श्री ब्रह्मा विष्णु महेश कथा का आरंभ सती कौशिकी से होता है जिसका विवाह एक मुनि कुमार कौशिक से होने वाला था और वह कार्तिक पूजा के समय आश्रम की अन्य कुंवारी कन्याओं के साथ अपने होने वाले पति की कामना से माता कात्यायनी की पूजा कर रही थी |
श्री ब्रह्मा विष्णु महेश ऐसा कहने से लगता है जैसे यह तीन अलग-अलग देव अथवा शक्तियां हैं परंतु यह सत्य नहीं है वास्तव में यह तीनों एक ही शक्ति के तीन रूप हैं असल में एक ही परम ब्रह्म परमात्मा है जिसकी इच्छा अथवा संकल्प से इस जगत की सृष्टि होती है उस सृष्टि का पालन होता है और फिर उसी सृष्टि का संघार हो जाता है एकमत ए भी है कि सारा संसार एक माया है यह उत्पत्ति का पालन या फिर सारा नाटक केवल माया का भ्रम है जैसे स्वप्न में देखा हुआ सत्य नहीं होता उसी प्रकार यह सारा संसार मिथ्या है केवल स्वप्न मात्र है |
सती कौशिकी गौरी मां से आशीर्वाद मांगती है कि हे गौरी मां मुझे आशीर्वाद दो की जिनसे मेरे पिता जी मेरा सम्बंध निश्चित किया है मैं सदा उनकी सेवा करूं वह सदा सुखी रहे स्वस्थ रहें स्वप्न में भी मेरे मन में किसी का ध्यान ना आए मैं अपने सत्य के मार्ग पर अडीग रहूँ उधर कौशिकी के पिता ये सब देखकर दुःखी एवं चिंतित हो जाते हैं क्योंकि जिनकी कौशिकी आशीर्वाद मांग रही हैं ओ कोढ़ी हैं तो उनसे विवाह नहीं करना चाहते हैं उनके पिता तबकब कोशिकी आ जाती है और देखती हैं कि माता पिता रो रहे हैं तो पूछने पर बोलते हैं कि बेटी जिनसे विवाह करना चाहती हो उन्हें कुष्ट रोग हो गया और ओ तुमसे विवाह नहीं करना चाहते हैं तब कौशिकी का कहना है कि मैंने तो उन्हें अपना पति मान लिया है और चाहे जैसे भी हैं मैं उन्ही से विवाह करना चाहती हूं सेवा करना चाहती हूँ ये एक सती की कहना है और मिलकर विवाह कर लेते हैं एक दूसरे से कौशिक और सती कौशिकी I
श्री ब्रह्मा विष्णु महेश ऐसा कहने से लगता है जैसे यह तीन अलग-अलग देव अथवा शक्तियां हैं परंतु यह सत्य नहीं है वास्तव में यह तीनों एक ही शक्ति के तीन रूप हैं असल में एक ही परम ब्रह्म परमात्मा है जिसकी इच्छा अथवा संकल्प से इस जगत की सृष्टि होती है उस सृष्टि का पालन होता है और फिर उसी सृष्टि का संघार हो जाता है एकमत ए भी है कि सारा संसार एक माया है यह उत्पत्ति का पालन या फिर सारा नाटक केवल माया का भ्रम है जैसे स्वप्न में देखा हुआ सत्य नहीं होता उसी प्रकार यह सारा संसार मिथ्या है केवल स्वप्न मात्र है |
सती कौशिकी गौरी मां से आशीर्वाद मांगती है कि हे गौरी मां मुझे आशीर्वाद दो की जिनसे मेरे पिता जी मेरा सम्बंध निश्चित किया है मैं सदा उनकी सेवा करूं वह सदा सुखी रहे स्वस्थ रहें स्वप्न में भी मेरे मन में किसी का ध्यान ना आए मैं अपने सत्य के मार्ग पर अडीग रहूँ उधर कौशिकी के पिता ये सब देखकर दुःखी एवं चिंतित हो जाते हैं क्योंकि जिनकी कौशिकी आशीर्वाद मांग रही हैं ओ कोढ़ी हैं तो उनसे विवाह नहीं करना चाहते हैं उनके पिता तबकब कोशिकी आ जाती है और देखती हैं कि माता पिता रो रहे हैं तो पूछने पर बोलते हैं कि बेटी जिनसे विवाह करना चाहती हो उन्हें कुष्ट रोग हो गया और ओ तुमसे विवाह नहीं करना चाहते हैं तब कौशिकी का कहना है कि मैंने तो उन्हें अपना पति मान लिया है और चाहे जैसे भी हैं मैं उन्ही से विवाह करना चाहती हूं सेवा करना चाहती हूँ ये एक सती की कहना है और मिलकर विवाह कर लेते हैं एक दूसरे से कौशिक और सती कौशिकी I
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00:00अर्योम तथ सत् श्री ब्रम्मा विश्णु महेश
00:06ऐसा कहने से लगता है जैसे ये कोई तीन अलग-अलग देव अथ्वा शक्ती हैं
