मूर्तिपूजा कहाँ तक करनी चाहिए?

  • 2 months ago
जब आत्मज्ञान से मोक्ष प्राप्ति है तो मूर्तिपूजा का महत्व क्या है? मूर्ति निर्जीव चीज़ है तो उसमे भगवान के दर्शन किस प्रकार हो सकते है?
Transcript
00:00अगर आत्मा को जानने से मोक्ष प्राप्त हो सकता है, तो हमलोग को पूजा क्यों करनी चाहिए?
00:20आत्मा को जाना क्या? नहीं जाना, ता तक तो वहां तक पूजा करनी ही चाहिए.
00:24पूजा, पाथ, भक्ति, मूर्थी की पूजा या मंत्र, जाब, शास्त्र, पढ़ाई, उससे पुन्य बनता है.
00:30पुन्य से हमें संसार में सुख, शांति, संपति भी मिलेगी, और थोड़ा समय भी मिलेगी, हम भगवान की भक्ति भी कर सकेंगे.
00:36हमारी खोज लक्ष में रहनी चाहिए, मुझे आत्मा का साक्षातकार पाना है, ये मैं जो कर रहा हूं, उससे मुझे आगे की बात, मुझे ये प्राप्त करना है.
00:46जब ये होगा, लक्ष होगा, तो कभी न कभी, वो लिंक भी मिल जाएगे, जब प्रत्यक्ष ग्याणी मिले, तो फिर आत्मा साक्षातकार भी हो पाएगा.
01:00क्रियेचर के भीतर नहीं है, क्रियेचन के भीतर नहीं है.
01:04मुर्थी में हमारी स्रद्धा है न?
01:07मुर्थी में हमारी स्रद्धा रखते हैं, कि ये कृष्ण बगवान है, ये शिव बगवान है, महाविर बगवान है, हमें स्रद्धा रखे भक्ति करते हैं.
01:15और कहीं न कहीं है, ये से मंदर स्वामे की मुर्थी है, तो कहीं न कहीं बगवान है आज.
01:21महाविर देख शेत्र में जीवन था, केवल ग्नानी है, देधारी परमात्मा है, उनकी स्थापना यहां की.
01:28जैसे हमारे पिताजी है, गाउ रहते हैं, मगर उसको फोटो रखो, तो हमें याद रहेगा कि ये वहाँ है.
01:35और कोई चले गए, तो देधारी थे, तब थे, उनकी फोटो है, उनकी मुर्थी है, कहीं न कहीं है, हम उनको याद करते हैं.
01:44और वितरागता प्राप्त करनी है, केवल ज्ञान प्राप्त करना है, मोक्स्वरुप खुद हुए, तमाम संसारी सबंदों से मुक्त होके वितराग हुए, हमें वैसा प्राप्त करना है, वो हमारी भावना है.

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