निष्पक्षपाती त्रिमंदिर का आशय

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"निष्पक्षपाती त्रिमंदिर" में निष्पक्षपाती का अर्थ क्या होता है? निष्पक्षपाती त्रिमंदिर की स्थापना के पीछे क्या आशय रहा है?
Transcript
00:00कृष्ण भगवान ने सारी जिन्दगी में कभी नहीं कहा कि मैं वैश्णव हूँ, मेरा वैश्णव धर्म है।
00:12महावीर भगवान ने सारी जिन्दगी में नहीं कहा कि मैं जैन हूँ, मेरा जैन धर्म है।
00:22भगवान रामचंदर जी ने कभी नहीं कहा कि मेरा सनातन धर्म है।
00:29सभी ने आत्मा की पहचान करके मोक्ष में जाने की बात ही कही है।
00:35निष्वक्षवादीतरी मंदिर, इसमें निष्वक्षवादीतरी शब्द की वेक्या कीजिए।
00:39यहने पक्षनी हैं जैन धर्मा, वैश्णव धर्मा, शीव धर्मा, माता जी,
00:44सबी बगवन्तों को एकी मंदीर में बिठाया है, एकी प्लेटफॉम पे.
00:49तो हमें पक्षा पक्षी से, बगवान निस पक्षपाती है,
00:53हम पक्षपात में रहे, संपरादाई में रहे, वाड़ा पक्ष में,
00:56तो कभी बगवानका साक्षात हो पाएग है?
00:58अन, घरमेंभी मदबेद है, तो शांती नहीं रहेंगे,
01:01तो धर्मों में मदबेद है,
01:02आज में गाउं में शांती कैसे रहेगी?
01:05वो मदभेत मुटे हैं।
01:07बढ़ने जो भी बगवान की भक्ती करनी है करो,
01:09बग़र ये गलत है, हमारा सच्चा है,
01:12ये दिकाल दाल।
01:15सभी कॉलेज में कैसे फौर्थ स्टेंडर्ड है,
01:17फीफ्त है, सीक्स्थ है,
01:19जो विध्या थी, जो स्टांडर्ड में बैट था, उसके लिए करेक्ट है।
01:22और दूसरा गलत है, ऐसा नहीं बोलना चाहिए।
01:24एसा अंसार में भी समी धर्मा अपनी अपनी जगर सच्चे है।
01:28आपको जो मिला है, आपको जो भक्ती आरादना करनी है, करो,
01:31मकर दूसरे को गलत मत बोलो, हमारा सच्चा दूसरे का गलत,
01:35वो राग द्वेश निकाल देना है, उसको निस्पक्षपाती भाव बोलना जाती है।
01:38अपने अपने डेवलप होने दो।
01:40और लाश्ट में आत्मधर्म में आना है,
01:42क्योंकि जीव और शीव का भेध मिटे, तो भी आत्मा प्राप्ति हुई।
01:46माविर बग्वाने भी देव भाव छोड़के आत्मभाव में आने के लिए कहा,
01:51क्रश्न बग्वाने भी अर्जुन को आत्मा का ही घ्यान दिया।
01:54तो आत्मतत्व में सभी बग्वानतों की बात एक ही है, कि आत्मा प्राप्त करो, तो ही मोक्ष होगा।
02:24धर्म जब एक हुए, विश्वा अब एक होने में नहीं कोई दूरी।

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