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Explainer| पांच साल पहले ही आजाद हो गया था Ballia, युवाओं ने Lucknow तक चला दी थी 'Azadi Express'

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नमस्कार
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00:00बलिया यानी क्रांतिकारियों की वो धर्ती जिसने अंग्रेजों की चूले हिला दी
00:08और ऐसा बागे रूक अक्तियार किया कि आज भी इसे बागी बलिया कहा जाता है
00:13यू तो बागी बलिया की हर एक गली, हर एक सड़क, हर एक गाउं स्वतंतरता के अंधोलन की गवाही देता है
00:19लेकिन कई ऐसी घटनाये भी हैं जिनोंने तारिक में खुद को सबसे अवल लंबर पर दर्ज करा लिया है
00:25चाहे 1857 के प्रथम स्वतंतरता अंधोलन की बात हो या फिर 1942 के अगस्त क्रांटी की बात हो
00:32बलिया और बलिया के वीरों ने आजाधी के लिए अपना सब कुछ ने उच्छावर करते हुए वो सबसे आगे रहें
00:38और यही वज़ा भी रही कि देश में सबसे पहले आजाधी की किरण इस बागी बलिया के लोगों ने ही देखी थी
00:44आज की इस एक्सप्लेनर में हम बलिया के क्रांटी वीरों की एक ऐसे ही वीर राथा आपको सुनाएंगे
00:48जिसे आपने ना कहीं सुना होगा और ना ही कहीं पढ़ा होगा
00:56नमस्कार मेरा नाम है मारतन सिंग और आप देख रहे हैं डेली लाइन
01:00बलिया उत्तर प्रदेश का सुदूर पूर्वी जिला जो घागरा और गंगा नदियों के द्वाब में बसा हुआ है
01:05इस जिले की सिमायें तीन तरब से पढ़ोसी राजे बिहार से लगती हैं
01:09बलिया सुरू से ही अपने बागी तेवरों के लिए जाना जाता रहा है
01:12और इसकी शुरुवात होती है आजाधी के पहले संग्राम से
01:16जब बलिया के लाल मंगल पांडे ने 1857 की आजाधी का यानि की 1857 की क्रांती का भिगुल फूका था
01:24उसके बाद से बलिया चाहे आजाधी की लड़ाई हो या फिर लोकतांत्रिक मुल्यों को लेकर कोई लड़ाई भिगुल फूक ना हो तो बलिया हमेशा सब का नित्रित्व करता रहा
01:33आज एक ऐसी घटना का जिक्र हम करने जा रहे हैं जिसमें अंग्रेजों को बलिया से भागने पर मज्बूर कर दिया हुआ भी साल 1942 में ही यानि देश की आजाधी के 5 साल पहले
01:43अस्थान उत्र प्रदेश में बलिया का रेल्वे इस्टेशन तारीक थी 15 अगस्त 1942 और समय बज रहा था दोपहर का एक
01:51छुक छुक की आवाज हुई और लखनव के लिए पहली आजाधी एक्स्प्रेस चल पड़ी
01:55इस ट्रेन के अंदर लोग कम थे लेकिन इंजन और बोग्यों के उपर तिरंगा लहराते हुए युआओं का जोस देखते ही बन रहा था
02:03यह वही आजाधी एक्स्प्रेस ट्रेन थी जिसे बलिया के चात्रों ने रेलवे स्टेशन फूकने के बाद कभजे में कर लिया था
02:09और बरतानिया हुकुमत को चैलेंज करते हुए बलिया से लखनव तक इसको चला दिया था
02:14यह पूरा घटना करम आजाधी के इतिहास में स्वर्डी मक्षरों में दर्ज है
02:18बलिया जिले को सीमाओं में बादने वाली गंगा और घागरा दोनों ही नदियां उफान पर थीं और खुदी अपनी सीमाय तोडने को आतूर थीं
02:25उधर दूसरी और बलिया के लोग गुलामी की जंजीरों को तोड़तर बाहर आने के लिए बेताब दिख रहे थे
02:30मुंबई में महात्मा गांधी की गिरफतारी के साथ शुरू हुई अगस्ट क्रांटी बलिया में आते आते बलिया क्रांटी में तब्दील हो चुकी थी
