राजधानी ओरछा बना ली.
खंगारों को जाता है नई पहचान देने का श्रेय
गढ़कुंडार किले के पुनर्निर्माण और इसे नई पहचान देने का श्रेय खंगारों को है. खेत सिंह गुजरात राज्य के राजा रूढ़देव का पुत्र था. रूढ़देव और पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर सिंह अभिन्न मित्र हुआ करते थे. इसके चलते पृथ्वीराज चौहान और खेत सिंह बचपन से ही मित्र हो गए. राजा खेत सिंह की गिनती पृथ्वीराज के महान सेनापतियों में की जाती थी. इस बात का उल्लेख चंदबरदाई के रासो में भी है. गढ़कुंडार में खेत सिंह ने खंगार राज्य की नींव डाली थी!
जिनागढ़ के महल के नाम से था प्रचलित
खेत सिंह न केवल पृथ्वीराज चौहान के प्रमुख हैं बल्कि एक करीबी दोस्त भी हैं। वह मूल रूप से गुजरात से थे उन्होंने युद्ध में परमल शासक शिव को पराजित किया और किले पर कब्जा कर लिया और खंगर वंश की नींव रखी। उस समय तक, यह जिनागढ़ के महल के नाम से जाना जाता था। यह खेत सिंह खंजर था जिसने नींव रखी और जिजाक भुक्ति क्षेत्र में खंगर के शासन के शासन को मजबूत किया। वह वर्ष 1212 ई। में मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद, खांगर की पांच पीढ़ी ने यहां शासन किया। बाद में खेत सिंह के पोते महाराजा खुब सिंह खंगर ने जिनागढ़ पैलेस को दृढ़ कर दिया और इसे 'कुंडर किले' के नाम से रखा। कुंडर शासक, इस किले से लेकर 1347 ईस्वी तक शासन करते थे, जब मोहम्मद तुगलक ने इसे कब्जा कर लिया था जो बुंदेल शासकों के लिए प्रभारी सौंपे थे। नागदेव आखिरी खंगेर शासक थे, जिन्हें कई अन्य खांगर सेना के जनरल के साथ हत्या कर दी गई थी, जिसमें एक बुर्जे शासकों ने हिस्सा लिया था। उस समय में बुंदेल शासकों ने मुगलों की जिम्मेदारता की थी बुन्देला राजा बीर सिंह देव ने इसके लिए आवश्यक नवीकरण का काम किया और इसके वर्तमान स्वरूप को प्रदान किया!
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गढ़कुंडार किले का इतिहास:--
यह किला चंदेल काल में चंदेलों का सूबाई मुख्यालय व सैनिक अड्डा था. यशोवर्मा चंदेल (925-40 ई.) ने दक्षिणी-पश्चिमी बुंदेलखंड को अपने अधिकार में कर लिया था. इसकी सुरक्षा के लिए गढ़कुंडार किले में कुछ निर्माण कराया गया था. इसमें किलेदार भी रखा गया.1182 में चंदेलों-चौहानों का युद्ध हुआ, जिसमें चंदेल हार गए. इसमें गढ़कुंडार के किलेदार शियाजू पवार की जान चली गई. इसके बाद ही यहां नायब किलेदार खेत सिंह खंगार ने खंगार राज्य स्थापित कर दिया. 1182 से 1257 तक यहां खंगार राज रहा. इसके बाद बुंदेला राजा सोहन पाल ने यहाँ खुद को स्थापित कर लिया. 1257 से 1539 ई. तक यानी 283 साल तक इस पर बुंदेलों का शासन रहा. इसके बाद यह किला वीरान होता चला गया.1605 के बाद ओरछा के राजा वीर सिंह देव ने गढ़कुंडार की सुध ली. और जीर्णोधार कराया. 13वीं से 16 वीं शताब्दी तक यह बुंदेला शासकों की राजधानी रही. 1531 में राजा रूद्र प्रताप देव ने गढ़ कुंडार से अपनी राजधानी ओरछा बना ली.
खंगारों को जाता है नई पहचान देने का श्रेय
गढ़कुंडार किले के पुनर्निर्माण और इसे नई पहचान देने का श्रेय खंगारों को है. खेत सिंह गुजरात राज्य के राजा रूढ़देव का पुत्र था. रूढ़देव और पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर सिंह अभिन्न मित्र हुआ करते थे. इसके चलते पृथ्वीराज चौहान और खेत सिंह बचपन से ही मित्र हो गए. राजा खेत सिंह की गिनती पृथ्वीराज के महान सेनापतियों में की जाती थी. इस बात का उल्लेख चंदबरदाई के रासो में भी है. गढ़कुंडार में खेत सिंह ने खंगार राज्य की नींव डाली थी!
जिनागढ़ के महल के नाम से था प्रचलित
खेत सिंह न केवल पृथ्वीराज चौहान के प्रमुख हैं बल्कि एक करीबी दोस्त भी हैं। वह मूल रूप से गुजरात से थे उन्होंने युद्ध में परमल शासक शिव को पराजित किया और किले पर कब्जा कर लिया और खंगर वंश की नींव रखी। उस समय तक, यह जिनागढ़ के महल के नाम से जाना जाता था। यह खेत सिंह खंजर था जिसने नींव रखी और जिजाक भुक्ति क्षेत्र में खंगर के शासन के शासन को मजबूत किया। वह वर्ष 1212 ई। में मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद, खांगर की पांच पीढ़ी ने यहां शासन किया। बाद में खेत सिंह के पोते महाराजा खुब सिंह खंगर ने जिनागढ़ पैलेस को दृढ़ कर दिया और इसे 'कुंडर किले' के नाम से रखा। कुंडर शासक, इस किले से लेकर 1347 ईस्वी तक शासन करते थे, जब मोहम्मद तुगलक ने इसे कब्जा कर लिया था जो बुंदेल शासकों के लिए प्रभारी सौंपे थे। नागदेव आखिरी खंगेर शासक थे, जिन्हें कई अन्य खांगर सेना के जनरल के साथ हत्या कर दी गई थी, जिसमें एक बुर्जे शासकों ने हिस्सा लिया था। उस समय में बुंदेल शासकों ने मुगलों की जिम्मेदारता की थी बुन्देला राजा बीर सिंह देव ने इसके लिए आवश्यक नवीकरण का काम किया और इसके वर्तमान स्वरूप को प्रदान किया!
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