ज़िंदगी डरने के लिए नहीं, खेलने के लिए है || आचार्य प्रशांत (2024)

  • 4 months ago
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वीडियो जानकारी: 09.02.2024, वेदांत संहिता, ग्रेटर नॉएडा

प्रसंग:
सर, अकेलेपन से घबराती हूँ, क्या करूँ?
हर समय डर लगा रहता है कि सब कुछ छिन गया तो?
अकेलेपन का डर बहुत सताता है, इसको कैसे दूर करूँ?

वीडियो का कुछ अंश:
चिंता और परेशानी के पीछे आपका स्वार्थ होता है।
दुनिया की चीज़ों को सर मत चढ़ने दो, न मान को, न अपमान को, न सुख को, न दुख को।
आपकी चीज़ें छिन गईं, या रिश्तों में कुछ हो गया, या इज़्ज़त लोगों ने देनी बंद कर दी, तो आपको लगेगा कि आपका अस्तित्व ही मिट गया, यह नहीं होना चाहिए।
तुम्हारी चिंताएँ, असुरक्षा, और डर, ये सब तुम्हारी ज़िन्दगी को दीमक की तरह चाट जाएँगे।
सुरक्षा की मांग उसको ही होती है, जो पराई चीज़ें पकड़कर बैठा होता है।
जो मुक्त है, सिर्फ वही मौज में है।
जो चीज़ अपनी नहीं है, उसकी कीमत क्या होगी? तनाव, चिंता।
अगर हम किसी चीज़ को खोने को लेकर के बहुत आशंकित हैं, तो बहुत संभावना यह है कि हम उस चीज़ के लायक भी नहीं है।

संगीत: मिलिंद दाते
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