02:36नव अगस्ट से ही लोग अंग्रेश सरकार को सीधा तक्कर देने लगे थे
02:40रोज सुबह जथे का जथा निकलता और शाम तक अंग्रेजो की नाक में पानी भर दे रहा था
02:44पंधर अगस्ट कुभी बलिया वालोग की कुछ ऐसी ही योजना थी
02:48उस दिन जिले के बड़े बुजुर कलक्ट्रेट पर धावा बोलने वाले थे
02:52सुरी की लालिमा दिखने के साथ ही अपने अपने घरों से निकले जीला भर के युवा दस बस्ते बस्ते बलिया रेल्वे स्टेशन पहुंज गए
03:02वहां सभा की और करीब 12 बजे रेल्वे स्टेशन में आग लगा दी गई
03:06स्टेशन से उट्टी आग की लप्टे अभी थमी भी नहीं थी कि गाजीपूर की ओर से चल करे ट्रेन बलिया स्टेशन पर पहुंज गई
03:12करीब 200 से अधी की वावने उस ट्रेन को घेर लिया
03:16ड्राइबर को बंधक बना कर करीब एक बजे इस ट्रेन को आजाधी एकस्पेस के नाम से चला दिया गया
03:21उस समय ये सभी युआ ट्रेन के इंजन से लेकर बोगियों की छत पर तिरंगा लेकर चड़ गय
03:25और पूरे रास्ते तिरंगा लहराते और आजाधी के गीत गाते हुए अगली सुबह लखनव पहुँचे थे
03:30बलिया से चली इस ट्रेन का गाजीपूर, फैजाबाद और बाराबंकी में आजाधी के मतवालों ने खूब सुवागत किया
03:35और वो भी इस ट्रेन में यानि की बलिया के जो क्रांतिकारी युवा थे उनके साथ शामिल हो गए
03:41लखनव पहुँचते पहुँचते ये ट्रेन अंदर से बाहर तक खचा-खच बर गई थी
03:45सत्र अगस्त की सुबह ये ट्रेन लखनव पहुची और इधर बलिया में यही सत्र और अठारा अगस्त अंग्रेश सरकार पर भारी पढ़ गए
03:51बलिया वालों ने जिले की सभी तैसिलों पर कभजा कर लिया था आलम दिया था कि पुलिस और प्रसासन के लोग खुद अपना बचाओ करने में लग गए
03:58एक दिन पहले तक जो अफसर अंग्रेजों के आदेस पर भीड में घोड़े दोडा रहे थे कोड़े फटकार कर लोगों को मार रहे थे वही अफसर भीड के सामने खुद को भारती होने और जान बक्ष देने की दुहाई दे रहे थे
04:10क्योंकि उस दिन बलिया के लोग भी पूरी तैयारी के साथ घर से निकले थे उर्सों के हाथ में लाठी और डंडे थे तो महिलाय ज्जाडू, बेलन और चिम्टा आदी लेकर इस जंग में शामिल हुई थी
04:20इन लोगों ने देखते ही देखते बैरिया थाने पर कभ्जा कर लिया उस समय थाने दार समय सभी पूलिस करूमियों को उन ही के लॉक अप में बंद कर दिया गया था
04:27हालात को देखते वे अठार अगस्त की ही रात को कलेक्टर जगधिश्वर निगम ने अंग्रेश सरकार को लिग दिया कि बलिया को रोक पाना संभाव नहीं है
04:35सुबह होते ही उन्हें खबर मिली कि क्रांती कारियों ने जेल के ताले तोड़ दिये हैं और कलेक्ट्रेट की और आने वाले हैं
04:42इस सूचना से ही उनकी पैंट गीली हो गई और वो कुर्सी छोड़ कर फरार हो गय थे
04:46इसके बाद बीर सेनानी चित्तु पांडे ने बलिया की कमान समाली इस प्रकार बलिया देश की आजादी से 5 साल पहले यानि कि 19 अगस् 1942 को ही आजाद हो गया
04:55आजादी के ऐसे अंगिनत किस्से हैं जो कि डेली लाइन आपके सामने समय समय पर लाता रहेगा
05:00फिलाल आजादी के लिए जिन लोगों ने अपना सर्वस्नी उच्छार किया उसके लिए डेली लाइन दिल से उनको सलाम करता है
05:06आज के वीडियो में फिलाल इतना ही आप फॉलोग करते रहे हैं हमारे डिजिनल प्लेटफॉर्म डेली लाइन को

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