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वीडियो जानकारी: 04.08.2024, संत सरिता, ग्रेटर नोएडा

प्रसंग:
~ कबीर साहब के इस भजन में कस्तूरी मृग कौन और उस से क्या आशय है?
~ कस्तूरी मृग की व्यथा क्या है?
~ कस्तूरी मृग की मानी हुई बात क्या है?
~ कस्तूरी मृग की बेचैनी क्या है?
~ नित्यता का क्या अर्थ है?


आत्मज्ञान बिना नर भटके, कोई मथुरा कोई काशी।
~ संत कबीर

जैसे मृगा नाभि कस्तूरी, बन बन फिरत उदासी ।।
~ संत कबीर

दौड़त दौड़त दौड़िया, जेती मन की दौड़। दौड़ि थके मन थिर भया, वस्तु ठौर की ठौर ॥
~ संत कबीर

There was a man who was so disturbed by the sight of his own shadow and so displeased with his own footsteps, that he determined to get rid of both.
The method he hit upon was to run away from them. So he got up and ran. But everytime he poot his foot down there was another step, while his shadow kept up with him without the slightest difficulty.
He attributed his failure to the fact that he was not running fast enough. So he ran faster and faster, without stopping, until he finally dropped dead. He failed to realize that if he merely stepped into the shade, his shadow would vanish, and if he sat down and stayed still, there would be no more footsteps.

~ Flight from the Shadow by Chuang Tzu

जल बिच कमल, कमल बिच कलियाँ, तापर भँवर निवासी ।।
~ संत कबीर

हाड़ जलै ज्यों लाकड़ी, केस जलै ज्यों घास । सब जग जलता देख के, भए कबीर उदास ।।
~ संत कबीर

वृक्ष बोला पात से, सुन पत्ते मेरी बात। इस घर की ये रीत है, एक आवत एक जात ॥
~ संत कबीर

सो मन बस त्रयलोक भयो है, यति सती संन्यासी ।।
~ संत कबीर


संगीत: मिलिंद दाते
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