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वीडियो जानकारी: 30.09.23, गीता समागम, ग्रेटर नॉएडा

प्रसंग:
असूया : अहंकार द्वारा स्वयं को आत्मा के समतुल्य या समकक्ष समझना।
गीता किसके लिए है?
इतनी सारी कामनाओं का होना क्या दिखाता है?
क्यों कृष्ण को सुनने से पहले मानना पड़ेगा कि हम अधूरे है?
श्रद्धा और निष्काम कर्म का क्या अर्थ है?

ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवाः।
श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽपि कर्मभिः।।

~ श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय 3, श्लोक 31

अर्थ:
जो लोग श्रद्धायुक्त और ईर्ष्या-रहित होकर मेरे इस मत का सदा पालन करते हैं, वे भी कर्म-बंधन से मुक्त हो जाते हैं।

सत्य में रख श्रद्धा अपार
नमित करके अंहकार
गीता की गुनकर के बात
आ मुक्त हो भवबंध काट

~ आचार्य प्रशांत द्वारा सरल काव्यात्मक अर्थ


संगीत: मिलिंद दाते
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