चक्र कैसे जाग्रत करें?

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चक्र को जागृत कैसे कर सकते है? क्रमिक और अक्रम मार्ग में चक्र जागृत किस प्रकार होते है?
Transcript
00:00सर, अरेरिया में क्योंको आजीवन का ख़ाईनने का करिया थाई शक्र?
00:06दो प्रकार के बाते योग साधिन चक्र को क्रमीख मारघ हैं.
00:11भेदों? दे का चकर है णा क्या आत्मा का चकर है?
00:15चक्र तो शरीब में रहता है ने? पाँच चकर?
00:18वो सब करमिख मारग है, यहां तो अक्रम मारग है.
00:21और अक्रम मारग ऐसा है कि आत्मघ्णानब्प्राप्ता होने के बाद अपने आपचक्रो।
00:27उझ चक्रवाला चेक करता है तो बोलता है आपके चक्रवाला सब जगरत हो गये.
00:31चक्र की जागरत करने की जुरूरत नहीं है, अपने आपकी जागरत हो जाते हैं।
00:35Like meditation?
00:37Not meditation, knowledge, knowledge of self-realization, वो प्राप्त करना है।
00:43इस चक्र तो सचमुझ क्या है कि पातंजली ने बताया था
00:49कि चक्र धीरे धीरे यम, नियम, प्राणायम, प्रत्याहर,
00:53योग साधना करते, करते, वृपर निर्विकल्पी समाधी के तक पहुचो।
00:57तो अक्रम में कुरुपा से ही, डायरेक।
01:01जब अफ्था योग है, निर्विकल्प समाधी, वो डायरेक प्राप्त हो जाता है।
01:07यग, तफ, यम, नियम, प्राणयम, प्रत्यार, प्रत्याख्यान करने नहीं पढ़ते, ध्यान, धारणा, द्याई,
01:14सब सिधा द्याई स्वरुब बना देते, निर्विकल्प समाधी, कुरुपा से ही प्राप्त हो जाते हैं।
01:19यह चक्र बाई प्रड़क्शन में चुट गए है, हमें पहुँचना है वहाँ डारेक पहुँचा देते हैं, इस चक्रों का चुट जाता है।
01:32क्या चक्र जागरत करना, वह चक्र जागरत करना वाला है, अमारे पास तो डारेक लाइन का बात है, चक्र वाला इधर नहीं मिलेगा आपको, वह बाहर कोई सिखाता है, तो उनके पास जाएगे,
01:45क्या कि यहां तो, लास्ट रिजल्ट आपको यहां सिधा मिल जाएगे, एक अश्टांग योग, एक-एक योग सिद्ध करते-करते तो कितना अवतार चले जाता है, बहुत डिफिकल्ट मार्ग है, और यह कृपा से, इनको अनुभव हुआ है, आत्मा का डिरेक्ट अन�
02:15करनी पड़ेगे, आत्मा ही जागरत सिधा हो गया, और कितने भी कृंडली नहीं जागरत किया, सब चक्र जागरत किया, फिर भी आत्मा जागरत होने का तो बाकी ही रहे जाएगा, तो यहां तो आत्मा जागरत कर लो, क्या नाम है आपका, अरकेश, तो आप सचमुझ अरक
02:45बलता मैं अरकेश हूँ, एक्जिस्टन्स, एक्जिस्टन्स, एक्जिस्टन्स तो सबको मालूम है, मैं हूँ, पर मैं क्या हूँ, वो जानने की ज़रूरत है, एक्जिस्टन्स तो बरुबर है, आपका एक्जिस्टन्स है, पर वस्तुत्व का बाहने मैं खुद क्या ह�
03:15पर मनो योग होईगा, देही योग होईगा, फिर आत्मयोग तो बाकी रहे गया, तो यहाँ आत्मयोग सीधा मिल जाता है, मनो योग, वचन योग, देही योग से मुक्ति, और आत्मयोग सीधा, यहने उसको अक्रम मार्क बोलते हैं, और जो आपने बताया, उक्रमीक मार्
03:46पर रहा है, अपने एकमे के ओकेल點
03:47आपका लदारवानहा और पूराक्यो शाचनी
03:49सबसको गिरहन करो.
03:52और यहाँ ग़रहन और त्याग, अज्यानता का त्याग कराँ देते हैं
03:56अहंकारममिता का त्याग कराँ देते हैं
03:58अगर अपर अपर अपर अपर अपर अपर अपर अपर अपर अपर अपर अपर अपर अपर अपर अपर अपर अपर अपर अपर अपर �

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