00:12परन्तु ये सत्य नहीं है वास्तम में ये तीनों एक ही शक्ती के तीन रूप हैं
00:19असल में एक ही पर ब्रम्प्रमात्म आ है जिसकि एच्छा अथ्वा संकल्प से इस जगत स्रिष्ति होती है
00:25उस सिष्टि का पालन होता है और फिर उसि सिष्टि का संघार हो जाता है
00:31जगत की स्रिष्टी होती है, उस स्रिष्टी का पालन होता है
00:35और फिर उसी स्रिष्टी का संघार हो जाता है।
00:39एक मत ये भी है कि ये सारा जगत वास्तव में है ही नहीं,
00:44केवल माया है। और ये उत्पत्ती, पालन और संघार का सारा नाटक
00:50केवल माया का ब्रहम है। जैसे स्वपन में देखा हुआ सत्य नहीं होता।
00:57उसी प्रकार ये सारा संघार मिठ्या है, केवल स्वपन मात्र है।
01:02फिर भी इस प्रशन का उत्तर तो चाहिए कि यदी ये स्वपन है,
01:07तो ये किसका स्वपन है? कोई तो है जो इस स्वपन को देख रहे है,
01:12अथवा इस स्वपन की रचना कर रहे है।
01:15वोही जो परम रचनाकार, वोही जो परम द्रश्टा है,
01:19उसी का नाम शास्रों में परब्रम, परमात्मा रखा है।
01:24तो एक नाम तैह हो गया, परब्रम।
01:27अब उसके तीन कारियां हैं, जगत की रचना,
01:30उसका पालन, और उसका विलै अथवा संगार।
01:34इन तीनों कारियों को करने के लिए तीन अलग-अलग भाव होने चाहिए।
01:40सो रिश्यों ने, अथवा शास्रों ने, उन तीन भावों को मुर्थि मान करके,
01:45उनके तीन अलग-अलग नाम, ब्रम्मा विश्णों हेच करते हैं।
01:51वास्तम में तीनों एक ही हैं, और तीनों में से किसी एक की पूजा करो,
01:55तो वो परब्रम की ही पूजा होती है। इसी बात को समझाते हुए,
02:00बगवान श्री कृष्ण ने गीता के छटे अध्याय में कहा है,
02:14अर्थात, तुम जिसकी भी पूजा करो, वो मुझे ही पहुँचती है।
02:19इसलिए जो विश्णु की पूजा करता है, वो अपने आप ही ब्रह्मा और शिव की पूजा करता है।
02:24और जो शिव की पूजा करता है, वो ब्रह्मा और विश्णु की पूजा करता है।
02:29एक ही पूजा से स्वाभाविक ही सभी की पूजा हो जाती है।
02:34हाला कि तीनों एक ही हैं, उनमें बड़ा चोटा कोई भी नहीं।
02:38फिर भी जियो जियो समय गुज़रता गया और माया का प्रभाव बढ़ता गया,
02:43तो भक्तों ने अपने अपने इश्ट को ही बड़ा सिद्ध करना शुरु कर दिया।
02:47जैसे शिव महा प्रान में सुरिष्टी रचना और संचालन का मूल आधार भगवान शिव ही विश्णु ब्रह्मा को प्रगट करके सुरिष्टी का कारियारंद करते हैं,
02:57और पुना अपने में ही उनको लै करते हैं।
03:00नारद विश्णु पुरान में सुरिष्टी करम में सुरिष्टी का मूल आधार महा विश्णु हैं जो परब्रह्म परमात्मा ही प्रकृती पुरुष और काल तीन रूप में प्रगट होते हैं।
03:13ब्रह्म पुरान वा ब्रह्मान पुरान में ब्रह्मा जी दौरा सुरिष्टी रचना का कारिया होता है।
03:19ब्रह्मा जी बार बार सुरिष्टी करके अपना शरीर छोड़कर नया शरीर धारन करके नय सुरिष्टी रचाते हैं।
03:27ब्रह्म बैवरत पुरान में भगवान शुरी कृषिन को ही सुरिष्टी का मूल आधार बताया जाया है।
03:32जिसमें शुरी कृषिन की मूल प्रकृती राधा है।
03:36इसी कृषिन लोक को नित्य साकेत कहा जाया है।
03:40देवी भागवत पुरान में प्रकृती शक्ती मा जगदंबा की इच्छा को ही सुरिष्टी का मूल आधार माना जाया है।
03:52श्रिमत भागवत में भगवान विश्णू के चौविस अवतारों का वर्णन है।
03:56शिव जी ने कोई अवतार धारन नहीं किया है।
03:59प्रतु हनुमान जी को शिव जी का ही अंश अवतार माना जाया है।
04:04इसी प्रकार हरी अनंत, हरी कथा अनंता।
04:09इसलिए हमने निश्चे किया है,
04:11कि इन सब पुरानों और ग्रंथों में जो कथाएं और लीलाएं जिस प्रकार वर्णनत हैं,
04:17उसी प्रकार अपने दर्शकों की सेवा में अरपित करें।
04:20हम अपनी और से किसी को बड़ा चोटा सिद्ध करने की चेश्टा नहीं करेंगे।
