वीडियो जानकारी: 12.12.23, गीता समागम, ग्रेटर नॉएडा
प्रसंग:
आचार्य जी अध्याय 3 के अंतिम श्लोक, श्लोक क्रमांक 43, को समझा रहे है।
एवं बुद्धे: परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना।
जहि शत्रु महाबाहो कामरूपं दुरासदम्।।
इस प्रकार हे महाबाहो अर्जुन! अपने आप को भौतिक इन्द्रियों, मन तथा बुद्धि से परे जानकर और मन को निश्चयात्मिका बुद्धि की सहायता से स्थिर करके इस काम-रूपी दुर्जय शत्रु को जीतो।
~ श्रीमद्भगवद्गीता, श्लोक 3.43
आचार्य जी द्वारा दिया गया श्लोक का काव्यात्मक अर्थ:
बुद्धि तुम्हारी शुद्ध रहे
तो तुम ही अपने मीत हो
काम शत्रु भागे छुपे
खुद ही खुद को जीत लो
➖➖➖
संगीत: मिलिंद दाते
~~~~~
प्रसंग:
आचार्य जी अध्याय 3 के अंतिम श्लोक, श्लोक क्रमांक 43, को समझा रहे है।
एवं बुद्धे: परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना।
जहि शत्रु महाबाहो कामरूपं दुरासदम्।।
इस प्रकार हे महाबाहो अर्जुन! अपने आप को भौतिक इन्द्रियों, मन तथा बुद्धि से परे जानकर और मन को निश्चयात्मिका बुद्धि की सहायता से स्थिर करके इस काम-रूपी दुर्जय शत्रु को जीतो।
~ श्रीमद्भगवद्गीता, श्लोक 3.43
आचार्य जी द्वारा दिया गया श्लोक का काव्यात्मक अर्थ:
बुद्धि तुम्हारी शुद्ध रहे
तो तुम ही अपने मीत हो
काम शत्रु भागे छुपे
खुद ही खुद को जीत लो
➖➖➖
संगीत: मिलिंद दाते
~~~~~
Category
📚
Learning