• 17 hours ago
वीडियो जानकारी: 25.05.24, संत सरिता, ग्रेटर नॉएडा

विवरण:
इस वीडियो में आचार्य जी ने अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को स्पष्ट किया है। उन्होंने बताया कि "तवमेव त्वमेव तत" का अर्थ है कि अहं (मैं) और आत्मा एक ही हैं। आचार्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि जो हम अपने बारे में सोचते हैं, वह झूठ है। आत्मा ही सत्य है और अहंकार तथा संसार दोनों ही भ्रम हैं। उन्होंने बताया कि जब हम अहंकार और संसार के बीच भेद करते हैं, तो यह एक द्वैत का निर्माण करता है, जबकि वास्तविकता में आत्मा और ब्रह्म एक हैं। आचार्य जी ने यह भी कहा कि हमें अपने झूठे विचारों को छोड़कर सत्य को पहचानना चाहिए, क्योंकि अंततः सब कुछ एक ही सत्य है।

प्रसंग:
~ "तवमेव त्वमेव तत" का वास्तविक अर्थ क्या है और यह हमारे जीवन में कैसे लागू होता है?
~ आचार्य जी के अनुसार, अहंकार और आत्मा के बीच का संबंध क्या है?
~ क्यों कहा जाता है कि हम अपने बारे में जो सोचते हैं, वह झूठ है?
~ अद्वैत वेदांत में आत्मा और ब्रह्म की एकता को कैसे समझा जा सकता है?
~ अहंकार और संसार को दो झूठ क्यों माना गया है?
~ क्या अहंकार को समाप्त करने से हम आत्मा की पहचान कर सकते हैं?
~आचार्य जी ने द्वैत और अद्वैत के बीच के भेद को कैसे स्पष्ट किया है?
~ सत्य की पहचान के लिए हमें किन झूठों को छोड़ना चाहिए?
~ आध्यात्मिक साधना में "अहं ब्रह्मास्मि" का क्या महत्व है?
~ आचार्य जी के अनुसार, जीवन में भ्रम और माया को कैसे पार किया जा सकता है?

🎧 सुनिए #आचार्यप्रशांत को Spotify पर:
https://open.spotify.com/show/3f0KFweIdHB0vfcoizFcET?si=c8f9a6ba31964a06
संगीत: मिलिंद दाते
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