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वीडियो जानकारी: 29.12.24, नई दिल्ली

कुंभ: झूठ के सागर में खो गया सच का अमृत || आचार्य प्रशांत (2024)

📋 Video Chapters:
0:00 – Intro
1:08 – महाकुंभ की तैयारियां
3:17 – देवता और दानवों की कामना
4:37 – अहंकार का स्वरूप
6:11 – अमरता की लालसा
7:24 – आत्म मंथन का अर्थ
10:02 – मंदराचल (मथनी) और वासुकी (रस्सी) का प्रतीक
11:55 – विष्णु का कच्छप रूप
13:20 – हलाहल और उसका अर्थ
14:11 – शिव का नीलकंठ स्वरूप
17:43 – आत्ममंथन में शुरुआती बाधाएँ
18:45 – माया के प्रलोभन
20:54 – कुंभ के अमृत का अर्थ
25:16 – अमृत की वास्तविकता
26:32 – मृत्यु का अर्थ और मुक्ति
27:25 – अमृत का वास्तविक अनुसंधान
30:01 – भीतरी और बाहरी गंगा
31:37 – धार्मिक आडंबर पर प्रश्न
33:33 – नदियों का प्रदूषित होना
35:24 – सत्य के प्रति निष्ठा
38:31 – समापन

विवरण:
इस वीडियो में आचार्य जी ने कुंभ के वैदांतिक अर्थ को स्पष्ट किया। उन्होंने बताया कि कुंभ का मंथन देवताओं और दानवों के बीच की संघर्ष की कहानी है, जिसमें दोनों की साझा कामना अमर होने की है। आचार्य जी ने बताया कि देवता और दानव दोनों अहंकार के रूप हैं, लेकिन देवता आत्ममुखी अहंकार रखते हैं, जबकि दानव मायामुखी अहंकार के प्रतीक हैं। कुंभ का मंथन वास्तव में आत्म-मंथन है, जिसमें व्यक्ति को अपने भीतर की गहराइयों में जाकर आत्मज्ञान प्राप्त करना होता है।

आचार्य जी ने यह भी कहा कि अमृत केवल आत्मा के अनुसंधान से प्राप्त होता है, और यह महत्वपूर्ण है कि व्यक्ति अपने झूठे अहंकार और कामनाओं को छोड़कर सत्य के प्रति निष्ठा रखे। अंत में, उन्होंने बताया कि कुंभ का असली मर्म आत्मा की खोज में है, न कि बाहरी भोगों में।

🎧 सुनिए #आचार्यप्रशांत को Spotify पर:
https://open.spotify.com/show/3f0KFweIdHB0vfcoizFcET?si=c8f9a6ba31964a06

संगीत: मिलिंद दाते
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