राम निरंजन न्यारा रे || आचार्य प्रशांत, कबीर साहब पर (2024)

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वीडियो जानकारी: 11.02.24, संत सरिता, ग्रेटर नॉएडा

प्रसंग:
राम निरंजन न्यारा रे, अंजन सकल पसारा रे !

अंजन उतपति, ॐ कार, अंजन मांगे सब विस्तार।
अंजन ब्रह्मा, शंकर, इन्द्र, अंजन गोपी संगि गोविंद रे ॥1॥

अंजन वाणी, अंजन वेद, अंजन किया नाना भेद।
अंजन विद्या, पाठ-पुराण, अंजन वो घट घटहिं ज्ञान रे ॥2॥

अंजन पाती, अंजन देव, अंजन ही करे, अंजन सेव।
अंजन नाचै, अंजन गावै, अंजन भेष अनंत दिखावै रे ॥3॥

अंजन कहों कहां लग केता, दान-पुनि-तप-तीरथ जेथा।
कहे कबीर कोई बिरला जागे, अंजन छाड़ि निरंजन लागे ॥4॥

~ कबीर साहब

~ तुम अलग नहीं हो, ये जान लो, तो तुम अलग हुए।
~ राम निरंजन न्यारा रे, इसको हमें सुनना ऐसे है, कि मैं नहीं हूँ न्यारा रे।
~ हम अपनी बात करें और अपनी बात यह है कि मैं न्यारा नहीं हूँ, मैं न्यारा नहीं हूँ।
~ मैं कौन हूँ? राम निरंजन न्यारा रे, उसको हमने कह दिया मैं नहीं न्यारा रे और आगे मेरा परिचय है, क्या? अंजन सकल पसारा रे। मैं वही हूँ जो ये पूरा सकल पसार है, ये जो अनंत विस्तार है, मैं वो हूँ।
~ कबीर साहब इस भजन के माध्यम से हमें क्या समझाना चाह रहे हैं?

संगीत: मिलिंद दाते
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