बेटा समझ गया, बाप क्यों न समझा? || आचार्य प्रशांत, पुत्र गीता पर (2020)

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वीडियो जानकारी:
पार से उपहार शिविर, 13.3.20, अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नॉएडा, उत्तर प्रदेश, भारत

प्रसंग:
पुत्रगीता:- महाभारत के शान्तिपर्व में भीष्म-युधिष्ठिर-संवाद के अन्तर्गत पुत्रगीता के रूप में एक प्राचीन आख्यान आता है, जिसमें सदा वेद-शास्त्रों के अध्ययन में तत्पर रहने वाले एक ब्राह्मण को उनके मेधावी नामक तत्त्वदर्शी पुत्र द्वारा ही बहुत मार्मिक उपदेश दिये गये हैं ।
प्रत्येक मनुष्य का जीवन क्षणभंगुर है, मृत्यु कभी भी बिना पर्व सूचना के आ सकती है, अतः प्रत्येक अवस्था में संसार की आसक्ति से बचकर धर्माचरण तथा सत्यव्रत का पालन करते रहना चाहिये, यही परमसाधन इस पुत्रगीता में बताया गया है।
राजा युधिष्ठिर ने पूछा- पितामह! समस्त भूतों का संहार करने वाला यह काल बराबर बीता जा रहा है, ऐसी अवस्था में मनुष्य क्या करने से कल्याण का भागी हो सकता है? यह मुझे बताइये ॥१॥
भीष्म जी ने कहा- युधिष्ठिर! इस विषय में ज्ञानी पुरुष पिता और पुत्र के संवादरूप इस प्राचीन इतिहास का उदाहरण दिया करते हैं । तुम उस संवाद को ध्यान देकर सुनो ॥२॥
कुन्तीकुमार! प्राचीन काल में एक ब्राह्मण थे, जो सदा वेदशास्त्रों के स्वाध्याय में तत्पर रहते थे । उनको एक पुत्र हुआ, जो गुण से तो मेधावी था ही, नाम से भी मेधावी था ॥३॥