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वीडियो जानकारी: 30.12.23, संत सरिता, ग्रेटर नॉएडा

प्रसंग:
~ भक्ति का वास्तविक अर्थ क्या है?
~ भक्ति कौन करता है?
~ भक्त है कौन?
~ एक सच्चा भक्त कैसे बनें?
~ भक्ति अधूरी कब रह जाती है?


कबीर भजन - अब से खबरदार रहो भाई

अब से खबरदार रहो भाई
अब से खबरदार रहो भाई ।

गुरु दीन्हा माल खज़ाना, राखो जुगत लगाई ।
पाव रती घटने नहिं पावै, दिन दिन होत सवाई ।।

क्षमा शील की माला पहनो, ज्ञान वस्त्र लगाई ।
दया की टोपी सिर पर दे के, और अधिक बन आई ।।

वस्तु पाई गाफ़िल मत रहना, हर दिन करो कमाई ।
घट के भीतर चोर लगत हैं, बैठे घात लगाई ।।

बाहर ज्ञान रहे सिपाही, भीतर भक्ति अधिकाई ।
सुरति ज्योति हर दम सुलगे, कस कर तेल चढ़ाई ।।

~ कबीर साहब

शब्दार्थ: जुगत- युक्ति; गाफ़िल- अचेतन; सुरति- ध्यान


ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम् ।
सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः ॥

अहंकार में अंधकार में, अज्ञान में मतिभ्रष्ट हैं।
कल उन्हें क्या कष्ट हो, वो आज ही जब नष्ट हैं।
(आचार्य प्रशांत द्वारा काव्यात्मक अर्थ)
~ श्रीमद्भगवद्गीता, 3.32


कंकड़ चुन चुन महल बनाया, लोग कहें घर मेरा ।
ना घर तेरा, ना घर मेरा, चिड़िया रैन बसेरा ।।
~ संत कबीर


धूमेनाव्रियते वह्निर्यथादर्शी मलेन च।
यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम्।।

आग दहके पर धुएँ से प्रकाश ढक जाता है
काम भरा जब आँख में सच नज़र नहीं आता है
(आचार्य प्रशांत द्वारा काव्यात्मक अर्थ)
~ श्रीमद्भगवद्गीता, 3.38


नाहं देहो न मे देहो
(मैं शरीर नहीं हूँ, न ही शरीर मेरा है।)
~ अष्टावक्र गीता (अध्याय 11, श्लोक 6 से अंश)


आई गवनवा की सारी,
उमिरी अब ही मोरी बारी ।

साज समाज, पिया लै आये,
और कहरिया चारी।

बम्हना बेदरदी, अँचरा पकरिकै,
जोरत गठिया हमारी ।

सखी सब पारत गारी।
आई गवनवा की सारी...
~ संत कबीर


संगीत: मिलिंद दाते
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