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वीडियो जानकारी: 24.09.24, गीता समागम, ऋषिकेश

लिविंग इन द मोमेन्ट (Living in the moment) - एक खतरनाक झूठ || आचार्य प्रशांत (2024)

📋 Video Chapters:
0:00 - Intro
0:01 - अतीत और वर्तमान का भ्रम
0:45 - भविष्य के लिए कामना: एक भ्रम
4:52 - काल की धारा और वर्तमान का सत्य
6:26 - कोशिकाओं का परिवर्तन
8:17 - स्मृति का खेल
11:21 - सांख्य योग
12:12 - लिविंग इन द मोमेन्ट (Living in the moment)
17:59 - लिविंग इन द Truth
23:34 - निराश्रित जीवन
23:56 - समापन

विवरण:
इस वीडियो में आचार्य जी ने वर्तमान में जीने की अवधारणा पर गहराई से चर्चा की है। उन्होंने बताया कि जो कुछ भी हमें दिखाई देता है, वह वास्तव में अतीत का परिणाम है। वर्तमान में जीने का अर्थ है केवल इस क्षण में उपस्थित रहना, जबकि अधिकांश लोग अपने अतीत और भविष्य की चिंताओं में उलझे रहते हैं। आचार्य जी ने यह स्पष्ट किया कि भविष्य की कामनाएं और अतीत की यादें हमें वर्तमान से दूर ले जाती हैं।

उन्होंने उदाहरणों के माध्यम से समझाया कि हम अपने कर्मों के परिणामों की चिंता करते हैं, लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि हम जो हैं, वह अगले क्षण में नहीं रहेंगे। आचार्य जी ने यह भी बताया कि आत्मा और शरीर के संबंध को समझना आवश्यक है, क्योंकि शरीर लगातार बदलता रहता है, जबकि आत्मा स्थायी नहीं है।

आचार्य जी ने यह भी कहा कि "लिविंग इन द मूमेंट" एक भ्रम है, और हमें "लिविंग इन द ट्रुथ" की ओर बढ़ना चाहिए, जो कि वर्तमान में जीने का सही अर्थ है। उन्होंने यह भी बताया कि हमें अपने नाड़े (सहारे) को छोड़कर वास्तविकता को समझना चाहिए, क्योंकि जो चीजें बदलती हैं, उन पर भरोसा करना व्यर्थ है।

प्रसंग:
~ "लिविंग इन द मोमेन्ट" क्या है?
~ क्यों हम लगातार भविष्य-उन्मुख रहते हैं?
~ हम किसके लिए भविष्य के सपने बुन रहे हैं?
~ मृत्यु प्रतिपल हो रही है।
~ क्या भविष्य है?
~ बस कौनसी कामना सार्थक है?

नाहं देहो न मे देहो बोधोऽहमिति निश्चयी।
कैवल्यमिव संप्राप्तो न स्मरत्यकृतं कृतम् ॥
अष्टावक्र गीता - 11.6

अनुवाद: मैं यह शरीर नहीं हूँ और न ही यह शरीर मेरा है, मैं बोधस्वरूप हूँ, जो ऐसा जान रहा होता है,
वह कैवल्य (मुक्ति) को प्राप्त होता है। वह फिर इस बात को याद नहीं रखता कि उसने क्या किया और क्या नहीं किया।

Memory deceives with false continuity.

संगीत: मिलिंद दाते
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