04:25भिन भिन प्राणों में इन तीनों की जैसी जैसी लीलाएं और कथाएं वर्णनत हैं,
04:32हम उनको उसी प्रकार आपकी भेट कर देंगे।
04:35प्रतु इस आग्रह के साथ, इस विनय के साथ, कि इन तीनों में कोई भेद भाव ना करके,
04:43उनकी प्रिथक प्रिथक लीलाओं का आनंद लीजिये।
04:46और उन तीनों में एक ही परब्रम का तेज़ देखते हुए,
04:50मन में उसी परब्रम को नमस्कार करते रहें।
04:55इसलिए हमने इस धारावाहिक का एक ही सम्मिलित नाम रखा है,
05:00शुरी ब्रह्मा विश्णु महिश।
05:04ब्रह्मा विश्णु महिश। जो इस संपूर्ण जगत के स्वामियों और रक्षक हैं।
05:08इससे पहले कि हम विभिन शास्त्रों के आधार पर इन तीनों के उद्गम और प्रादुर भाव का वर्धन करें,
05:15हम उनकी एक परम रोचेक कथा सुनाना चाहते हैं,
05:18जिसमें उस लीला का वर्धन है,
05:21जब इन तीनों महाशक्तियों को हमारी चोटी सी धर्ती,
05:26हमारी चोटी सी प्रित्वी की एक सती सन्नारी ने शक्ति हीन करके,
05:32अपनी कुटिया में अपनी मंता का बंदि बना कर रख लिया था,
05:36उस कथा का आरम सती कौशिकी से होता है,
05:40जिसका विवाह एक मुनी कुमार कौशिक से होने वाला था,
05:45और वो कार्तिक पूजा के समय आश्रम की अन्य कुमारी कन्यां के साथ,
05:51अपने हुने वाले पती के मंगल की कामना से माता कात्यायनी की पूजा कर रही थी,
06:15जिसका विवाह एक मुनी कौशिक से होता है,
06:21जिसका विवाह एक मुनी कौशिक से होता है,
06:27जिसका विवाह एक मुनी कौशिक से होता है,
06:33जिसका विवाह एक मुनी कौशिक से होता है,
06:39जिसका विवाह एक मुनी कौशिक से होता है,
06:43जिसका विवाह एक मुनी कौशिक से होता है,
06:49जिसका विवाह एक मुनी कौशिक से होता है,
06:55जिसका विवाह एक मुनी कौशिक से होता है,
07:01जिसका विवाह एक मुनी कौशिक से होता है,
07:08लावधुर्गायों में किया तुमने.
07:14शर्झमस्तान सुशोभित।
07:18महीमा मंदित, कुपतान की कुछ प्रातोत.
07:25मुनी य सब creates a connected nation.
07:29शश्ठमस्तान सुशोभित।
07:34महिमामंदित कीर्ति तुम्हारी नामर्शक्ति सुपूजित।
07:44महिमामंदित कीर्ति तुम्हारी नामर्शक्ति सुपूजित।
07:54साभाक्या कांशिनियों को मिले साभाक्य तुम्हारे काराख।
08:05कात्याय निमा सौक्य प्रदा सुख नाई निवय हाराख।
08:15व्रत कर दो सफन हमाराख।
08:24सर्व मंगल मौंगल ये सर्व मंगल सय यते॥
08:36सर्व मंगल वीजे च नमस्ते। सर्व मंगल ये...?
08:44सर्वा धारे दुड़ा शय। सदा आयूध युपते च पतीम्दे हिनमोज्दते॥
08:53गोरी माँ, मुझे आशिर्वात दो.
08:58कि जिन से मेरे पिताजी ने मेरा संबन्द निष्यत किया है..
09:02मैं सदा उनकी सेवा करूँ.
09:05वो सदा सुखी रहे, स्वहस्त रहे.
09:11जब उत्पाद पताजी चीज़ नहीं चाहते..
09:15..मैं बात बात करूँ.
09:17मैं सदा उनकी सेवा करूँ.
09:20वो सदा सुखी रहे, स्वास्त रहे.
09:24स्वप्नमे भी मेरे मन में किसी अन्य का ध्यान ना आये.
09:29मैं अपने सत्य के मार्ग पर अडिग रहूं.
09:38अपनी बेटी को..
09:40गोरी मां से अपने पती के सुख और स्वास्त का आशिरबाद..
09:45..मांगते देखकर, मेरा तन, बढन, सेहर उठा.
09:51क्यों?
09:53मैं वहाँ उसका विवाख नहीं कर सकता.
09:57जहां वो सोच रही है.
10:00लेकिन क्यों भला?
10:02मैंने तुम्हें भी अभी तक नहीं बताया.
10:06जब से हमें कौशिक ची का संदेश प्राप्ट हुआ है..
10:11..मैं भारी तुमिदह में पड़ गया हूँ.
10:14क्या संदेश आया है?
10:19बताईये ना.
10:22वो सुकण्या से विवाख करना नहीं चाहते.
10:25लेकिन क्यों?
10:27क्या कमी है हमारी बेटी में?
10:30क्या दोश है सुकण्या में?
10:34दोश तो उनके शरीद में उठपत हो गया है.
10:38पर्श्ट बताओ.
