• 6 months ago
प्रतापगढ़.
मानसून के दौरान में प्रजनन के लिए प्रवास पर आने वाले देसी पक्षी कांठल के जंगल में पहुंचने लगे हैं। इसके साथ ही जंगल के चुनिंदा स्थानों पर प्रवासी पक्षियों के व्यवहार, कलरव व गायन से वातावरण में रस घुलने लगा है। वहीं इन पक्षियों के आगमन को लेकर यहां मानसून के भी संकेत माने जा रहे हैं।
कांठल के जंगल जैव विविधता से भरपूर हैं, इससे मानसूनी प्रवासी पक्षियों की पसंदीदा जगह बनी हुई है। ये पक्षी अमुमन मई अंतिम सप्ताह से आने लगे हैं। जो सितम्बर तक जंगल में ही प्रवास पर रहेंगे। इसके बाद अपने बच्चों के साथ मूल स्थान को चले जाते हैं। ये पक्षी विशेषकर दक्षिणी और मध्य भारत के साथ हिमालय के तराई वाले क्षेत्रों से यहां पहुंचे हैं।
सुरक्षित स्थान पर बनाते हैं घोंसले
जंगल में घने कुंज और नालों के किनारों के झुरमुट में ये अपना आवास स्थल बनाते हैं। इसका कारण ये स्थान सभी तरह से सुरक्षित रहते हैं। पक्षियों में स्वत: ज्ञान होता है कि शिकारियों की पहुंच यहां तक नहीं होती है। जंगल में नालों पर लटकती पेड़ों की टहनियों पर घोंसले बनाते है। कुछ पक्षी बड़े शिकारी परिंदों, नेवलों आदि को भगा देते हैं। कई बार दूसरों के घोंसलों से तार आदि चुराकर भी अपना घोंसला बनाते हैं।जिससे एक विचित्र सहयोग हो जाता है।
एक दर्जन से अधिक प्रजातियों के पक्षी
मानसून के दौरान प्रवास पर आने वाले पक्षियों में अधिकांश दक्षिणी व कुछ मध्य भारत से आते है। एक-दो प्रजातियों के पक्षी हिमालय की तराई वाले स्थानों से आते हैं। इसमें एशियन ब्राउन फ्लाई कैचर प्रमुख है। उपवन संरक्षक हरिकिशन सारस्वत के अनुसार दक्षिणी भारत से आने वाले पक्षियों में इंडियन पिट्टा, ब्लैक हैडेड कुक्कू शर्राइक, एशियन पैराडाइज फ्लाई कैचर, व्हाइट थ्रोटेड ग्राउंड थ्रश, यूरेशियन ब्लैक बर्ड, यूरेशियन गोल्डन ऑरिऑल, मलाबार व्हिसलिंग थ्रश, यूरेशियन कुक्कू, कॉमन हॉक कुक्कू आदि शामिल हैं। इनके आने का क्रम शुरू हो गया है। पर्यावरणविद् मंगल मेहता ने बताया कि यहां प्रतापगढ़ के कई इलाकों में इंडियन पिट्टा देखा गया है। जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है।
पहुंचा पपीहा भी
प्रवासी पक्षियों में सबसे अंत में पाइड कुक्कू(चातक या पपीहा) पहुंचता है। जो यहां पहुंच चुका है। पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार ये पपीहा मानसून के एक सप्ताह पहले ही इन जंगलों में पहुंचता है। ऐेसे में अब मानसून दो सप्ताह बाद पहुंचने का अनुमान है। उदयपुर के पक्षी विशेषज्ञ विधान द्विवेदी ने हाल ही में यहां पहुंचे पक्षियों के फोटो अपने कैमरे में कैद किए है।
करना होगा संरक्षण
कई वर्षों से पक्षियों का प्रवास चलता आ रहा है। जिससे इनकी संख्या का विस्तार उपयुक्त आवास स्थलों पर होता रहता है। इन आवासों के खत्म होते ही जंगलों के विस्तार व पर्यावरण पर बुरा असर पड़ता है। इनका संरक्षण किया जाए। घने जंगलों में आग व कटान से बचाया जाए।
देवेन्द्र मिस्त्री
पक्षीविद्, प्रतापगढ़

पहुुंचने लगे पक्षी
प्रतापगढ़ के जंगल जैव विविधता से परिपूर्ण एक महत्वपूर्ण पक्षी स्थल है। जो स्थानीय और प्रवासी पक्षियों के लिए स्वर्ग माना जाता है। यहां अरावली व मध्य भारत के पक्षी बहुतायत मिलते हैं। मानसून के दौरान भी करीब एक दर्जन प्रजातियों के पक्षी दक्षिणी भारत और मध्य भारत से आते हैं।
दिलीपसिंह गौड़, सहायक उपवन संरक्षक, प्रतापगढ़

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