• 2 days ago
वीडियो जानकारी: 13.08.2024, गीता समागम, ग्रेटर नोएडा

प्रसंग

~ गीता 4.37 में ज्ञान के मार्ग द्वारा सभी कर्मों को भस्म कर दिए जाने का क्या अर्थ है?
~ कर्ता का अस्तित्व क्या है?
~ कर्ता और कर्म का क्या अर्थ है?
~ गलत कर्म करने की वृत्ति को कैसे रोका जा सकता है?
~ हमारे व्यक्तित्व का निर्माण कैसे होता है?
~ कर्मफल का सिद्धांत क्या है?
~ क्या व्यक्तियों से आशा रखना व्यर्थ है?
~ क्या हमारे भीतर बेहतर होने की संभावना है?
~ हमारी वास्तविक ज़िम्मेदारियाँ क्या हैं?

यथैधांसि समिद्धोऽग्निर्भस्मसात्कुरुते ऽर्जुन ।
ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा ॥
भगवद् गीता - 4.37

हेरत हेरत हे सखी, रहा कबीर हेराइ ।
बूँद समाना समुंद में, अब कित हेरत जाइ ॥
- संत कबीर

संगीत: मिलिंद दाते
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