10:41क्या बात है?
10:46बात क्या है?
10:51पुरी कुष्ट रूप की पीपा.
10:55आप कोई बतोता को लन हरे ही सैसे कॉल गया.
11:01कोट?
11:02बहुत � Regional time वो.
11:06तो डेवीाल हो गया है कि� से रुक हैं?
11:09यह खुल्यारी थोने कोल गया हैं。
11:11कोट?
11:12नहीं.
11:15यह क्या हो रहा है डेवी मा?
11:17करना नहीं चाहता.
11:27माँ.
11:28पिताजी.
11:37पिताजी.
11:41माँ को क्या हुआ?
11:43बेटा, बात ही पुछ ऐसी है
11:46कि तुम्हारा विवाँ...
11:52चुप क्यों हो गए?
11:54बोलिये ना.
11:56बेटी, हमें तुम्हारे लिए
12:01एक दूसरा वर भूँना पड़ेगा.
12:04ये आप क्या कह रहे हैं, पिताजी?
12:07दूसरा वर?
12:10आप मुझे गाली दे रहे हैं, पिताजी.
12:16मुझे अधर्मी, असती बनाना चाहते हैं आप?
12:19बेटी, जिन कौशिक जी के साथ
12:23मैंने तुम्हारे विवाँ की बात की थी
12:26उन्होंने विवाँ करने से इंकार कर दिया है.
12:29वो मुझे विवाँ नहीं करना चाहते?
12:32क्यों?
12:33उन्हें एक भैयनक रोग हो गया है.
12:37वो..
12:37बस पिताजी, और कुछ मत बोलिये.
12:41वो जैसे भी है, मेरे पती है.
12:46मैंने सची मन से उनका वरन कर लिया है.
12:51और एक धर्म परायन स्त्री,
12:54किसे पुरुष का वरन, सिल्फ एक बार ही करती है.
12:58तु नहीं जानती.
13:00उन्हें कुछ रोग हो गया है.
13:04उनके शरीर का अंग अंग कर रहा है.
13:08पिताजी, ये रोग तो उन्हें अब लगा है.
13:12यदि विवाँ के पस्चात उन्हें ये रोग लग जाता,
13:16तो क्या मैं उन्हें छोड़ देती?
13:18लेकिन पेटी,
13:20पिताजी, जिस दिन संकल्प करके आपने वागदान किया था,
13:25मैंने तो उसी दिन सचे मन से उनका वरन कर लिया था.
13:30और एक सती, जीवन में एक ही बार किसी पुरुष का वरन करती है.
13:37मैं मुनी कुमार कौशिक के अतरेक किसी अन्य का वरन नहीं करूँगी.
13:42पत्री, भावनाओं में आकर संकल्प कर लेना संकल्प नहीं माना चाता.
13:52विवाह संसकार की परंपरा तो विवाह मंडब में..
13:57..अगनिदेव को साक्षी मान कर पूरी की जाती है, जो अभी तक..
14:03इन पंच तत्वों से बने शरीर में लगातार अगनी की साक्षी होती है.
14:10और फिर ये शरीर भी तो एक मंडब ही है.
14:14मैं अपने देवता की और उनहीं की रहाँगी.
14:19वो जैसे रखेंगे, वैसी रहूं.
14:23यही एक सती का कर्तव है.
14:25आप मुझे उनके पास ले चलिए, मैं उनके दर्शन करना चाहती हूँ.
14:40देटी, तुहारा तरक भी अपनी जगह पर बराबर है.
14:47और कौशिक जी का सोचना पर जब तुम्हारा तरक पर बराबर है..
14:51..और कौशिक जी का सोचना भी अपनी जगह पर सही है.
14:57मैं जाकर उनसे बात करता हूँ..
15:01..और वहाँ धर्माचारियों से निवेदन भी करूँगा.
15:08आप सभी जीवन के गूर्व तत्वों को जानने वाले हैं.
15:13इसलिए मैं आप सभी धर्माचारियों के पास..
15:16..अपनी समस्या के समाधान की आशा लेकर आया हूँ.
15:25समस्या का समाधान प्रत्यक्ष है मानियवर.
15:29आपकी पुत्री से समबन्द विच्छेत का कारण..
15:31..इनका ये रोग है.
15:32और इनका गरनित रोग किसी और को न लग जाएँ.
15:36इनके कारण किसी दूसरे को कष्ट हो..
15:39..ये मुनि कुमार कौशिक नहीं चाहते.
15:43भाग्यम फलित विशरवत..
15:45..इसे प्रारब्ध की विदम्बना मान कर..
15:48जिस दिन से मे ने..
15:51..ब्राम्मन कुमार कौशिक जी का..
15:54..अपनी पुट्री के वरन के लिए संकल्प लिया था..
16:00..उस ही दिन से वो बाहर है.
16:04ऑसी दिन से जिना कर दो.
16:06यह बंदा डो.
16:08यह बंदा डो.
16:09यह बंदा डो.
16:11अपनी पुतरी के वरन के लिए संकल्प लिया था.
16:16उस ही दिन से वो मन और बुद्धी से आपको समर्पित हो गई है.
