राग - द्वेष के हिसाब
हमें दुसरो से ज्यादा अपने परिवार और नजदीकी लोगों से लगाव क्यों हो जाता है? इसके सामने हमारी भावना पड़ोसियों या बाहरवाले लोगों के लिए इतनी नहीं रहती| इस अंतर के पीछे क्या वजह रही है?
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00:00जैसे हम लोग अपने परवार से ज़्यादा अटेश हो जाते हैं, अपने नेवर से इतना नहीं होते हैं या बाहर का रिलेटिव से हैं, तो ऐसा क्यों होता है कि हम अपने बच्चों से, अपने परवार से, मावाप से ज़्यादा अटेश में रहते हैं, जबकि भाव हमारा �
00:30राग द्वेश वाले वो ही आसपास आते हैं, सबसे ज़्यादा राग या सबसे ज़्यादा द्वेश वाईफ के साथ होता है, उससे कम वाला बच्चों के साथ, उससे कम मावाप के साथ, उसके कम हमारे भाई, वाभी वो सब, यानि राग द्वेश के इसाब वाले ही आस�
01:00पास आएंगे, इसाब वसूल करके जुदा हो जाते हैं, तो ये आसपास वाले हैं हमारे आएं, जो हमारे और घर में कुट्टा रखते हैं, वो भी हमारे इसाब वाला है, कोई फैमिली मेंबर इदर आ गया है, हमारी रोटी खाएगा, घर में बैठेगा, आराम से सोफा प
01:30है, हमारे फैमिली मेंबर आए, तो ये इसाब वाले ही घर में इकट्टा होते हैं और घर को
01:36ही सारी दुनिया को जितना नहीं है, घर को ही जितना है, घर में जितने मेंबर्स है, सबसे
01:42जादा चिकना इसाब, स्टिकी फाइल्स, उसका संभाव से निकाल किया, उसके साथ राग, द्वेश खतम किया, तो सारी दुनिया जीत गए, बार जीतने के नहीं, इदर जीतता है, घरी बड़ी दुनिया है, उसी को जीत लिया, सारी दुनिया के जीता गया.