Pandit पंडित

  • 2 years ago
जैसा कबीर दास ने कहा
"नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए ।
मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए ।"

साक्षरता एक वास्तविक शिक्षा है और इसी तरह कोई इंसान बन सकता है।
चरित्र परिवर्तन और मानव के पास ऐसा करने की क्षमता है यदि वे इच्छुक हैं।
मनुष्य केवल तब तक बदबू मारते हैं जब तक उन्हें अपनी गलती का एहसास नहीं होता है और वे इससे पश्चाताप नहीं करते हैं और फिर वे वही बन जाते हैं जो भगवान ने उन्हें बनाया था। मनुष्य के पास बुरे चरित्र से अच्छे चरित्र में बदलने का अवसर है। केवल एक चीज जो गायब है वह प्यार है, और यह प्यार सिर्फ एक सामान्य विपरीत आकर्षण नहीं है बल्कि दूसरों को विकसित करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ देने को तैयार हर किसी के लिए दयालु भरी आंखें हैं।
अब साक्षरता का वास्तविक अर्थ यही है जो प्रयत्न करने पर अनुभव से प्राप्त होता है।

Pandit पंडित
कुछ में सहमत हु और कुछ से नहीं
ये खलल का ख़याल खुदा से नहीं
सेहत बिगड़ गई इस के आभास से
कही तजरबा ही मेरी दवा तो नहीं