16:25और आजीवन आपकी सेवा करनी का वरत धारन कर रखा है.
16:32अब आप ही एक पिता की राज रख सकते हैं.
16:36ये क्या नर्च कर रहे हैं आप? आप मेरे पिता समान हैं.
16:43मेरी दशा देखिए और सुझिए.
16:49मुझे अपने पूर्व कर्मों का डंड थो भोगना ही है ना.
16:56आपकी निर्दोष कन्या को सेवागी बनाना क्या मेरा सद्कर्म होगा?
17:04इसलिए मैने संगेश भेजा थो.
17:08मुझे द्याद था कि धर्माचारियों का निर्णे भी यही होगा.
17:14परितु यह निर्णे तो एक पक्षी है.
17:21आप सब शरिष विद्व जन हैं, धर्म विशाद हैं.
17:26परितु यह पक्षी निर्णे तो पुर्ण निर्णे होगी नहीं सकता.
17:37मैं अपने पिताजी के संकल्प का पालन करते हूँ,
17:42मन और वचन से इनका वरन कर चुकी हूँ.
17:46तो क्यों चुरुत्र वान पन्या को किसी पर्ब बुरुष का चिंतन करने का अधिकार आपकी शास्त्र देते हैं?
17:59बोलीए!
18:03बोलीए!
18:08आप मेरी द्वारा लिये गए वरन करने के संकल्प को बदलने का अधिकार ही नहीं रखते हैं.
18:16ये वरन मैंने किया था और इसका निर्णए भी मैं ही लूगी.
18:23हे ब्रामन मुनी कुमार, भागे बदलना मेरा कार्य नहीं है.
18:29परन्तु, कर्तव पत पर चलते रहना मेरा कार्य है, मेरा धर्म है.
18:35मेरे पुझी पिता के माध्यम से, जो संकल्प उच्छे परनेश्वर में करवाया है, मैं उसका पालिंग करेंगे.
18:45मैं जीवन परियंद आपकी सेवा करेंगे, आप मुझे अपनी चर्मों में रहने की स्विक्रति दीजे.
18:52अन्यथा, अन्यथा, अन्यथा जो पत, सादना और पुझा मैंने की है, उसे की योग शक्ति के बल पर, मैं इस इक शण अपने प्राण त्याँ दूँगी.
19:04नहीं पुत्री, नहीं, नहीं.
19:09ये एक सती का निर्णाय है.
19:11वैलिया, तुमने हमें निरोप्तर करदी हैं, तुमारी जयज.
19:22मुझे प्रारद को स्विकार है देवी.
19:31आचारेवर, तुम्हों राजियूं तुम्हों हमें निरोप्तर करते हैं.
19:38यही रिखलमिलाकर क्रिषबिल्स किया?
19:41पाने ग्रहन का आयोजन कीजिए.
19:45हम विभा करेंगो.
20:11यम हमसुता सहधर्म चरीतव प्रतीश चैनां भध्रम ते पानें ग्रहनिश्व पानेन पतित्रता महाभागा च्छाये आनुगता सदाथ।
20:31आत्रमं लवं बाज्जंद्रं चिदश्वं तुविरागं भिगादुशं गन्पत्रं बादुशं तुवजरं द्वाद्श्यो थानी नाबाणी किशंद्रं ये परेंगना न जबिग्रव्यम् तस्य सर्वसुत्ति घरं प्रभु तुक्यार्ति लभ्दे निर्ज्यां जना
21:01तुविरागं भिगादुशं चिदश्वं तुविरागं भिगादुशं तुविरागं भिगादुशं तुविरागं भिगादुशं तुविरागं भिगादुशं तुविरागं भिगादुशं तुविरागं भिगादुशं तुविरागं भिगादुशं तुविरा�
21:31भिगादुशं तुविरागं भिगादुशं तुविरागं भिगादुशं तुविरागं भिगादुशं तुविरागं भिगादुशं तुविरागं भिगादुशं तुविरागं भिगादुशं तुविरागं भिगादुशं तुविरागं भिगादुशं तुविर
22:01भिगादुशं तुविरागं भिगादुशं तुविरागं भिगादुशं तुविरागं भिगादुशं तुविरागं भिगादुशं तुविरागं भिगादुशं तुविरागं भिगादुशं तुविरागं भिगादुशं तुविरागं भिगादुशं तुविर
22:31भिगादुशं तुविरागं भिगादुशं तुविरागां कर्यों
22:41यवहां रवज्ञा ऑपना तुविरागं हान побतिक Flow off
22:47क्यों देख रहे हैं, स्वामु?
22:51एक सच्ची पति वृता नरीका पतक शुरूप देख रहा हूँ.
22:57सोच रहा हूँ.
23:00ज़भी तुम मेरी पतली ना होती..
23:04..तो मेरे क्या दशा होती?
23:09ये शरीर..
23:12..ये शरीर अब तक सड गया होता.
23:17लोगों के तिरसकार में..
23:20..मेरी आत्मा पर ना जानी कितने घाओं लगाए होते..
23:25..हो सकता है..
23:29..अपने प्रतिक गलाणी से..
23:32..मैंने आहात्मा हत्या कर ली होती.
