परोक्ष भक्ति

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भक्तिमार्ग में परोक्ष और प्रत्यक्ष भक्ति दोनों है| जीवन में धार्मिक या भक्ति की क्रिया गहराई से करने पर भी हमें भय या डर की अनुभूति क्यों होते रहती है?
Transcript
00:00जब हम कोई भखती को गहराही से करने की कोशिष करते हैं तो अन्दर से डर क्यों पेदा होने लगता हैं हैं?
00:23अच्छीली सच्चे बाद तो किया है कि धर्मस से भकती
00:26भकती से डर नहीं होता है
00:28देह भाव से डर है
00:30मैं अनीता हूम जब तक अज्ज्यानत है
00:32वहां तक जोभी भक्ती करते हो
00:34सब रेलेटिव भखती है
00:35परोक्ष भकती है
00:37कर्ता बाव से बखति हैं।
00:39और जिस भगवान की हम बखती करते हैं,
00:42सच्मुझ तो हमारी स्रद्धा हैं।
00:45प्रत्यक्ष नहीं, परोख्स भगती हैं।
00:47सच्चे भगवान तो भीतर वाले शुद्धात्मा वह ही हैं
00:49और उसका साक्षातकार हुआ नहीं।
00:51वहां तक देहा द्यास है और देभाव है।
00:54वहां तक भई है, डर है।
00:58और प्राब्लेम जब आ जाते हैं,
01:00तो सब भक्ती, भक्ती सब चली जाती हैं।
01:03किसी ने अपमान किया,
01:05तमारे में अकल नहीं, तुम नुखसान करती हो,
01:07तो घर में समालती नहीं है, मनमान ही करती हो, तेरा ठिकाना नहीं है।
01:11तो सब भक्ती चली गई, दुखी दुखी हो जाते हैं।
01:14क्यों?
01:15तो कि देहा द्यास है, अज्ञानता है, एहंकार है।
01:19भले भक्ती करते हैं, अमारी स्रद्धा रखके करते हैं।
01:22सचमुच परोक्ष है, प्रत्यक्स कृष्ण भगवान मुर्थी में नहीं है, हमारे भीतर में है।
01:27बहु के भीतर है, अज्बन के भीतर, बिच्चे के भीतर है।
01:30वो आत्मा, वो ही भगवान है।
01:32और उसकी समझ नहीं होने के एज़े से परोक्ष भक्ती करते हैं।
01:35और परोक्ष भक्ती में, जब तक भक्ती करते हैं, फिर भी सुक्ष्म में एहंकार, बुद्धी हैं,
01:42वहां तक शांती नहीं होने देते हैं।
01:45भय, दूख, वेटना, रहेगी ही रहेगी।
01:49और ज्ञान प्राप्त हो गया, तो दीरे-दीरे अनुभव होता है
01:53कि वही परिस्तिती में, भीतर से निर्भईता, असंगता, निर्लेपता, मुक्तता रहेगी।

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