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वीडियो जानकारी: 15.02.24 , गीता समागम , ग्रेटर नॉएडा

प्रसंग:
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्या: पार्थ सर्वश:।। ४.११ ।।

~ श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय 4, श्लोक 11

अर्थ:
जो जैसे मुझे भजता है, मैं भी उन्हें वैसे ही भजता हूँ। जो मनुष्य जिस भी मार्ग पर चल रहा हो,
चल तो वो मेरे ही मार्ग पर रहा है।

लंबे उल्टे रास्तों पर
मुझे खोजते धाते हो
रुको साफ़ देखो भीतर
बोलो किसे तुम पाते हो

~ आचार्य प्रशांत द्वारा सरल काव्यात्मक अर्थ

~ अपनी सच्चाई और परम तत्व के ज्ञान में क्या संबंध है?
~ पारस्परिकता का सिद्धांत और आत्मपरकता का सिद्धांत क्या होता है?
~ कृष्ण कौन हैं यह कैसे तय करें?
~ क्या निर्गुण का भी कोई गुण होता है?
~ अनुग्रह का अर्थ क्या है?

संगीत: मिलिंद दाते
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