23:36ऐसा मत कहिए, स्वामु.
23:39ऐसा सोचिये भी मत.
23:42मेरे होते हुए..
23:45..कोई आपका तिरसकार नहीं कर सकता.
23:48मैं आपकी पतनी हुँ, तासी हुँ आपकी.
23:55अगर मेरे वश में होता..
23:58..तो आपका रोग मैं ले लेती.
24:07सुना है..
24:09..सुना है, हिमाले की तराई में गंधक के चश्मे हैं..
24:16..जिन में नहाने से ये रोग चला जाता है.
24:23परन्तो..
24:26परन्तो क्या?
24:28आप वहाँ जाना चाहते हैं, स्वामु.
24:31मैं कैसे जा सकता हूँ?
24:36मुझ मैं..
24:38मुझ मैं चलने की शक्ति नहीं है.
24:42चलने की शक्ति नहीं है मुझ मैं.
24:47मैं आपकी शक्ति हूँ, स्वामु.
24:50आप छिनता मत कीजिये.
24:53मैं आपको ले जाओंगी, हिमाले की तराई में.
24:58और..
25:00हम लोग आते समय..
25:03पीर का स्थाना के दर्शन करते हुआ आएंगे.
25:07क्यों नहीं?
25:09मैं अभी चलने की त्यारी करती हूँ.
25:33कौशिकी, अपने पती के साथ..
25:36..हिमाले की तराई की ओर जा रही थी.
25:40मार्ग में उसे वो नगरी मिलती है..
25:42..जिसके राजा ने मांडवे नामक रिशी को..
25:45..वस्त्र और आबुशन क्यूराने के जूठे अबराद..
25:48..सूली पर लटका दिया था.
25:50मार्ग में उसे वो नगरी मिलती है..
25:53..जिसके राजा ने मांडवे नामक रिशी को..
25:56..वस्त्र और आबुशन क्यूराने के जूठे अबराद..
25:59..सूली पर लटका दिया था.
26:01और ये वो मार्ग है..
26:03..जहां अभी तक सूली पर जड़ाए गए मांडव रिशी..
26:07..अपने योग बल से सूली पर ही ध्यान लगाए समाधिस्त थे.
26:38किस पाफी ने मेरे सूल को हिलाया है?
26:45कोँ अधर्मी है..
26:48..जिसने मेरी भोग समाधी को भंग किया है?
26:51कोन अधर्मी है जिसने मेरी भोगसमादी को भंग किया है?
27:02कौन है जिसने मुझे इतनी पिया पहुचाई है?
27:14महाभाग, अन्धरी के कारण के लिए आपको पहुँचते हैं.
27:19महाभाग, अन्धरी के कारण हमें आपको शुन दिखाई नहीं दिया.
27:23भूल से आपको सपर्श हो गया.
27:26तुम्हारी भूल से मुझे जो पिया हुई है उसका दंड तुम्हें मिलना ही चाहिए.
27:35मैं मंडव्य रिशी तुम्हें शाब देता हूँ
27:40कि सूर्य उदए होते ही तुम्हारा पती विर्त्य को प्राप्थ हो जाएगा.
27:48नहीं.
28:04शाब, इतना बहुत शाब.
28:09एक छोटी सी भूल के लिए इतना कथोर दंड.
28:14मैं आपसे क्षमा याजिना करती हूँ.
28:17मेरे पती को शाब से मुक्त कर दीजे.
28:21नहीं.
28:23यदु सूर्य उदए होने से पहले मेरे पती जीवित नहीं रहे.
28:28तो मैं भी उनके साथ यही आपके सामने अपने प्राण त्याग दूँगी.
28:33उनको शाब से मुक्त कर दीजे.
28:36मेरी विन्ति स्विखार कर लीजे.
28:39मेरी विन्ति स्विखार कर लीजे.
28:42मेरी विन्ति स्विखार कर लीजे.
28:45मेरी विन्ति स्विखार कर लीजे.
28:48जमान से निकला तीर और मुख से निकला शाम या वर्धान कभी वापिस नहीं लिया जा सकता.
28:59मैं मांडव के रिशी हूँ.
29:02जो बोल दिया वही होगा.
29:08इस शाम को कोई नहीं डाल सकता.
29:12सूर्य उदए होते ही तुम्हारा पति बृत्तु को प्राप्थ हो जाएगा.
29:19बृत्तु को प्राफ्थ हो जाएगा.
29:22तो क्या आप अपनी कशन भर की पेड़ा के लिए मेरे पति के प्राण को यम दूक के हवाले कर देंगे.
29:28यम जाने में हुए भूल के लिए प्राण दन देंगे.
29:33अगर आपको प्राँ ही लेने हैं तो मेरे ले लेजीए.
29:39अगर मेरे पति को शाम से मुट कर देजीए.
29:44मेरे पति का शाम से मुट कर देजीए.
29:46मेरे पति का शाम से मुट कर देजीए.
29:56शाम दे के ही मेरा संपुर्ण मुट पुरी मेरा गड़ोगल नष्ट हो गया है.
30:01अगर मैं अपना शाम वापरस नहीं ये सकता.
