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वीडियो जानकारी: 08.11.24, गीता समागम, ग्रेटर नॉएडा

जाति का ठप्पा माथे पर लगा है; मैं ये धर्म ही छोड़ दूँगा || आचार्य प्रशांत (2024)

📋 Video chapters:

0:00 - Intro और प्रश्नकर्ता का प्रश्न
1:56 - लोक धर्म प्रथाओं की आलोचना
5:23 - श्रुति और स्मृति के बीच भेद
12:19 - सनातन धर्म का सार
17:05 - धर्म की असली प्रकृति
26:43 - शिक्षा का महत्व

विवरण:
इस वीडियो में आचार्य जी एक श्रोता के सवालों का जवाब दे रहे हैं, जो झारखंड से हैं और हिंदू धर्म, सनातन धर्म, मनुस्मृति, और जाति-व्यवस्था पर उनकी राय जानना चाहते हैं। आचार्य जी बताते हैं कि लोक-धर्म (जैसे कि प्रचलित परंपराएं और समाज में मौजूद religious practices) में caste discrimination और exploitation देखने को मिला है, लेकिन असली सनातन धर्म ऐसा नहीं है।

आचार्य जी समझाते हैं कि सनातन धर्म का आधार श्रुति (जैसे वेद और उपनिषद) है, जो किसी भी प्रकार के जातिगत भेदभाव को मान्यता नहीं देता और कहता है कि इंसान केवल चेतना है और यह मानता है कि इंसान केवल consciousness है, न कि body, caste, या किसी social identity में बंधा हुआ।

आचार्य जी बताते हैं कि सनातन धर्म का उद्देश्य self-realization, consciousness को जागरूक करना और ego का त्याग करना है। आचार्य जी कहते हैं कि यदि caste और discrimination जैसी चीजें अस्वीकार्य हैं, तो ये धर्म का हिस्सा नहीं हो सकतीं। उनका सुझाव है कि Dalit समुदाय के लिए education सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि धर्म की असली समझ तभी संभव है जब व्यक्ति शिक्षित और जागरूक हो।

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