30:16ये कैसा नियाय है तो ये दुश के साथ है सोगर्माल.
30:47कामे हुआ!
30:49मेरे पति फिलीं बिलाद है
30:52मैं पति नश्र हूँ, अगर मैं पति थुफी रिक्षिनेशे नहीं भड रया zichारता है.
31:02मेरे पति फिलीन बड़ारे लिए काषिश हूँ उपय काबल पर उपकर से अमर नहीं दिया है.
31:11मानदवय रिशी ने मेरे जन का समय तो तै नहीं किया था.
31:16पर अब मेरे मिरत्यू का समय तै कर दिया.
31:23अब हम दोनों का साथ केवल सूरु उदह तक काते हैं.
31:30इस रिशी का शाब तो मुझे इस दैसे मुफ्त कर देगा.
31:38परिंदु, मेरी आत्मा सदा आशान्त हरँगी.
31:44ने स्वामी नहीं!
31:46तुमके दुक और वैध्यमे की पीडा में देनों करिये आज.
31:53कभी शान्ति नही चने .
31:56कभी शान्ति नही चनी.
31:58यह कभी.
31:59...जानती नहीं मिलेगी, उदहे.
32:01नहीं, स्वामी. नहीं.
32:04अब हमारे साथ केवल सूर उदह तक आए.
32:09बस केवल सूर उदह तक आए.
32:14नहीं, स्वामी.
32:16मैं इस्याँ नहीं होने दूँगी.
32:18मैं सहता माँगूँगी.
32:20वेदन करूँगी, प्रात्ना करूँगी की वो हमें शाप से मुक्ती दिलाएं.
32:30मैं आती हूँ, स्वामी. मैं भी आती हूँ, स्वामी.
32:47आज अबार है, उसको दोलाएं.
32:49राजा सेंग.
32:50राजा सेंग, वो अभी भी शाम कर रहे हैं, किसी से नहीं मिल चुक्के, सुरीदर के पाद आओ.
32:54सुरीदर?
33:20कहो, देवी. रात्री के इस तहर में, तुमने हमें क्यूस्वरान के पाद कर रहे हैं?
33:25तुमने हमें क्यूस्वरान कर रहे हैं?
33:26तुमने हमें क्यूस्वरान कर रहे हैं?
33:27तुमने हमें क्यूस्वरान कर रहे हैं?
33:28तुमने हमें क्यूस्वरान कर रहे हैं?
33:29कहो, देवी. रात्री के इस तहर में, तुमने हमें क्यूस्वरान किया?
33:35कहो, देवी. रात्री के इस तहर में, तुमने हमें क्यूस्वरान किया?
33:36कहो, देवी. रात्री के इस तहर में, तुमने हमें क्यूस्वरान किया?
33:38कहो, देवी. रात्री के इस तहर में, तुमने हमें क्यूस्वरान किया?
33:43राज़ गुरु, नगर के एक माल पर, कोई सुली पर लट्का हुआ है।
33:50हाँ, � contractingor सादु है.
33:52नगर के एक माल पर कोई सूली पर लटका हुआ है.
33:56हाँ, एक धोंगी सादु है.
33:58नहीं, राज्गुरू, कोई धोंगी शाप देने का साहस नहीं कर सकता.
34:03शाप?
34:05हाँ, उन्होंने मेरे पति को शाप दिया है.
34:10वो मांडव्य रिशी है, राज्गुरू.
34:14और यदि उनका शाप सत्य हो गया तो
34:19सुर्य उदर होते हैं, मैं विद्वा हो जाओंगी.
34:22यदि वो सत्य में मांडव्य रिशी है, तब तो बड़ा अनर्थ हो गया.
34:25गंड मिलते समय उन्हें अपना परिछे तो देना चाहिए था, मैं अभी जाकर राजण से..
34:29राज़गुरू, मेरे पति का क्या होगा?
34:33तुम मुझसे क्या चाहती हो?
34:35आप राज़गुरू हैं, महान तपस्री हैं.
34:40महान तपस्री हैं, ऐसा आशिरवाद दीजिए..
34:45..कि उनका किया हुआ शाप निशवल हो जाया.
34:49ये मांडव्या का शाप है देवी, उसे निशवल करना मेरे वश्व में नहीं है.
34:55मैं विवश हूँ देवी.
35:10हे तसोति शाओ, हे गनधर्म अफसराो, हे दिफ़ताओ.
35:19मेरे पती की रक्षा कीजिए, मेरे पती की रक्षा कीजिये, मेरे पती की रक्षा कीजिए.
35:36जमराज.
35:39मुझे आग्या दीजे. मैं कौशिक के प्रांड लेरी कब जाओंगु?
35:43वही तो देख रहा हूं.
35:47नरभधनुसार ना तो मांडवे की मृत्यों भी है..
35:52..ना ही कौशिक की.
35:54तो क्या मांडवे रिशी का दिया शाप व्यारत हो जाएगा?
35:59नारायन! नारायन!
36:03नारायन! नारायन!
36:07प्रनाम देवरशी.
36:15किस समस्या में उलज़े है धर्मराज?
36:18रिशि श्रेष्ट, मांडवे रिशी ने कौशिकी को तो शाप दे दिया.
36:24परन्तु कौशिकी के पती की मृत्यों अभी दूर है.
36:29मैं सोच रहा था..
36:30सोचिये मत, सोचिये मत धर्मराज, सोचिये मत.
36:36वैसे भी इन शाप अभी शापों से बचकर रहना चाहिए.
36:43अब शाप के अनुसार, आज सूर्य उदय से पूर..
36:47..आपको कौशिक के प्रान हरन कर लेने चाहिए.
36:51परन्तु, परन्तु, ये तो विधाता के विधान में..
36:56..हस्तक शेप होगा, देव रिशी.
36:58नारायन, नारायन, और यदि आपने शाप का अनादर किया..
37:04..तो एक रिशी के शाप के विभल हो जाने का तात्पर है.
37:08उनके वचन का मिठ्या हो जाना.
37:11और धर्मराज, यदि एक महत्मा, एक रिशी का वचन मिठ्या हो गया..
37:16..तो तब कौन करेगा, यग ही कौन करेगा?
37:22और यग नहीं होने का अर्थ है, भगवान की पूजा नहीं होगी.
37:27भगती नहीं होगी.
37:31क्या आप ये चाहते हैं?
37:33क्या आप ये चाहते हैं?
37:36नहीं तेवरशी, कदापी नहीं.
37:39तो बास, बास, आप मांडन रिशी के शाब का आधर कीजिए.
37:45नारायन, नारायन, नारायन, नारायन.
37:56मैं हार गई हूँ, मैं हार गई हूँ.
38:01संगी आगे, हाँ चोड़ चोड़ के, मैं ठग गई हूँ, माँ.
38:08किसी को तेरे मन की पीड़ा समझ नहीं आती.
38:14कोई मेरी साहत नहीं कर सकता.
38:18मैं दिराश हो गई हूँ, माँ.
38:21मैं दिराश हो गई हूँ.
38:23तेरे होते हुए, क्या ये अनर्थ हो सकता है, माँ?
38:29एक नरदोश को शाब.
38:33माँ, अब तक मुझे अपने पती प्रता धर्म पर अभी माँ था.
38:43अपने सतीत्व पर गर्व था मुझे.
38:47परेटु, अब मैं ये समच गई हूँ कि मैं केवल एक नारी हूँ.
38:55सिर्फ एक अपना नारी.
39:17जो अपनी साहिता आप नहीं करते, उनकी साहिता कोई नहीं करता कोशिकी.
39:24तुम इतना निराश हो जाओगी, इसकी तो कलपणा भी नहीं किजा सकती थी.
39:30उस पर तुमने हताश होकर, अपनी आप को निर्वल समझ लिया?
39:36तुम इतना निराश हो जाओगी इसकी तो कलपना भी नहीं की जा सकती थी.
39:41उस पर तुमने हताश होकर अपनी आप को निर्वल समझ लिया.
39:47नारी शक्ती है कोशिकी, अभला नहीं.
39:50और तुम तो सती हो.
39:52इसी बात का तो खेल दे, माँ.
39:54मेरी सतीत वता का क्या लाब है?
39:58क्या लाब है मेरे पती वरता धर्म का?
40:03क्या लाब है मेरे तब का, मेरी पूचा का?
40:09अगर मैं अपने पती की सहता नहीं कर सकती, माँ,
40:15तो मेरा यह जीवन ब्यारत है.
40:18कोई भी जीवन ब्यारत नहीं होता, पुत्री.
40:21स्रिष्टी रचना करते समय, ब्रह्मा जी प्रतीक जीवन का उप्योग,
40:26सोचकर ही दे में प्रान भूँते हैं.
40:30तुम ने ब्रह्मा जी द्वारा दिये गए जीवन का इतना सत उप्योग किया है,
40:35कि तुम यथारत रूप में शक्ती बन गई हो.
40:38अथाँ निराशा छोड़ो और अपने सतीत्व की शक्ती को पहचानो और उस शक्ती का प्रयोग करो.
40:49तुम जो चाहोगी वही होगा.
40:55यदि मैं चाहोगी सूर्य उदैं ना हो?
40:59तो सूर्य उदैं नहीं होगा.
41:08यदि मैं चाहोगी वही होगा.
41:12तुमोँ जो चाहोगी वही होगा.
41:15कि तुम जो नहीं आग़ता है,
41:18तब अपने दीला में पर यदि मैं चाहोगा.
41:20तुम्हारे पती के प्राण लेने सुरी उड़े होने वाला है।
41:26सुरी उड़े? अब नहीं होगा.
41:50हे देवताओ, हे ब्रह्माओ, हे मिष्टु, हे महेश, हे प्रकति और दिशाओ,
42:10यदि मैंने सच्चे हुदय से अपने पती की सेवा की है,
42:18यदि मेरे मन में, स्वक्न में भी किसी पर्परुष का विचार नहीं आया,
42:24तो मेरे सत्य पतं से सुरी उड़े नहीं होगा.
42:29और यदि मेरे में सतित्वता है, तो अब सुरी उड़े होगा ही नहीं.
42:40यदि मेरे सत्य पतं से सुरी उड़े नहीं होगा.